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रूढ़िवादी सोच को बदल रहीं बेटियां

महिला दिवस. फौलादी हौसले और नेक इरादों से बढ़ रही हैं आगे बदलते दौर में रुढ़ीवादी संस्कृति समाप्त हो रही है और बेटियां इतिहास रचने को पूरी तरह तैयार हैं. सुपौल : नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुई पुरानी. बेटी-युग के नये दौर की, आओ लिख लें नयी कहानी. बेटी-युग में बेटा-बेटी, सभी […]

महिला दिवस. फौलादी हौसले और नेक इरादों से बढ़ रही हैं आगे

बदलते दौर में रुढ़ीवादी संस्कृति समाप्त हो रही है और बेटियां इतिहास रचने को पूरी तरह तैयार हैं.
सुपौल : नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुई पुरानी. बेटी-युग के नये दौर की, आओ लिख लें नयी कहानी. बेटी-युग में बेटा-बेटी, सभी पढ़ेंगे, सभी बढ़ेंगे.
फौलादी ले नेक इरादे, खुद अपना इतिहास गढ़ेंगे. जी हां, वक्त के बदलते दौर में रुढ़ीवादी संस्कृति समाप्त हो रही है और बेटियां अपना इतिहास खुद रचने को पूरी तरह तैयार हैं और गढ़ भी रही हैं. कवि आनंद विश्वास की यह रचना उन तमाम बेटियों को प्रेरणा दे रही है, जिसने एक बेटी, एक बहु, एक मां, एक बहन, एक पत्नी और न जाने कितने रिश्तों के रूप में उसी पुरुष को सारगर्भित किया है, जिसने उसे पुरुषवादी मानसिकता के तले कुचलने की कोशिश भी की है.
हालांकि बेटियों ने कभी इसका उस तरीके से प्रतिकार नहीं किया. लेकिन अपने बलबूते पर और फौलादी नेक इरादों के बल पर हर उस पुरुष को सोचने पर मजबूर कर दिया, जो बेटियों को कमतर आंकता है. आसमान की उड़ान हो या हौसलों की बेटियां हर मोरचे पर बेटों के साथ कदम से कदम मिलाती आ रही हैं. बल्कि कई ऐसे क्षेत्र भी हैं, जहां बेटियां बेटों से आगे निकल आयी हैं. ऐसी ही कुछ बेटियां सुपौल की भी हैं, जिन्होंने न केवल अपना और अपने परिवार का बल्कि हर उस महिला का मान बढ़ाया है, जो आज भी रुढ़ीवादी सोच और मानसिकता का शिकार हो रही हैं.
महादलित बस्तियों में कर रही नि:शुल्क शिक्षा दान
जिले के सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड मुख्यालय निवासी शिक्षिका बबीता कुमारी की उम्र उस वक्त महज 13 साल की थी, जब वर्ष 1994 में उसके हाथ पीले हो गये थे. नानी की तबियत इतनी खराब थी कि उम्र से पहले ही सपने को पूरा करने के लिए बबीता का विवाह करा दिया गया. बबीता अब चार बच्चों की मां है, लेकिन समाजसेवा का शुरुर उस पर कुछ इस कदर सवार है कि नियमित तौर पर आसपास के महादलित बस्तियों में नि:शुल्क शिक्षा दान कर रही हैं. हर अभियान में प्रतिनिधित्व करती हैं.
बेटे भी नहीं कर सकते बेटियों का मुकाबला
सुपौल – नगर परिषद क्षेत्र के विद्यापुरी वार्ड नंबर 02 निवासी अरविंद भारती का परिवार यूं तो सामान्य है, लेकिन उनकी दो बेटियों तथा उनकी सोच ने इस परिवार को खास बना दिया है. श्री भारती की पुत्री पुष्पम प्रज्ञा और आनंद सेतु तमाम ने बीते पांच वर्ष में ही जिले की पहचान को वॉलीबॉल खेल के लिए संपूर्ण प्रदेश में स्थापित करा दी है. बड़ी बेटी पुष्पम अब बीएचयु में पुरातत्व विज्ञान में स्नातक द्वितीय वर्ष की छात्रा है और गत 26 जनवरी को विभिन्न विधाओं में उसने 15 पुरस्कार प्राप्त किये हैं.
जिले को बनाया चैंपियन
वर्ष 2013 और 2014 में बिहार सब जूनियर स्पोर्टस मीट तरंग प्रतियोगिता में उसने जिले को चैंपियन बनाया, जिसमें कप्तान कोई और नहीं, बल्कि आनंद सेतु थी. एसजीएफआइ अंडर 17 में भी छोटी बहन का साथ निभाते हुए उसने टीम को वर्ष 2013 में जीत दिलायी. वही वर्ष 2014 में बीएफआइ में यही टीम उप विजेता रही. पुष्पम वर्ष 2014 से अब तक चार बार नेशनल गेम्स में शामिल हो चुकी है. खेल के अलावा कला-संस्कृति का कोई भी क्षेत्र हो, दोनों बहनें पीछे नहीं हैं. दोनों ने नाटक, गायन, नृत्य, वादन, मूर्ति कला आदि में दर्जनों पुरस्कार प्राप्त किये हैं.

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