रांची : रंजीत उर्फ रकीबुल और उसकी मां की लाइफ स्टाइल रइसों वाली थी. बेटा दिन के 10.30 बजे तक उठता था, जबकि मां दिन के 11 बजे जगती थी. कभी-कभी तो वह दिन के 12 बजे उठती थी. जगते ही दोनों के हाथ में चाय चाहिए था.
सबसे अजीब बात यह थी कि इन लोगों की जिंदगी रात में ही शुरू होती थी. बेटा रात में बाहर रहता था. डेढ़ से दो बजे तक वह घर लौटता था. तब तक उसकी मां दीवान पर लेट कर उसका इंतजार करती थी. इस दरम्यान तारा व काम करनेवाली दोनों से बारी-बारी से मां तेल लगवाती थी. समय मिलने पर भी तारा को बिस्तर में लेटने की अनुमति नहीं थी. ड्राइंग रूम के सोफा में बैठ कर उसे रंजीत का इंतजार करना पड़ता था. जब डेढ़-दो बजे रंजीत लौटता, तब सभी खाना खाते थे.
खाना खाने के बाद मां-बेटा करीब दो घंटे तक बात करता था. इस दौरान भी तारा को सोने की इजाजत नहीं थी. करीब चार बजे जब दोनों मां-बेटे सोने जाते, तभी तारा को सोने का मौका मिलता था. रोजाना का यही हाल था.
* ठीक से सो भी नहीं पाती थी तारा
तारा एक दिन में तीन-साढ़े तीन घंटे ही सो पाती थी. मां-बेटे के सोने के बाद चार-साढ़े चार बजे सुबह रोज सोती थी. फिर तीन-साढ़े तीन घंटे में उठ जाती थी, क्योंकि उसे नहा कर नाश्ता बनाना पड़ता था. दिन के 10-11 बजे तक नाश्ता तैयार करना होता था. मां-बेटे को उठने के साथ ही हाथ में चाय देनी पड़ती थी. दाई सब्जी काटती थी, पर खाना तारा ही बनाती थी.
* हर दिन 2.5 किलो बनता था चिकेन
उसके घर में हर दिन चिकेन बनता था. रोज 2.5 किलो चिकेन घर में आता था. घर में रहनेवाले सारे लोग दो-दो पीस चिकेन खाते थे. बाकी चिकेन रंजीत का कुत्ता ब्राउनी खाता था. जब भी मां-बेटा खाना खाये, तो उन्हें गरम खाना चाहिए. चाय पीने की शौकीन दोनों हैं, इसलिए बार-बार दोनों को चाय चाहिए. सब कुछ उन्हें हाथ में नहीं मिला, तो तारा आफत आ जाता था.
* कुत्ता भी खाता था केएफसी का चिकेन
कुत्ता ब्राउनी भी केएफसी का चिकेन खाता था. तारा के लिए नहीं, बल्कि ब्राउनी के केएफसी से चिकेन का बकेट आता था. ब्राउनी को रोस्टेड चिकेन पसंद था. घर में भी उसके लिए स्पेशल चिकेन बनता था. अगर चिकेन फ्रीज में हो, तो तारा उसे गरम करके ब्राउनी को देती थी.