रांची: राज्य में संस्कृत की पढ़ाई दम तोड़ रही है. राज्य गठन के बाद राज्य में एक भी संस्कृत विद्यालय नहीं खोले गये. जो विद्यालय पहले से थे, वे भी खस्ता हालत में हैं. विद्यालय की खराब स्थिति का असर विद्यार्थियों की संख्या पर भी पड़ा है.
राज्य में संस्कृत पढ़नेवाले विद्यार्थियों की संख्या में लगातार कमी आ रही है. मध्यमा (संस्कृत) से परीक्षा में शामिल होनेवाले विद्यार्थियों की संख्या दो से तीन हजार तक रह गयी है. राज्य में संस्कृत स्कूल लगातार बंद हो रहे हैं. निजी व सरकारी दोनों संस्कृत स्कूल बदहाली स्थिति में हैं. राज्य में फिलहाल छह राजकीय संस्कृत स्कूल रांची, देवघर, धनबाद, हजारीबाग, चाईबासा व मेदिनीनगर में हैं.
इन स्कूलों में वर्ष 1987 के बाद से शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है. स्कूल में शिक्षक के कुल 63 पद सृजित हैं. जिसमें वर्तमान में मात्र 10 शिक्षक कार्यरत हैं. शिक्षकों के 53 पद रिक्त हैं. सरकारी संस्कृत स्कूल के अलावा राज्य में छह अनुदानित संस्कृत स्कूल हैं.
राज्य भर में तीन हजार परीक्षार्थी
राज्य गठन के बाद मध्यमा (संस्कृत ) से परीक्षा में शामिल होनेवाले परीक्षार्थियों की संख्या कम हुई. वर्ष 2005 में 7,821 परीक्षार्थी परीक्षा में शामिल हुए थे, जबकि वर्ष 2014 में 2,838 परीक्षार्थी ही परीक्षा में शामिल हुए.
झारखंड गठन के समय राज्य में लगभग 130 संस्कृत प्राथमिक सह मध्य विद्यालय व उच्च विद्यालय थे. राज्य गठन के बाद इन विद्यालयों को मान्यता (प्रस्वीकृति) लेने को कहा गया. 130 स्कूलों में लगभग 50 स्कूल बंद हो गये. स्कूलों की मान्यता की प्रक्रिया वर्ष 2011 में शुरू की गयी. इसके तहत झारखंड एकेडमिक काउंसिल द्वारा अब तक 38 स्कूलों की अनुशंसा मानव संसाधन विकास विभाग से की गयी है. इसमें से 30 स्कूलों को विभाग स्तर से भी मान्यता मिल गयी है.