रांची: विधानसभा में शनिवार को झारखंड को विशेष राज्य का दरजा देने की मांग उठी. पक्ष- विपक्ष एक मंच पर नजर आये. विधायकों ने कहा कि राज्य अपने हक के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाये. सदन की सहमति पर केंद्र को प्रस्ताव भेजे.
सीमांध्र पर सवाल उठाये : सदन की कार्यवाही शुरू होते ही भाजपा, आजसू व झाविमो के विधायकों ने सीमांध्र को विशेष राज्य का दरजा दिये जाने को लेकर सवाल उठाया. प्रभात खबर के 22 फरवरी के अंक में छपी खबर का हवाला दिया. कहा कि केंद्र राजनीतिक दबाव में फैसले कर रहा है. रघुराम राजन कमेटी के अनुसार झारखंड पिछड़े राज्यों की श्रेणी में पांचवें स्थान पर है, जबकि आंध्र 14 वें स्थान पर है.
ऐसे में अगर सीमांध्र को विशेष राज्य का दरजा मिल सकता है, तो झारखंड को क्यों नहीं. झारखंड इसकी अर्हता रखता है. भाजपा, आजसू और झाविमो के विधायक अपने-अपने स्थान पर खड़े हो गये. बाद में स्पीकर शशांक शेखर भोक्ता ने सभी को शांत कराया. विधायकों को बारी-बारी से बोलने का मौका दिया.
उदय और अस्तित्व का प्रश्न
विपक्ष के विधायकों का कहना था कि ऐसे फैसले राजनीतिक दबाव में लिये जाते हैं. विशेष राज्य की मांग झारखंड के उदय और अस्तित्व का प्रश्न है. झारखंड देश का खजाना भरता है, लेकिन उसकी ही अनदेखी हो रही है. केंद्र ने राज्य का दोहन-शोषण किया है. विधायकों का कहना था कि सीमांध्र को विशेष राज्य का दरजा मिले, इसका विरोध नहीं है. लेकिन झारखंड के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए.
कांग्रेसियों ने भी खोला मोरचा
सदन में झाविमो विधायक ने केंद्र सरकार को निंदा प्रस्ताव भेजने की मांग रखी. भाजपा विधायक रघुवर दास और सीपी सिंह ने भी समर्थन किया. इसके बाद कांग्रेस के विधायकों ने मोरचा खोला. कांग्रेस विधायकों का कहना था कि लोकसभा में झारखंड से सबसे ज्यादा भाजपा के सांसद हैं. जहां बोलना चाहिए, वहां चुप रहते हैं. कांग्रेस विधायकों का कहना था कि 13 वर्षो तक झारखंड में भाजपा की सरकार रही, तब विशेष राज्य की याद नहीं आयी. कांग्रेस विधायक डॉ सरफराज अहमद, राजेश रंजन, बन्ना गुप्ता ने राज्य के लिए विशेष पैकेज की मांग की. आजसू प्रमुख सुदेश कुमार महतो का कहना था कि सरकार पहल करे, विशेष राज्य का प्रस्ताव केंद्र को भेजा जाये.
बंधु ने किया विरोध
सदन में बंधु तिर्की अकेले विधायक थे, जिन्होंने झारखंड को विशेष राज्य का दरजा दिये जाने की मांग का विरोध किया. उन्होंने कहा : इसकी कोई जरूरत नहीं है. झारखंड पांचवीं अनुसूची का राज्य है. यहां पहले से ही सीएनटी-एसपीटी जैसे एक्ट का प्रावधान है. झारखंड में ट्राइबल सब-प्लान के पैसे आते हैं. इसी पैसे को सही तरीके से खर्च करने की जरूरत है. राज्य में पहले स्थानीयता की नीति लागू हो. यहां की नौकरी बाहरी लूट रहे हैं. विशेष राज्य की मांग ठग और महाठग वाली बात होगी. विशेष राज्य का हल्ला करनेवाले ही लालची है. विशेष राज्य नहीं, विशेष पैकेज की जरूरत है. आदिवासी-मूलवासी को बचाना है, तो स्थानीयता को लागू करें.