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– हरिवंश – झारखंड का एक और स्थापना दिवस और उत्सव-मेला ! यही हमारी चर्चा, चिंता, तैयारी और बहस के विषय हैं. निजी जीवन में जन्म दिन हो या देश स्तर पर स्वाधीनता दिवस हो या राज्य की स्थापना दिवस के अवसर, होना तो चाहिए कि ईमानदार आत्मविश्लेषण हो. कहां के लिए चले थे, कहां […]

– हरिवंश –
झारखंड का एक और स्थापना दिवस और उत्सव-मेला ! यही हमारी चर्चा, चिंता, तैयारी और बहस के विषय हैं. निजी जीवन में जन्म दिन हो या देश स्तर पर स्वाधीनता दिवस हो या राज्य की स्थापना दिवस के अवसर, होना तो चाहिए कि ईमानदार आत्मविश्लेषण हो.
कहां के लिए चले थे, कहां पहुंचे? मंजिल क्या थी, हासिल क्या हुआ? पर हम यथार्थ से बचना चाहते हैं. क्योंकि सच से रू-ब-रू होना पीड़ादायक प्रक्रिया है. पर रास्ते पर चले बिना झारखंड सुशासित और विकसित राज्य नहीं बननेवाला.
सबसे पहले झारखंड की राजनीति पर नजर. यह पक्ष-विपक्ष यानी एनडीए-यूपीए की बात नहीं है. क्या इस राज्य की पूरी राजनीति, कहीं से प्रेरित करती है? सपने दिखाती है? राज्य के लिए कोई विजन पालती है? राजनीतिज्ञों के बरताव, शाही अंदाज (राजकोष की बदौलत), विधानसभा में बहस-स्तर, सार्वजनिक बातचीत-बहस या उनके निजी चरित्र, कहीं से प्रेरित या उत्साहित करते हैं?
क्वालिटी ऑफ पॉलिटिक्स (राजनीति का स्तर) या क्वालिटी ऑफ पॉलिटिशियन (राजनीतिज्ञों का स्तर) कैसे हैं? इन सवालों के विश्लेषण की जरूरत नहीं, पर हम याद रखें कि अंतत: राजनीति ही समाज को नयी ऊर्जा, गति और दिशा देती है.
क्या झारखंड के छह वर्ष होने के उत्सव-अवसर पर हमारे शासक-विपक्ष और हम जनता, राजनीति का स्तर सुधारने का संकल्प ले सकते हैं? हमारी राजनीति ने भ्रष्टाचार और बिचौलियों से यश और नाम कमाया है. क्या यह छोड़ने का इरादा हम आज बना सकते हैं?
हालांकि यह काम सरकारों या शोध संस्थाओं का है कि वे ऐसे अवसरों पर राज्य की प्रगति का मुकम्मल मूल्यांकन करायें. पर प्रभात खबर ने दिल्ली स्थित देश की दो महत्वपूर्ण संस्थाओं से झारखंड की प्रगति का अध्ययन कराया है. अंतरराष्ट्रीय स्तर के जाने-माने लोगों से विश्लेषण कराया है.
पहली शोध संस्था है, इंडिक्स एनालिटिक्स, जिसने झारखंड इन सिक्सथ इयर अध्ययन कराया है. इस रिपोर्ट के महत्वपूर्ण अंश, आज के अखबार के परिशिष्ट के साथ हैं. दूसरी संस्था है सेंटर फार सिविल सोसाइटी, जिसने झारखंड सिटीजंस हैंडबुक तैयार किया है. इस रिपोर्ट के महत्वपूर्ण अंश भी आज प्रभात खबर परिशिष्ट के साथ हैं.
ये दोनों रपटें मूलत: अंग्रेजी में हैं और ये दोनों अंग्रेजी में भी छप रही हैं. ये दोनों अध्ययन, झारखंड की छह वर्षों की यात्रा के बारे में यथार्थ से हमें रू-ब-रू कराते हैं. अनेक अप्रिय तथ्य सामने आये हैं. हमारी कार्यकुशलता, क्षमता और दृष्टि को उजागर करते हुए. क्या हमारी राजनीति में ऐसे अध्ययनों के निष्कर्षों को बहस का विषय बनाने की इच्छा है?
गवर्नेस की क्या स्थिति है? शहर हों या गांव, दोनों लगातार गंभीर चुनौतियों और समस्याओं से घिरते जा रहे हैं. शहरों में स्लम का मामला हो, ट्रैफिक जाम का सवाल हो, पीने के पानी का प्रसंग हो, कानून-व्यवस्था की स्थिति हो, क्या कहीं एक जगह सुशासन का नमूना हम दिखा सकते हैं?
गांवों, किसानों या मजदूरों के उलझते विषय अलग हैं. सिंचाई की स्थिति, सरकारी योजनाओं के हालात, सड़कों की बदहाली और ऐसे अनेक गंभीर सवाल झारखंड को कहां ले जा रहे हैं? क्या राज्य योजना बोर्ड इन सवालों के संदर्भ में काम कर रहा है? शायद छह वर्षों में हम राज्य का भविष्य तय करनेवाली संस्था राज्य योजना बोर्ड तक गठित नहीं कर पाये हैं.
यही है हमारी क्षमता और योग्यता. पर मंत्रियों, विधायकों के तनख्वाह, सुख-सुविधाएं बढ़ाने का प्रसंग हो, तो देखिए सक्रियता. जो समाज अपने दीर्घकाल की योजनाएं नहीं बनाता, सपने नहीं देखता, वह पिछड़ा, दुखी और पीड़ित रहने के लिए ही अभिशप्त है.
विधायिका के स्तर देखें. विधायिका, वह मंच है, जहां राज्य की गंभीर चुनौतियों-सवालों पर बहस हो सकती है. सवालों के हल ढूंढे जा सकते हैं. क्यों छह वर्षों में दूसरे राज्य आगे निकल गये? साथ बने उत्तरांचल और छत्तीसगढ़, कई क्षेत्रों में झारखंड से काफी आगे हो गये हैं, पर कैसे और क्यों? क्या झारखंड की विधायिका में ऐसे प्रसंग कभी उठे? देश के विकसित राज्य, क्यों तेजी से आगे बढ़ रहे हैं?
इसी संविधान और व्यवस्था के तहत सबसे समृद्ध राज्य बनने की संभावनावाला राज्य (खनिज संपदा से भरपूर) झारखंड, सबसे पीछे है? कहां चूक हो रही है? राजकाज, गवर्नेस, विकास के काम, खेती को समृद्ध करने के प्रयास में कहां कठिनाई है, और कैसे दूर किया जा सकता है? नये उद्योग-धंधे कैसे खुल सकते हैं? विस्थापन की पीड़ा के हल क्या हैं? आदिवासियों, दलितों, गरीबों, अल्पसंख्यकों वगैरह को विकास की मुख्यधारा से कैसे जोड़ा जा सकता है? शिक्षा-स्वास्थ्य में उल्लेखनीय उपलब्धि और महिलाओं की तेज प्रगति के क्या रास्ते हैं? शिक्षण संस्थाओं को कैसे दुरुस्त किया जा सकता है? भ्रष्टाचार के कैंसर का कोई इलाज है? जब तक विधायिका ऐसे सवालों के उत्तर ढूंढने की ईमानदार कोशिश नहीं करेगी, वह अपनी उपयोगिता खो देगी.
हां! छह वर्षों की यात्रा में झारखंड ने चारणों, भाटों, दलालों, पराश्रितों और साइकोफेंट्स (चाटुकारों) का एक नया वर्ग खड़ा कर दिया है. गौर से देखिए, मुख्यमंत्री-मंत्री कोई रहे, कुछ चेहरे हमेशा और हर मुख्यमंत्री-मंत्री के साथ या आसपास दिखाई देंगे. झारखंड के इन नये ‘ कलाकारों’ का ‘ सार्वजनिक अभिनंदन’ होना चाहिए. अगर इनकी संख्या बढ़ी, तो झारखंड तबाह होगा और ये घटे, तो झारखंड निखरेगा. कम से कम आज इस स्थापना दिवस पर यह हम ध्यान रखें और सोचें कि यही हाल रहा, तो आनेवाले छह वर्षों में हम कहां खड़े होंगे?
दिनांक : 15-11-2006

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