दोनोें समुदाय के लोग आपसी सहयोग से 84 फुट ऊंचा ताजिया बना कर एकता की अद्भुत मिसाल कायम करते है़ं ग्रामीणों के अनुसार ताजिया निकालने की परंपरा 195 वर्ष पुरानी है़ अंजुमन-ए-अब्बासिया के अध्यक्ष सैयद मो जाहित ने बताया कि मुहर्रम के दिन इस गांव में दो ताजिये निकाले जाते हैं और दोनों की उंचाई 84 फुट ही होती है़ एक ताजिया अंजमुन-ए-अब्बासी के नेतृत्व में निकाला जाता है,
जबकि दूसरा ताजिया अंजुमन-ए-रिजवी के नेतृत्व में निकाला जाता है़ दोनों ताजिये अलग-अलग बनाये जाते हैं और दोनों ही गांव के अलग-अगल इमामबाड़े में रखे जाते है़ं दसवीं की दोपहर में ताजिये को लेकर ग्रामीण सड़कों पर निकलते हैं और सूर्यास्त के पहले करबला पहुंच जाते हैं. ताजिया से जुड़े कारीगरों ने बताया कि करीब ढाई महीने पूर्व ईद का चांद देखने के बाद से ही यहां ताजिये का निर्माण शुरू कर दिया जाता है.
ताजिया में लोहे की कांटी का प्रयोग न करके बांस-रस्सी और कागज मात्र से ही निर्माण किया जाता है़ इस कार्य में गांव के हिंदू-मुसलमान दोनों मुहर्रम के दिन इमामबाड़े से एक विशाल जुलूस के साथ करबला तक ले जाया जाता है.ताजिये के जुलूस में भाग लेने के लिए देश-विदेश के विभिन्न कोने में रहने वाले ग्रामीण गांव में पहुंच गये है़ं