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बा बरकत की रात है शब ए बारात

सुपौल : इसलाम में 14वीं एवं 15वीं शअबानुल मुअज्जम की दरमियानी रात एक ऐसी मुबारक और बासआदत (पाक) रात है. जिसमें अल्लाह रब्बुल इज्जत फरियादियों की जायज मुरादों को पूरा करते हुए उनकी कमाई में बरकत देता है. आलमेदीन सह मदरसा मुहम्मदिया के सदर मुदर्रसीन (हेड मौलवी) मौलाना मो वसी रहमानी ने माहे शअबानुल मुअज्जम […]

सुपौल : इसलाम में 14वीं एवं 15वीं शअबानुल मुअज्जम की दरमियानी रात एक ऐसी मुबारक और बासआदत (पाक) रात है. जिसमें अल्लाह रब्बुल इज्जत फरियादियों की जायज मुरादों को पूरा करते हुए उनकी कमाई में बरकत देता है. आलमेदीन सह मदरसा मुहम्मदिया के सदर मुदर्रसीन (हेड मौलवी) मौलाना मो वसी रहमानी ने माहे शअबानुल मुअज्जम की 15वीं रात के बारे में कहते हैं कि अल्लाह तआला ने इस मुकद्दस और बा बरकत रात को शब ए बारात अर्थात लैलतुल बरआत से नवाजने का काम किया है.

इस मौके पर मुसलमान पुरुष-औरत पूरी रात शब बेदारी करते हुए अपने अहले खानदान सहित दुनिया से रूख्स्त होने वालों की गुनाहों से मगफिरत और जहन्नुम से निजात दिलाने के लिये कुरआन मजीद की तिलावत करने अल्लाह तआला से दुआएं मांगने का काम करते हैं. उल्मा का कौल है कि इस मुबारक रात में अल्लाह तआला आसमान से जमीन वालों को आवाज लगाते हुए अपनी जायज मांगों को पेश करने का एलान करते हैं तथा इसी रात में पूरी दुनियां वालों के लिये साल भर का बजट तैयार किया जाता है. 12 महीनों में किसके हिस्से में क्या नसीब होगा, उसका पैमाना तय किया जाता है.

मुसलमान अपने मरे हुए खानदान वालों सहित अन्य के लिये मगफिरत के वास्ते कब्रिस्तानों पर जाकर दुआ मांगते हैं. नमाज मगरिब के बाद से ही मुसलिम औरतें अपने-अपने घरों में लजीज पकवान, हल्वा और दिगर बेहतनी खाने का सामान तैयार कर किसी दीनदार से फातिहा पढ़वा कर अपने बुजुर्गों एवं मृत खानदान वालों के हक में दुआएं करवाते हैं. विशेष कर शबेबरआत में मुसलिम हजरात मसजिदों में नाफिल की नमाज एवं तहज्जुद की नमा ज और तिलावते कुरआन पाक में मशगुल रहते हैं. यह सिलसिला सुबह सादिक अर्थात फजिर की नमाज के अजान से पहले संपन्न हो जाता है. खुश किस्मत है वे लोग जिसे इस मुकद्दस रात में अल्लाह तआला की इबादत कुरआन पाक की तिलावत एवं मरहूमों के लिये मगफिरत का मौका नसीब होता है.

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