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पांच बार भाजपा ने गिरिडीह में दर्ज की है जीत

गिरिडीह: गिरिडीह लोकसभा सीट पर जातीय समीकरण चुनावों में बड़ा महत्व रखता है. यहां लोकसभा चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की विशेष नजर कोइरी-कुरमी मतदाताओं के साथ-साथ मुसलिम मतों पर होती है. मुसलिम मतदाताओं की संख्या लगभग 2 लाख बतायी जाती है. जब भी मुसलिम मतों का बिखराव हुआ है, तब-तब इसका लाभ भाजपा उठाती रही […]

गिरिडीह: गिरिडीह लोकसभा सीट पर जातीय समीकरण चुनावों में बड़ा महत्व रखता है. यहां लोकसभा चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की विशेष नजर कोइरी-कुरमी मतदाताओं के साथ-साथ मुसलिम मतों पर होती है. मुसलिम मतदाताओं की संख्या लगभग 2 लाख बतायी जाती है. जब भी मुसलिम मतों का बिखराव हुआ है, तब-तब इसका लाभ भाजपा उठाती रही है.

अब तक हुए लोकसभा चुनावों के परिणामों पर गौर करें तो भाजपा ने पांच-पांच बार इस सीट पर कब्जा जमाया है. सबसे पहले भाजपा ने 1989 में चुनाव जीत कर इस सीट पर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी. उस वक्त रामदास सिंह चुनाव लड़े थे. इसके बाद 1996, 1998, 1999 और 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के रवींद्र पांडेय ने जीत दर्ज की.

1996 के चुनावी समीकरण को देखें तो उस समय जेएमएम, कांग्रेस, जनता दल और जेएमएम(एम) ने भी चुनाव लड़ा था. उस समय मुसलिम मतों का बंटवारा हो जाने का लाभ बीजेपी प्रत्याशी को मिला. 1998 और 1999 में मुसलिम मतों का बंटवारा जेएमएम और कांग्रेस के बीच होने का लाभ भाजपा को मिला था. काफी कम अंतर से उस वक्त भाजपा की जीत हुई थी. यदि मुसलिम मतों का ध्रुवीकरण पूर्ण रूप से कांग्रेस के पक्ष में होता तो भाजपा के लिए यह सीट निकालना आसान नहीं था. 2004 के चुनावी परिणाम को देखें तो जेएमएम और कांग्रेस की एकजुटता का लाभ जेएमएम को मिला और बीजेपी के प्रत्याशी रवींद्र पांडेय काफी अंतर से हार गये थे. इस चुनाव में भाजपा के रवींद्र पांडेय को मात्र 200461 मत हासिल हो सका था. जबकि जेएमएम के टेकलाल महतो ने 350255 मत हासिल किया था.

उस वक्त मुसलिम मतों के साथ-साथ कुरमी-कोइरी मतों का ध्रुवीकरण भी श्री महतो के पक्ष में गया. 2009 के चुनाव में स्थिति बिल्कुल बदल गयी. इस चुनाव में जेएमएम कांग्रेस का समर्थन हासिल नहीं कर सका. जेवीएम-कांग्रेस के बीच तालमेल हुआ और यह सीट जेवीएम के कोटे में चली गयी. जेवीएम ने इस चुनाव में डॉ सबा अहमद को मैदान में उतारा था. जबकि जेएमएम से टेकलाल महतो व भाजपा से रवींद्र पांडेय चुनावी मैदान में थे. इस चुनाव में कुरमी-कोइरी मतदाताओं ने तो टेकलाल महतो के पक्ष में मतदान किया लेकिन मुसलिम मतों का झुकाव श्री महतो की तरफ न जाकर जेवीएम के डॉ सबा अहमद के पक्ष में चला गया. ऐसे में जेएमएम के टेकलाल महतो की करारी हार हुई. 2004 में 3,50,255 वोट लाने वाले श्री महतो को 2009 में मात्र 1,38,697 मतों से ही संतोष करना पड़ा. भाजपा के रवींद्र पांडेय 2,33,435 मत लाकर इस सीट पर कब्जा जमाने में सफल हो गये.

अपने कर रहे वार
गिरिडीह: भाजपा का एक खेमा रवींद्र पांडेय को टिकट देने का जोरदार विरोध भी कर रहा है. कोबरा पोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन के बाद से ही गिरिडीह के भाजपा सांसद रवींद्र पांडेय को घेरने की कोशिश हो रही है. हालांकि गिरिडीह संसदीय सीट पर श्री पांडेय ने चार-चार बार अपनी जीत दर्ज करायी है.

भाजपा बचाओ अभियान ने भाजपा के मिशन 2014 की सफलता के लिए इसे आवश्यक करार दिया है. इधर, श्री पांडेय के समर्थकों का कहना है कि उन्होंने इस सीट पर चार-चार बार अपनी जीत दर्ज करायी है और क्षेत्र के लोगों के संपर्क में रहे हैं. वहीं विक्षुब्धों का कहना है कि श्री पांडेय ने चुनाव जीतने के बाद से न ही विकास कार्यो में विशेष दिलचस्पी दिखायी और न ही आम लोगों के सुख-दुख में भाग लिया. विक्षुब्धों की सक्रियता को देख रवींद्र पांडेय ने भी अपने पक्ष में हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया है. इस मामले में सांसद प्रतिनिधि यदुनंदन पाठक कहते हैं कि विक्षुब्धों ने भाजपा नेता विरंची नारायण के पक्ष में हस्ताक्षर अभियान चला रखा था. इसी कारण भाजपा के समर्थकों ने श्री पांडेय के पक्ष में हस्ताक्षर अभियान चलाया है. भाजपा के जिलाध्यक्ष अशोक उपाध्याय कहते हैं कि परचा जारी करने और हस्ताक्षर अभियान चलाने की कोई जानकारी उन्हें नहीं है. जहां तक टिकट देने का सवाल है तो यह निर्णय चुनाव समिति को लेना है.

तालमेल कर चुनाव लड़ने की फिराक में कांग्रेस
लोकसभा चुनाव की तिथि की घोषणा अभी तक नहीं हुई है, पर प्रमुख दलों ने अपने-अपने प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है. यही कारण है कि दलों में टिकट सुनिश्चित करने के लिए रांची से लेकर दिल्ली की भाग-दौड़ शुरू कर दी गयी है. कांग्रेस ने दूरदर्शी नीति के तहत अपनी चुनावी बिसात बिछाने का काम झारखंड में सरकार बनने के साथ ही शुरू कर दिया है. हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार में बेरमो के विधायक राजेंद्र सिंह का मंत्री बनना उनके लिए वरदान साबित हुआ. इसी का असर है कि गिरिडीह सीट से उनको उम्मीदवार बनाना लगभग तय है. इस क्षेत्र के कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने जहां राजेंद्र सिंह को टिकट देकर मैदान में उतारने की वकालत की है, वहीं कांग्रेस के कई बड़े नेता भी इसी पक्ष में है.

मंत्री राजेंद्र सिंह ने भी चुनाव मैदान में उतरने को लेकर इस इलाके में अपनी गतिविधियां तेज कर दी है. मंत्री बनने के साथ ही इलाके की समस्या को लेकर उसके समाधान की दिशा में प्रयास भी किये जा रहे हैं. मंत्री बनने के साथ ही गिरिडीह में विद्युत विभाग का जीएम कार्यालय खोल कर यहां के लोगों को तोहफा दिया. गिरिडीह के लोगों को बिजली समस्या से काफी हद तक राहत भी मिल सकी है. वहीं कई विकास योजनाओं पर काम करने का भरोसा भी दिलाया है. उनके पुत्र जयमंगल सिंह उर्फ अनूप सिंह ने भी अपनी सक्रियता बढ़ा दी है. चरचा यह भी है कि मंत्री श्री सिंह अपने पुत्र को चुनावी मैदान में उतार सकते हैं. हालांकि इस सीट पर कांग्रेस और जेएमएम के बीच अभी तक जिच बनी हुई है. कांग्रेस इस सीट पर जेएमएम से तालमेल कर चुनाव लड़ने के फिराक में है. वहीं जेएमएम भी इस सीट को अपने हाथों से जाने देना नहीं चाहती. जेएमएम के मथुरा महतो, जगरनाथ महतो और जयप्रकाश भाई पटेल इस संसदीय सीट से चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं. मथुरा महतो के समधी और जयप्रकाश भाई पटेल के पिता स्व. टेकलाल महतो वर्ष 2004 में इसी सीट से चुनाव जीत चुके हैं. जेएमएम समर्थकों का मानना है कि यह सीट जेएमएम की परंपरागत सीट है. लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर झारखंड की सरकार भी दावं पर लगी हुई है. जेएमएम ने अपनी नीति में थोड़ी फेर बदल कर दी है. पलामू सीट पर कामेश्वर बैठा को लेकर जेएमएम असमंजस में है. इस सीट को छोड़ कर जेएमएम गिरिडीह सीट पर दबाव बना रहा है.

वहीं कांग्रेस इस सीट को किसी भी स्थिति में अपने झोली से जाने देना नहीं चाहती. राजद से तालमेल की स्थिति में कांग्रेस कोडरमा सीट राजद के लिए छोड़ सकती है पर गिरिडीह सीट पर किसी भी कीमत पर समझौता को तैयार नहीं है. इधर, बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोरचा ने भी इस सीट पर उम्मीदवार देने की घोषणा कर दी है. हालांकि पार्टी ने अपने उम्मीदवार की घोषणा तो नहीं की है, पर डॉ सबा अहमद के नहीं लड़ने की स्थिति में बोकारो के आशुतोष वर्मा को टिकट देने का आश्वासन देकर उन्हें सक्रिय रहने का निर्देश दिया गया है. श्री वर्मा कुछ दिनों पूर्व जेवीएम में शामिल हुए हैं और अपनी गतिविधियां गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में उन्होंने बढ़ा दी है. वर्तमान में इस सीट पर भाजपा का कब्जा है पर भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष विरंची नारायण और भाजपा का मुखपत्र कमल संदेश के कार्यकारी संपादक व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के करीबी माने जाने वाले डॉ शिव शक्ति बक्शी भी टिकट हासिल करने के प्रयास में हैं. आजसू ने भी इस सीट पर अपनी सक्रियता बढ़ा दी है. गिरिडीह सीट से पूर्व उप मुख्यमंत्री सुदेश महतो के ससुर डॉ यूसी मेहता को आजसू उतारना चाहती है. डॉ मेहता इस क्षेत्र में लगातार जनसंपर्क कर रहे हैं.

मुद्दे जस के तस, कोई बड़ी उपलब्धि नहीं..
गिरिडीह: गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में जनप्रतिनिधियों के चेहरे तो बदलते रहे लेकिन जन विकास की परिकल्पना अब भी अधूरी है. चुनाव के मौके पर राजनीतिक दल के नेताओं द्वारा जनता से लंबे-चौड़े दावे किये जाते हैं. परंतु चुनावी खुमारी उतरने के बाद मुद्दे गौण हो जाते हैं. जनता पुन: उन्हीं समस्याओं के जद में फंस जाती है. देखा जाय तो गत लोकसभा चुनाव में भाजपा के रवींद्र कुमार पांडेय द्वारा जनता के समक्ष कई घोषणाएं किये गये लेकिन मुद्दे जस के तस है. इन पांच वर्षो में कोई बड़ी उपलब्धि भी हासिल नहीं हो पायी.
गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है. शिक्षित युवाओं के लिए नियोजन की कोई खास व्यवस्था नहीं रहने के कारण बेरोजगारों की एक लंबी फौज खड़ी हो रही है. इस दिशा में बतौर जनप्रतिनिधि जो प्रयास किया जाना चाहिए था, वह नजर नहीं आया. इस क्षेत्र में तकनीकी संस्थान के चालू कराने के तो दावे किये गये, लेकिन तकनीकी संस्थान नहीं खुल पाया. भले ही यहां के युवकों को आइटीआइ का झुनझुना पकड़ा दिया गया, लेकिन वह भी बंदी के हालत में है. छात्रों के लिए व्यावसायिक व उच्च शिक्षा की कोई सुविधा नहीं है. फलत: यहां के छात्रों को दूसरे जिलों व राज्यों में बेहतर शिक्षा हेतु जाने को मजबूर होना पड़ता है. गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में सिंचाई व्यवस्था का अभाव किसानों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है.

सिंचाई का बेहतर संसाधन उपलब्ध नहीं रहने के कारण यहां के किसानों को मॉनसून पर निर्भर रहना पड़ता है. औद्योगिक विकास भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है. पिछले तीन-चार वर्षो से लौह उद्योग की स्थिति जजर्र है. रेलवे रैक की सुविधा को लेकर कई बार मांग उठी, लेकिन इस दिशा में कोई सार्थक परिणाम नजर नहीं आया. औद्योगिक विकास के लिए जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, उसे भी उपलब्ध कराने में जनप्रतिनिधि विफल साबित हुए. रेल यात्रा ियों की समस्याएं भी जस के तस है. गिरिडीह रेल बोगी को पहले दानापुर एक्सप्रेस से जोड़ा जाता था. इससे यात्रा ियों को सुविधा होती थी. लेकिन हाल के वर्षो में लालकिला एक्सप्रेस से गिरिडीह रेल बोगी को जोड़ देने से पटना और कोलकाता जाने वाले रेल यात्रा ियों को भारी परेशानी हो रही है. गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में पर्यटन के क्षेत्र में विकास की तमाम संभावना रहने के बाद भी जनप्रतिनिधि की उपेक्षा से क्षेत्र का विकास नहीं हो पाया. इस इलाके में पड़ने वाले मधुबन, वाटर फॉल, खंडोली, तोपचांची झील का विकास नहीं हो पाया. पर्यटक स्थलों का समुचित विकास के अभाव में इस संसदीय क्षेत्र को राजस्व का भी नुकसान उठाना पड़ रहा है. गिरिडीह में एयरपोर्ट बनने का प्रस्ताव था. लेकिन एयरपोर्ट गिरिडीह में न बन कर देवघर चला गया. बतौर सांसद श्री पांडेय कहते रहे कि सत्ता में नहीं रहने के कारण गिरिडीह में एयरपोर्ट नहीं बन पाया. ऐसे में जानकारों का कहना है कि निशिकांत दुबे भी तो भाजपा के सांसद हैं, तो वे इस प्रयास में कैसे सफल रहे. बहरहाल, इस बार लोकसभा चुनाव में जनता जनसमस्या को चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी में जुट गयी है.

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