सुपौल : स्थ्य विभाग के अधिकारी व कर्मियों द्वारा अंजाम दिये गये करोड़ों रुपये के दवा घोटाला मामले के उद्भेदन में अपर समाहर्ता आपदा प्रबंधन द्वारा पूर्व में किये गये जांच का प्रतिवेदन महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. ज्ञात हो कि इस दवा घोटाला को लेकर पूर्व में नगर परिषद के पूर्व उप मुख्य पार्षद सह सांसद प्रतिनिधि मनोज कुमार जैन ने डीएम को आवेदन देकर मामले की जांच की मांग किया था.
तत्कालीन डीएम ने मामले की जांच आपदा प्रबंधन विभाग के अपर समाहर्ता कुमार अरुण प्रकाश को सौंपा था. मामले की जांच के बाद अपर समाहर्ता ने अपना जांच प्रतिवेदन कार्यालय पत्रांक 973-2/आ प दिनांक 24 अक्तूबर 2015 को डीएम को समर्पित किया था. अपर समाहर्ता के जांच प्रतिवेदन में दवा खरीद के दौरान धांधली बरते जाने की पुष्टि होने पर तत्कालीन डीएम ने जांच प्रतिवेदन के आलोक में अपने कार्यालय आदेश ज्ञापांक 1335 दिनांक 25 अक्तूबर 2015 को स्वास्थ्य विभाग द्वारा क्रय की गयी दवा के भुगतान पर रोक लगाते हुए इसकी सूचना कोषागार पदाधिकारी और स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को भेजी थी,
लेकिन लिपिक स्तर पर चल रहे मैनेज की खेल ने अपना असर दिखाया और पुन: डीएम के गोपनीय कार्यालय से अपर समाहर्ता के जांच प्रतिवेदन में अंकित अनियमितता की बिंदु पर कार्यालय पत्रांक 1538 – 2/ गो दिनांक एक नवंबर 2015 को जारी कर घोटाले के आरोपी सिविल सर्जन से साक्ष्य आधारित प्रतिवेदन की मांग की गयी. 22 दिनों के बाद सिविल सर्जन ने अपने कार्यालय के पत्रांक 1283 दिनांक 23 नवंबर 2015 के तहत साक्ष्य आधारित प्रतिवेदन तत्कालीन डीएम को उपलब्ध करवाया. जिसके
समीक्षोपरांत डीएम ने क्रय की गयी दवाओं के भुगतान पर लगाये गये रोक को समाप्त कर दिया. हालांकि तत्कालीन डीएम ने अपने इस पत्र में दवा घोटाले से संबंधित जांच के निष्कर्ष पर कोई टिप्पणी नहीं किया था. जानकार बताते हैं कि उस समय जांच के दौरान दवा खरीद को लेकर विभागीय आदेश, दवा वितरण से संबंधित संचिका या भंडार गृह में बंद करोड़ों के एक्सपायर दवाओं का अवलोकन नहीं किया गया था, लेकिन वर्तमान समय में हो रहे बिंदुवार जांच से मामले की खुलासा होने की उम्मीद बनी हुई है.