रांची: झारखंड सरकार ने प्राइवेट यूनिवर्सिटी एक्ट (निजी विवि कानून) अब तक नहीं बनाया है. बगैर एक्ट बने ही राज्य में निजी विश्वविद्यालय (विवि) खोले जा रहे हैं.
राज्य में तीन निजी विवि संचालित हैं. हालांकि निजी विवि खोलने के लिए एक सामान्य नियम बना कर कैबिनेट से इस पर अनुमोदन ले लिया गया है. दरअसल उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निजी विवि को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने एक्ट बनाने का प्रावधान किया है. विभिन्न राज्यों ने इसका पालन भी किया है, पर झारखंड में इसकी पहल नहीं हुई है. राज्य में यूजीसी की गाइडलाइन का पालन भी नहीं हो रहा है.
निजी विवि संबंधी जिस बिल (रुल्स) का अनुमोदन राज्य कैबिनेट ने किया है, उसके मुताबिक विवि को कम से कम 20 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करना होगा. वहीं विवि को कम से कम 25 हजार वर्गफुट भवन का निर्माण करना है. वहीं विवि को किसी कोर्स का संचालन करने से पहले पाठय़क्रम या कार्यक्रम, फैकल्टी व आधारभूत संरचना का विकास करना जरूरी है. इसके अलावा ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआइसीटीइ), बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआइ) डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (डीसीआइ), नेशनल काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन ( एनसीटीइ) व फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआइ) जैसी वैधानिक संस्थाओं से अपने कोर्स की सहमति लेनी है. कोर्स का संचालन अपने ही कैंपस में करने की भी बाध्यता है. किराये के भवन में विवि नहीं चलाया जा सकता. इधर झारखंड में इन सब का पालन नहीं हो रहा.
किसी कोर्स के संचालन से पहले यूजीसी से संबंधित विवि का निरीक्षण व अनुमोदन जरूरी होता है. पर झारखंड में निजी विवि चलानेवालों ने यूजीसी से अनुमोदन नहीं लिया है. ये बगैर फैकल्टी के दो सौ से अधिक कोर्स संचालित कर रहे हैं. इन विवि के पास उतने कमरे भी नहीं, जितनी संख्या में यह विभिन्न कोर्स ऑफर कर रहे हैं. बगैर इंफ्रास्ट्रर व फैकल्टी के यहां तकनीकी क्षेत्र का डिप्लोमा, डिग्री, पीजी व पीएचडी कोर्स उपलब्ध कराने का दावा किया जा रहा है. निजी विवि किसी कॉलेज को अपनी संबद्धता (एफिलियेशन) नहीं दे सकते हैं. पर अब तक खुले निजी विवि में से दो को इसकी अनुमति दे दी गयी है. राज्य सरकार की ओर से इन निजी विवि के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति की सुविधा भी दी जा रही है. जबकि इनके कोर्स को संबंधित वैधानिक संस्थाओं की मान्यता नहीं है. वहीं बगैर यूजीसी के अनुमोदन के विवि की डिग्री की मान्यता नहीं होती है. यानी इन निजी विवि में पढ़नेवाले राज्य के विद्यार्थियों को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार शिक्षण शुल्क का निर्धारण शुल्क निर्धारण समिति करेगी. पर किसी निजी विवि में इसका पालन नहीं हो रहा. निजी विवि को विभिन्न कार्यो के लिए नियम व शर्ते निर्धारित करनी हैं, पर अब तक इन्होंने परीक्षा व सेवा संबंधी नियम तय नहीं किये हैं. अपने शिक्षक व शिक्षकेतर कर्मियों को वेतन व अन्य लाभ देने के मामले में भी निजी विवि नियम नहीं मानते हैं.
निजी विवि खोलने के लिए कोई नियम तय नहीं था. अब कैबिनेट से विवि संबंधी एक कॉमन रूल्स का अनुमोदन ले लिया गया है, जो एक सितंबर से मान्य है. अब नये निजी विवि इसी प्रावधान के तहत खुलेंगे. पहले खुले विवि के अपने-अपने एक्ट को मंजूरी दी गयी थी.
डीएन ओझा, निदेशक उच्च शिक्षा