आधुनिकता की मार से ग्रामीण बाजारों का वजूद संकट में ग्रामीण स्तर पर स्वरोजगार का रहा है बड़ा साधन बड़हरिया . आधुनिकता व पाश्चात्य संस्कृति की मार ने बाजारों के वजूद का संकट पैदा कर दिया है. प्रखंड के प्राचीन व मशहूर बाजार आज उजड़ने व बिखरने लगे है. प्रखंड में सलारगंज, जोगापुर कोठी, बहादुरपुर, कैलगढ़, सुंदरी, माधोपुर, यमुनागढ़ आदि काफी चर्चित बाजार हुआ करते थे, जो आज अपना वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. दरअसल इन बाजारों की जगह चौक-चौराहों ने ले ली है. बदलते दौर ने तो कुछ बाजारों का अस्तित्व तक मिटा डाला. एक जमाने में पूरे प्रखंड में चर्चित जोगापुर कोठी का बाजार आज अस्तित्व विहीन हो चुका है. वहीं प्रखंड मुख्यालय से सटे यमुनागढ़ का बाजार उजड़ चुका है, जहां सलारगंज बाजार कृषि कार्य के संसाधनों के अलावा सुतरी, रस्सी, पगहा, गलजोर, उबहन, बरहा आदि के लिए चर्चित हुआ करता था. वहीं जोगापुर कोठी बाजार विभिन्न प्रकार के अनाजों के क्रय -विक्रय के लिए जाना जाता था. विश्वकर्मा सिंह बताते हैं कि इस बाजार में बेतिया, रक्सौल सहित पूर्वी चंपारण व पश्चिमी चंपारण की कई जगहों से धान व चावल बैलगाड़ी पर लाद कर आते थे व यहां से कोन लाद कर ले जाते थे. इस प्रकार जोगापुर कोठी बाजार धान व चावल के लिए पूरे परिक्षेत्र में चर्चित था. वहीं बहादुरपुर बाजार कृषि यंत्रों के लिए मशहूर था. यहां से इलाके के किसान खुरपी, हंसिया, कुदाल, हल आदि खरीदते थे. लेकिन खेती कार्यों से निर्भरता हटने के साथ बहादुरपुर बाजार बेमानी हो चुका है. अब बहादुरपुर बाजार शराबियों के अड्डे के रूप में चर्चित हो चुका है, जबकि माधोपुर बाजार खाट व लकड़ी की सामग्री के लिए मशहूर हुआ करता था, जो अब सिमट रहा है. यहां भी सुतरी व उससे निर्मित सामग्री की बड़े पैमाने पर बिक्री होती थी. सलारगंज बाजार की चर्चा के क्रम में पतरहाटा के पूर्व शिक्षक विक्रमा प्रसाद ने बताया कि जब बाजार लगता था, तो उसके पद चाप की आवाज पांच किलोमीटर तक जाती थी, लेकिन हमारी बदली जीवन शैली से बाजारों का स्वरूप भी बदलने लगा है. सलारगंज बाजार में क्रेता व बिक्रेता के विश्राम के लिए शेड का निर्माण कराया गया था, जो अब बेमानी हो चुका है. शेड में भैंस बांधी जाने लगी है व बाजार उठ कर सड़क की पटरियों पर आ चुका है. इसी प्रकार यमुनागढ़ बाजार पर शेड हुआ करता था, आज वहां बाजार ही नहीं लगता है. इस बाजार की जगह बड़हरिया व करबाला बाजार ने ले ली है. कैलगढ़ व लकड़ी बाजार की अपनी खासियतें थीं, लेकिन अब इन बाजरों का स्वरूप भी बदल चुका है. एक जमाने में जीवन में उपयोग होने वाले सभी सामान मुहैया कराये जाते थे, लेकिन अब यह बाजार मात्र सब्जी मंडी बन कर रह गया है. बहारहाल, आधुनिकता की मार व हमारी बदलती जीवन शैली ने बाजारों के अस्तित्व पर खतरा पैदा कर दिया है.
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आधुनिकता की मार से ग्रामीण बाजारों का वजूद संकट में
आधुनिकता की मार से ग्रामीण बाजारों का वजूद संकट में ग्रामीण स्तर पर स्वरोजगार का रहा है बड़ा साधन बड़हरिया . आधुनिकता व पाश्चात्य संस्कृति की मार ने बाजारों के वजूद का संकट पैदा कर दिया है. प्रखंड के प्राचीन व मशहूर बाजार आज उजड़ने व बिखरने लगे है. प्रखंड में सलारगंज, जोगापुर कोठी, बहादुरपुर, […]
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