सुपौल : कहते हैं कि सूर्य साक्षात देव का स्वरूप है. अपनी ऊष्मीय ऊर्जा और प्रकाश के कारण सूर्य की पूजा आदिकाल से ही होती रही है. विशेष तौर पर हिंदू संस्कृति में सूर्योपासना का काफी महत्व बताया गया है. मकर संक्रांति का पर्व भी इसी का एक हिस्सा है. यह पर्व माघ मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में मनाया जाता है. हिंदू मान्यताओं में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को सौर वर्ष कहते हैं. पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना क्रांति चक्र कहलाता है. इसी परिधि को 12 भागों में बांट कर 12 राशियां बनी हैं. जिनका नामकरण भी 12 नक्षत्रों के अनुरूप किया गया है.
ज्योतिष में पृथ्वी का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश संक्रांति कहलाता है. मकर राशि में पृथ्वी के प्रवेश के अवसर पर ही मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. इस साल विशेष यह है कि करीब ढाई दशक बाद 14 जनवरी को मकर संक्रांति के मौके पर सर्वाथ सिद्धि और अमृत सिद्धि का योग बन रहा है. हालांकि ऐसे ही कुछ संयोग वर्ष 2013 में भी बने थे, लेकिन इस बार सूर्य का योग काफी प्रबल है. इस बार चंद्रमा का कर्क राशि में अश्लेषा नक्षत्र के पड़ने से प्रीति योग व मानस योग बन रहा है. लिहाजा यह पर्व इस साल संपत्ति का द्योतक माना जा रहा है.
मकर संक्रांति पर बन रहा है महायोग
ज्योतिषाचार्य पंडित निरंजन झा बताते हैं कि लंबे समय के बाद मकर संक्रांति पर महायोग बन रहा है. हालांकि वर्ष 2013 में भी इस प्रकार का कुछ योग बना था. जिसमें 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पुण्यकाल दिन के दो बजे से आरंभ हुआ था. लेकिन इस वर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रांति का पुण्यकाल दिन के 01:56 बजे से शाम 05:17 बजे तक रहेगा. पुण्यकाल 03 घंटा 39 मिनट तक रहेगा. हालांकि पूजा सुबह 07:50 बजे से शाम 05:57 तक की जा सकती है. बताया कि पुण्यकाल इस अवधि के मध्य ही स्नान-दान समेत अन्य कार्य करना श्रेयस्कर होगा. बताया कि सूर्य के उत्तरायन होने के कारण 14 जनवरी से दिन बड़ा होने लगेगा. सूर्य के उत्तरायन रहने का दिन बड़ा रहेगा. बताया कि शास्त्रों के अनुसार उत्तरायन की अवधि देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन की अवधि रात होती है. वैदिक काल में उत्तरायन को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान भी कहा जाता था. बताया कि मकर संक्रांति के दिन यज्ञ में दिये गये द्रव को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं. इसी मार्ग से पुण्यात्माएं शरीर छोड़ कर स्वर्ग लोक में प्रवेश करती है. उन्होंने बताया कि मकर संक्रांति के 15 दिनों के उपरांत शादी-विवाह का लग्न भी आरंभ हो जायेगा.
प्राचीन ग्रीस में भी रही है तिल वितरण की परंपरा
मकर संक्रांति के पर्व का इतिहास प्राचीन रोम से भी जुड़ा हुआ है. कहते हैं कि प्राचीन रोम में भी इस दिन खजूर, अंजीर तथा शहद बांटने की प्रथा का उल्लेख है. जबकि प्राचीन ग्रीस में लोग वर-वधु की संतान वृद्धि के लिए तिल से बने पकवानों का वितरण करते थे. इस दिन कंबल तथा शुद्ध घी के दान को भी पुण्य कार्य माना जाता है. इसके अलावा ग्रंथों में मकर संक्रांति के मौके पर उपवास को काफी फलदायी बताया गया है. ग्रंथों के अनुसार यशोदा जी ने भगवान कृष्ण को पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए भी इसी दिन व्रत रखा था. पर्व को सामाजिक एकता और भाईचारगी का प्रतीक माना जाता है. विशेष तौर पर पंजाब और हरियाणा के इलाके में इसे लोड़ी के रूप में मनाया जाता है. जिसमें बड़ी संख्या में किसान खेत की नयी फसल की बाली अग्नि में आहुति देते हैं.
ऊं सूर्याय नम:
ऊं आदित्याय नम:
ऊं सप्तार्चिषे नम:
अन्य मंत्र हैं – ऋड्मण्डलाय नम:, ऊं सवित्रे नम:, ऊं वरुणाय नम:, ऊं सप्तसप्त्ये नम:, ऊं मार्तण्डाय नम:, ऊं विष्णवे नम: