रांची: राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य एनसी सक्सेना ने कहा है कि राज्य में वन अधिकार कानून की स्थिति अच्छी नहीं है. आदिवासी अपने अधिकार और कानून को लेकर आज भी आशंकित रहते हैं. वन में रहनेवालों के लिए ही कई प्रकार के वनोत्पाद पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. ऐसे में यह जरूरी है कि वनों में उपज बढ़ाने का सार्थक प्रयास होना चाहिए. इससे वन क्षेत्र में रहनेवाले लोगों को भी परेशानी नहीं होगी. श्री सक्सेना मंगलवार को वन अधिकार कानून पर आयोजित आठ राज्यों की दो दिवसीय बैठक में बोल रहे थे. इसका विषय है : उग्रवाद प्रभावित जिलों में वन अधिकार कानून को लागू करने में आ रही चुनौतियां. आयोजन में यूएनडीपी सहयोगी है. स्वागत कल्याण विभाग के सचिव राजीव अरुण एक्का ने किया. संचालन विशेष सचिव दीपक सिंह ने किया.
खुशहाली का आधार बने कानून : विभा
जनजातीय कल्याण मंत्रलय की सचिव विभा पी दास ने कहा : भारत सरकार जल्द ही वन उत्पादों का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी करेगी. वन अधिकार कानून को सिर्फ जमीन आवंटन के लिए नहीं, खुशी का आधार बनाया जाना चाहिए. छत्तीसगढ़ और ओड़िशा ने इस कानून के क्षेत्र में अच्छा काम किया है.
अधिकार कैसे मिले, यह भी देखें: आरएस शर्मा
राज्य के मुख्य सचिव आरएस शर्मा ने स्वीकार किया कि राज्य में वन अधिकार कानून का क्रियान्वयन अच्छी तरह नहीं हुआ है. केवल अधिकार के लिए कानून बना देने से कुछ नहीं होगा. अधिकार उन्हें कैसे मिले, यह देखना महत्वपूर्ण है.
जंगलों का विनाश रोकने में सरकार विफल : हेमंत
बैठक का उदघाटन करने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि आज कोई भी व्यक्ति मजबूरी में गलत रास्ता अख्तियार करता है या हथियार उठाता है. कानून को सही रूप में धरातल पर उतारा जाता, तो स्थिति यह नहीं होती. जंगलों का विनाश रोकने में राज्य या केंद्र सरकार सफल नहीं हो सकी है. आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में है. वन अधिकार कानून का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है. इस पर केंद्र व राज्य सरकार को व्यापक नजरिया बनाना होगा.