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तीन किमी जाकर करते हैं मोबाइल चार्ज

अब तक बिजली सुविधा से वंचित है चैनपुर का सगरदिनवा गांव गांव में कब बिजली आयेगी, यह एक सुलगता सवाल है. इस सवाल पर गांव के लोग निराश हो जाते हैं. गांव में अब तक सड़क भी नहीं बनी है. चैनपुर : पलामू : गांव से होकर बिजली का तार गुजरा है, पर बिजली नहीं […]

अब तक बिजली सुविधा से वंचित है चैनपुर का सगरदिनवा गांव

गांव में कब बिजली आयेगी, यह एक सुलगता सवाल है. इस सवाल पर गांव के लोग निराश हो जाते हैं.

गांव में अब तक सड़क भी नहीं बनी है.

चैनपुर : पलामू : गांव से होकर बिजली का तार गुजरा है, पर बिजली नहीं मिली. यह स्थिति है चैनपुर प्रखंड की सलतुआ पंचायत के सगरदिनवा गांव की. सगरदिनवा गांव चैनपुर प्रखंड मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. पर आज तक इस गांव में बिजली नहीं पहुंची है.

चैनपुर में सेमरा ग्रिड से बिजली की आपूर्ति की जाती है, इसके लिए रंका होते हुए सेमरा तक बिजली पहुंची है. सेमरा और रंका के बीच में ही सगरदिनवा गांव है. फिर भी गांव में बिजली नहीं है. गांव में कब बिजली आयेगी, यह एक सुलगता सवाल है. इस सवाल पर गांव के लोग निराश हो जाते हैं, कहते हैं कि देखिए कब तक बिजली आयेगी? क्या प्रयास नहीं किया आपलोगों ने. यह सवाल मानो गांव के लोगों के लिए जले पर नमक के समान है. वह कहते हैं भला कौन नहीं चाहता सुविधा के बीच रहना. प्रयास तो कर चुके, पर जब कोई नतीजा नहीं निकला. थक-हार कर बैठ गये हैं भगवान के भरोसे. इस गांव में 50 से 60 घर हैं. आबादी 400-500 के करीब है. इसमें अनुसूचित जाति व अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लोग रहते हैं.

शंकर साव की उम्र 70 साल के आसपास है. वह कहते हैं कि 10 वर्ष हो ही गये होंगे प्रयास करते हुए. बिजली विभाग को आवेदन भी दिया. विभाग ने कहा कि सर्वे करा लेंगे, उसके बाद बिजली पहुंच जायेगी.

पर पता नहीं विभाग की सर्वे टीम कहां रह गयी. कंप्यूटर, इंटरनेट के युग में ढिबरी पर ही आस. गांव के लोगों के पास मोबाइल है, जिसे चार्ज के लिए वे लोग तीन किलोमीटर दूर सलतुआ आते हैं. कुछ पैसा खर्च करते हैं, उसके बाद चार्ज करा कर वापस लौटते हैं. गांव में जाने वाली सड़क भी बदहाल है. 15-20 साल पहले सड़क का निर्माण हुआ था, उसके बाद से वह भी उपेक्षित पड़ा हुआ है. बरसात के दिनों में यदि तहले नदी में पानी हो, तो गांव जाने के लिए सलतुआ पहाड़ चढ़कर गांव जाना पड़ता है.

इस मौसम में कोई बीमार हो जाये और नदी उफन रही हो, तो मुश्किल होती है. रात में पहाड़ चढ़ कर ही सलतुआ आना पड़ता है. ग्रामीण महेंद्र सिंह कहते हैं कि बाबू तहले का कोई ठिकाना नहीं, वह बिना कहले आ जाती है. मुश्किल हम लोगों को हो जाती है. उनलोगों को दर्द इस बात का है कि समस्या सुनने के बाद भी अभी तक गांव की समस्या दूर करने की दिशा में शासन व प्रशासन गंभीर नहीं है. गांव के लोग अच्छे दिन के उम्मीद में हैं. न जाने सगरदिनवा के ग्रामीणों के लिए अच्छे दिन कब आयेंगे?

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