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झारखंड में बालू का 438 करोड़ का कारोबार

-यूपी, बिहार, बंगाल में भी बिकता है यहां का बालू- ।।सुनील चौधरी।। रांचीः झारखंड में बालू का कारोबार सालाना 438 करोड़ से अधिक का है. एक आकलन के अनुसार, राज्य में प्रतिदिन छह से सात हजार ट्रक बालू की ढुलाई होती है. एक ट्रक बालू की कीमत दो से पांच हजार रुपये तक है. यह […]

-यूपी, बिहार, बंगाल में भी बिकता है यहां का बालू-

।।सुनील चौधरी।।

रांचीः झारखंड में बालू का कारोबार सालाना 438 करोड़ से अधिक का है. एक आकलन के अनुसार, राज्य में प्रतिदिन छह से सात हजार ट्रक बालू की ढुलाई होती है. एक ट्रक बालू की कीमत दो से पांच हजार रुपये तक है. यह अलग-अलग जगहों और बालू की गुणवत्ता पर निर्भर करता है. इस तरह राज्य भर में प्रतिदिन करीब 1.20 करोड़ तक का बालू का कारोबार होता है. झारखंड का बालू पश्चिम बंगाल, बिहार व यूपी में भी बिक रहा है. इतने बड़े पैमाने पर कारोबार के बाद भी सरकार को इससे कोई राजस्व नहीं मिलता. कारण है, वर्ष 2001 से ही बालू घाटों का अधिकार ग्राम सभा व ग्राम समितियों को सौंप दिया गया था.

अगस्त 2013 तक ग्राम सभा द्वारा ही बालू का कारोबार किया जाता रहा. राज्य सरकार ने अप्रैल 2011 में ही झारखंड लघु खनिज समनुदान नियमावली में संशोधन कर बालू घाटों की बंदोबस्ती करने का फैसला किया. पर स्थानीय लोगों के विरोध की वजह से यह फैसला लंबित रहा. अब पुन: बालू घाटों की बंदोबस्ती की जा रही है. इसमें देश भर की कई बड़ी कंपनियां भी रुचि ले रही हैं.

पड़ोसी राज्यों में भी बिक्री : झारखंड के बालू की बिक्री पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल तक में होती है. पाकुड़, गोड्डा, धनबाद, जामताड़ा व दुमका के बालू घाटों से निकलनेवाले बालू की आपूर्ति दुर्गापुर, रानीगंज, आसनसोल, चितरंजन तक की जाती है. गढ़वा व पलामू के बालू की बिक्री सोनभद्र से लेकर कानपुर व इलाहाबाद तक होती है. दूसरे राज्यों में बालू लगभग पांच से छह हजार रुपये प्रति ट्रक तक की कीमत पर बेचा जाता है. यही वजह है कि गढ़वा से प्रतिदिन एक हजार ट्रक से अधिक बालू का उठाव होता है. देवघर से बालू की ढुलाई बिहार के दरभंगा तक होती है. 2012 तक यहां प्रति सप्ताह दो से तीन रैक बालू की ढुलाई होती थी. सामाजिक कार्यकर्ता कुमार विनोद द्वारा मामला उठाये जाने के बाद राज्य सरकार ने इसमें निगरानी जांच की अनुशंसा कर दी. इसके बाद फिलहाल रैक से ढुलाई का काम स्थगित है.

ट्रैक्टर से भी कारोबार

– ग्रामीण इलाकों के कुछ युवक खुद के ट्रैक्टर से भी बालू उठाते थे और ग्राम सभा को डेढ़ से दो सौ रुपये प्रति ट्रैक्टर की दर से भुगतान करते थे

– शहर में आकर यही एक ट्रैक्टर बालू की कीमत 1500 रुपये तक हो जाती थी

– ट्रैक्टर संचालकों को दलाल को भी दो से तीन सौ रुपये अतिरिक्त भुगतान करना पड़ता था

रांची में एक दिन में बिकता है 15 लाख का बालू

अब तक कैसे होता था कारोबार

– वर्तमान व्यवस्था में ग्राम सभा की ओर से बालू की बिक्री की जाती थी

– बिचौलिये इसे 400 से 500 रुपये प्रति ट्रक की दर से खरीद लेते थे

– फिर इसे शहर में लाकर दो से तीन हजार रुपये प्रति ट्रक की दर से बेचते थे

-ढुलाई भाड़ा देकर बिचौलिये को प्रति ट्रक 7-8 सौ रुपये तक की कमाई हो जाती थी

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कारोबार पर असर

सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2012 से किसी भी प्रकार के खनन कार्य के लिए पर्यावरण क्लीयरेंस लेना अनिवार्य कर दिया. इसके बाद से खान विभाग ने बालू घाटों पर बालू की निकासी पर रोक लगा दी. हालांकि अभी भी अवैध तरीके से बालू की ढुलाई हो रही है. शहरों में ऊंची दरों पर बालू की बिक्री की जा रही है.

सीएम ने दिया था बंदोबस्ती का निर्देश : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अगस्त के अंतिम सप्ताह में बालू घाटों के मुद्दे पर बैठक कर नियमानुसार बंदोबस्ती करने का निर्देश दिया था. इसके बाद बालू घाटों की बंदोबस्ती की प्रक्रिया चल रही है.

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