धरा रह गया युवाओं के पायलट बनने का सपना
आनंद जायसवाल
दुमका : संताल परगना के आदिवासी और पहाड़िया युवक -युवतियों का नीले आकाश में उड़ान भरने का सपना अधूरा ही रह गया. उपराजधानी दुमका में वर्ष 2008 में शुरू की गयी सोना सोबरन राष्ट्रीय उड़ान अकादमी के दिन अब तक नहीं बहुरे हैं. बड़े ही तामझाम के साथ इस उड़ान अकादमी का शिलान्यास उस वक्त किया गया था. इसके लिए जेलिन विमान और ग्लाइडर दुमका पहुंचा था.
उद्घाटन के बाद नामांकन के लिए विज्ञप्ति भी जारी हुई थी और युवाओं ने आवेदन भी दिया था, लेकिन इन अभ्यर्थियों का यहां एक भी उड़ान प्रशिक्षण संचालित नहीं हो पाया. इस योजना के तहत प्रत्येक वर्ष आदिम जाति और जन जाति वर्ग के 30 युवक-युवतियों को पायलट का प्रशिक्षण दे कर रोजगार उपलब्ध कराना था. सपनों की उड़ान भरने वाले युवक युवतियों के लिए रोजगार तो दूर प्रशिक्षण भी इनके सपने बने रह गये.
रांची मंगवा लिया गया प्रशिक्षण विमान
डीजीसीए एवं एयर ट्रैफिक कंट्रोल से एनओसी लिए वगैर इस अकादमी को दुमका में खोला गया था. लिहाजा जब राज्य में राष्ट्रपति शासन का दौर आया तो इसे सिरदर्द मानते हुए संस्थान को आगे बढ़ाने का निर्णय नहीं लिया गया. नागर विमानन विभाग के लोगों ने दुमका एयरपोर्ट से खूंटा-चौका तक उठा लिया. अफसर-पायलट बुला लिए गये और प्रशिक्षु विमान भी वापस हो गये.
कई अनियमितताएं भी सामने आई. इन पांच-सवा पांच सालों में झारखंड ने कई राजनीतिक बदलाव भी देखे. शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन पहले विभाग के मंत्री बने, अब सत्ता के शीर्ष पर है, लेकिन उनके नेतृत्व वाली सरकार ने भी इसके लिए ठोस पहल नहीं की है. बहरहाल जिस उत्साह के साथ सोना सोबरन राष्ट्रीय उड़ान अकादमी की नींव डाली गयी थी और फिर जिस तरह यह पूरी योजना खटाई में पड़ गयी, प्रशिक्षण की आस लगाये बैठे छात्रों को निराशा ही निराशा हाथ लगी है.
शिबू ने अपने माता-पिता के नाम से खोली थी अकादमी
राज्य की तत्कालीन सरकार ने एविएशन के क्षेत्र में झारखंड को अंतरराष्ट्रीय फलक पर भी लाने की मंशा के साथ इस उड़ान अकादमी स्थापित किया था. क्षेत्र के सांसद शिबू सोरेन ही मुख्यमंत्री थे. 10 नवंबर 2008 को दुमका एयरपोर्ट पर बहुत ही धूम-धड़ाके के साथ शिबू सोरेन के मां-पिताजी के नाम से यहां जब सोना सोबरन राष्ट्रीय उड़ान अकादमी का शिलान्यास किया गया था. यहां के युवाओं ने आसमान को छूने की उम्मीदें लगायी थी और अभिभावकों ने अपने बच्चों को पायलट बनाने का सपना देखा था. लोग तत्कालीन सरकार के इस बड़े फैसले से काफी खुश थे, लेकिन उनके सपनों को ग्रहण लगना तब शुरू हो गया जब चार महीने बाद ही शिबू सोरेन सत्ता गवां बैठे.