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पढ़ाई नहीं होने से छात्रों को खरीदना पड़ता है गेस पेपर

हाजीपुर : कॉलेज के छात्र-छात्राओं की पढ़ाई गेस पेपर व महंगी नोट्स से पूरी करने की विवशता बढ़ती जा रही है. महाविद्यालय में समय पर क्लास नहीं होने के कारण सिलेबस भर की पढ़ाई भी नहीं हो पाती है. संबंधित विषयों के प्राध्यापकों द्वारा नोट्स व गेस पेपर लेने की सलाह दी जाती है, जिसमें […]

हाजीपुर : कॉलेज के छात्र-छात्राओं की पढ़ाई गेस पेपर व महंगी नोट्स से पूरी करने की विवशता बढ़ती जा रही है. महाविद्यालय में समय पर क्लास नहीं होने के कारण सिलेबस भर की पढ़ाई भी नहीं हो पाती है. संबंधित विषयों के प्राध्यापकों द्वारा नोट्स व गेस पेपर लेने की सलाह दी जाती है, जिसमें संभावित प्रश्नों की सूची होती है. परीक्षा नजदीक आने पर परीक्षार्थियों का विचलित होना स्वाभाविक है.

ऐसी हालात में महंगी गेस पेपर व नोट्स बेचना और आसान हो जाता है, लेकिन बहुत ऐसे भी छात्र है जो पैसे के अभाव में गेस पेपर आदि सामग्री नहीं खरीद पाते हैं. उनके समक्ष परीक्षा में लिख पाना मुश्किल होता है. अगर समय पर वर्ग में विषयवार तरीके से पढ़ाई होती तो छात्र-छात्राओं के सामने ऐसी विकट स्थित पैदा नहीं होती.

क्लास चलने से फायदे व नुकसान : विगत कुछ वर्ष से उच्चस्तरीय शिक्षा के ढंग बदलने लगे हैं. क्लास रूम में पढ़ाई के बदले नोट्स बांटने का सिलसिला शुरू हुआ. जिस वक्त पुस्तक की विषयवार तरीके से पढ़ाने का दौड़ हुआ करता था. उस वक्त के छात्रों को गहराई से जानकारी होती थी. परीक्षा में नकल की नौबत नहीं होती थी. कदाचार के गुंजाइश नहीं होती थी, लेकिन अब शिक्षा का व्यवसायीकरण होने से स्तर गिरा है. छात्रों को किताब ज्ञान आधा-अधूरा ही रह जाता है. किसी विषय में संपूर्ण ज्ञान नहीं दिखतीं है. परीक्षा में पूछे जाने भर की पढ़ाई सिमटती जा रही है, जिससे छात्रों के बीच शुद्ध भाषा और पूर्ण ज्ञान का घोर अभाव दिखता है. पुस्तक के अलावा पासपोर्ट, गेस पेपर व नोट्स की मुंह मांगी कीमत चुकाना परीक्षार्थियों के लिए संकट है. परंतु दूसरा कोई निदान भी नहीं हैं.

बाजार में उपलब्ध है पाठ्य सामग्री : शहर के अधिकतर पुस्तक बिक्री केंद्र पर गेस पेपर पासपोर्ट व नोट्स उपलब्ध है, जिनमें बड़ी-बड़ी प्रकाशन के साथ-साथ स्थानीय प्राध्यापकों के लिखे नोट्स भी बेचे जा रहे हैं. कॉलेज में भी छात्रों को नोट्स खरीदने की सलाह दी जाती है, जिसके बदले छात्रों से मोटी रकम ली जाती है.

हर स्तर पर शिक्षा का व्यवसायीकरण से छात्रों को शोषण होना पड़ता है. निजी कोचिंग संस्थान व गेस पेपर के सहारे छात्रों का भविष्य तय किया जा रहा है. जबकि सरकार द्वारा महाविद्यालयों में शिक्षा के नाम पर प्रति वर्ष करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं. शिक्षा माफियाओं का चांदी कट रही है.

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