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राज्यपाल के प्रति मर्यादा-सम्मान, हमारा फर्ज!

-हरिवंश- भारतीय लोकतंत्र में अब भी एक स्वत: स्फूर्त ऊर्जा है. यह दल, विचार, निजी, संकीर्णता से उठ कर संस्थाओं की मर्यादा के लिए समाज को एक करती है. झारखंड की घटना पर सबसे पहले वामदलों ने सख्ती से अपना रुख सामने रखा. प्रधानमंत्री से मिल कर सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा की रक्षा की बात […]

-हरिवंश-

भारतीय लोकतंत्र में अब भी एक स्वत: स्फूर्त ऊर्जा है. यह दल, विचार, निजी, संकीर्णता से उठ कर संस्थाओं की मर्यादा के लिए समाज को एक करती है. झारखंड की घटना पर सबसे पहले वामदलों ने सख्ती से अपना रुख सामने रखा. प्रधानमंत्री से मिल कर सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा की रक्षा की बात की. मीडिया-टेलीविजन के सामने साफ-साफ तथ्य रखे. एनडीए को बहुमत साबित करने के लिए एक मौका देने की बात कही.

प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से लेकर कानून मंत्री ने तत्काल आवश्यक कदम उठाये. देश के जाने-माने संविधान विशेषज्ञों, बुद्धिजीवियों ने गंभीर चिंता दिखाई. दल-विचार-प्रतिबद्धता से ऊपर उठ कर. यही भारतीय संविधान, लोकतंत्र की शेष ऊर्जा है, जो भारत के भविष्य के प्रति आस्था पैदा करती है.

कल शाम (11 मार्च) जब दिल्ली-देश में झारखंड चिंता का विषय बन गया था, उसी वक्त झारखंड के राज्यपाल सिब्ते रजी से एनडीए के नेता मिले. एनडीए के नेताओं ने प्रेस को जो कुछ बताया (जो 12 मार्च के अखबारों में छपा है), उससे पता चला कि राज्यपाल रजी साहब ने अत्यंत शालीनता-धैर्य से एनडीए नेताओं का पक्ष सुना. संकेत दिया कि अन्याय किसी पक्ष के साथ नहीं होगा. उनके सचिवालय के एक अफसर का कहना है कि झारखंड एसेंबली के बार-बार स्थगन की उन्हें सूचना मिली, तो वह अत्यंत नाराज दिखे और कठोर कदम उठाने की बात दिन में ही कही.

अब उस क्षण को पुन: याद करें. जब झारखंड के विधायकों के 42-41 के आंकड़ों के साथ यूपीए-एनडीए अपना-अपना दावा रख रहे थे. ऐसी विषम परिस्थिति में जेनुइनली, महान से महान व्यक्ति भटक सकता है. राज्यपाल के पास तो ऐसी परिस्थिति के लिए ही ‘विवेक से फैसला’ का प्रीरोगेटिव (विशेषाधिकार) है. इसलिए मान लेना चाहिए कि विषम परिस्थिति में यह फैसला हुआ. यह चूक मानवीय है. इस चूक का अधिकार संविधान ने राज्यपाल को दिया है. अब उल्लेख इस बात का हो कि जैसे ही उन्हें इस चूक का एहसास हआ, उन्होंने फैसला बदला. यही राज्यपाल पद की गरिमा है. यह भी उल्लेखनीय है कि राज्यपाल नये हैं. उन्हें जिन लोगों ने सूचनाएं दीं. संभव है उनके सौजन्य से भी यह भ्रम पैदा हुआ हो.

राज्यपाल सिब्ते रजी पूर्वाग्रह वाले इंसान नहीं लगते. उनके अब तक के राजनीतिक जीवन (जो पहले टेलिग्राफ में छपा, फिर अनुवाद होकर प्रभात खबर में) पर गौर करें, तो पायेंगे, वह अत्यंत शालीन और शिष्ट इंसान रहे हैं. झारखंड में सरकार गठन की घटना के पूर्व वह एक भी राजनीतिक विवाद में नहीं रहे हैं. उत्तरप्रदेश और केंद्र की सरकारों में वह महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं. तकरीबन साढ़े तीन दशकों तक. लंबे अरसे से उत्तरप्रदेश में सक्रिय रहे हैं. पर कभी भी किसी अप्रिय प्रसंग में उनका उल्लेख नहीं हुआ. उनका यह विवादरहित, बेदाग अतीत और शालीन व्यवहार उनके व्यक्तित्व का उल्लेखनीय पहलू है.

वह उत्तरप्रदेश में ‘जायस’ के रहनेवाले हैं. कम लोगों को अब याद हो कि ‘जायस’ महाकवि जायसी की धरती है. ‘पद्मावत’ जैसे अमर और प्रेरक ग्रंथ के रचनाकार की धरती. प्रेम के कवि की जन्मभूमि.

उस धरती से आज भी झारखंड के राज्यपाल का गहरा सरोकार है. अपने गांव के गरीबों-मि˜ट्टी से जीवंत रिश्ता है.

अब झारखंड के लोगों का फर्ज है कि वे ऐसे राज्यपाल की मर्यादा-सम्मान के लिए खड़े हों. खासतौर से शासक दल का यह दायित्व है कि वह राज्यपाल सिब्ते रजी की मर्यादा-सम्मान की हिफाजत करें. वह संविधान की मर्यादा के प्रतीक हैं.

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