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43 वर्षों बाद भी नहीं मिला सदर अस्पताल का दर्जा

43 वर्षों बाद भी नहीं मिला सदर अस्पताल का दर्जा एक समय था जब जिले के चार-चार विधायक हुआ करते थे सरकार में मंत्रीवर्तमान विधायक भी सरकार में राज्य स्वास्थ्य मंत्री के पद पर हुए थे आसीनसदर अस्पताल को अनुमंडल अस्पताल की ही मिलती है सुविधाजिला बनने के बाद न तो डॉक्टरों और न कर्मचारियों […]

43 वर्षों बाद भी नहीं मिला सदर अस्पताल का दर्जा एक समय था जब जिले के चार-चार विधायक हुआ करते थे सरकार में मंत्रीवर्तमान विधायक भी सरकार में राज्य स्वास्थ्य मंत्री के पद पर हुए थे आसीनसदर अस्पताल को अनुमंडल अस्पताल की ही मिलती है सुविधाजिला बनने के बाद न तो डॉक्टरों और न कर्मचारियों के सृजित पद बढ़ेडॉक्टरों की कमी के कारण नहीं चलते कई विभागों के ओपीडीफोटो:- 07 सदर अस्पतालसीवान. सीवान को जिला बने करीब 43 साल हो जाने के बाद भी सदर अस्पताल को दर्जा नहीं मिलने से लोगों को परेशानी होती है.आज भी सदर अस्पताल को अनुमंडल अस्पताल का ही दर्जा प्राप्त है. तीन दिसंबर, 1972 को सारण जिले से कट कर सीवान जिला बना .वर्तमान में जिले की आबादी करीब 35 लाख के करीब है.सदर अस्पताल पर जिले के 35 लाख लोगों के इलाज की जबाब देही है. सदर अस्पताल को दर्जा नहीं मिलने के पीछे यहां के जनप्रतिनिधि अधिक जिम्मेवार हैं. यहां से चुनाव जीत कर जाने वाले जनप्रतिनिधियों ने कभी भी लोगों के सवास्थ्य की चिंता नहीं की. एक समय था जब राज्य में आरजेडी की सरकार हुआ करती थी.इस जिले के चार-चार विधायक सरकार में मंत्री भी बने. लेकिन सदर अस्पताल को दर्जा दिलाने के लिए किसी ने भी प्रयास नहीं किया.वर्तमान विधायक भी सरकार में राज्य स्वास्थ्य मंत्री के पद पर आसीन हुए, लेकिन सदर अस्पताल को दर्जा दिलाने में कामयाब नहीं हुए.सदर अस्पताल का दर्जा नहीं मिलने से न तो डॉक्टरों और न कर्मचारियों के सृजित पद ही बढ़े. सरकार द्वारा आज भी अनुमंडल अस्पताल की सुविधा सीवान सदर अस्पताल को उपलब्ध करायी जाती है. डॉक्टरों की कमी के कारण आज के समय में शिशु रोग,आर्थोपेडिक्स,स्कीन, इएंडटी जैसे महत्वपूर्ण ओपीडी विभाग बंद हैं. आज के समय में उपाधीक्षक सहित13 चिकित्सकों के पद सृजित हैं. इसमें से करीब 9 पद आज की तारीख में रिक्त हैं. वर्तमान में आर्थोपेडिक्स विशेषज्ञ, शिशु रोग,आइ सर्जन तथा एक महिला डॉक्टर पदस्थापित हैं. इन लोगों के अलावा विभाग ने करीब तीन महिला व करीब तीन पुरुष डॉक्टरों को अनुबंध पर रखा है. कुछ अन्य डॉक्टरों को पीएचसी से सदर अस्पताल में प्रतिनियुक्त कर काम चलाया जा रहा है.संसाधन साबित हुए हाथी के दांतलोगों की सुविधा के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाओं के तहत कई प्रकार के उपकरणों से सदर अस्पताल को लैस तो किया, लेकिन डॉक्टरों व कर्मचारियों के अभाव में सब कुछ हाथी के दांत साबित हुए, जो सिर्फ दिखाने के लिए हैं. लोगों की सुविधा के लिए सदर अस्पताल में आइसीयू व एसएनसीयू का निर्माण किया गया, लेकिन डॉक्टरों व कर्मचारियों की कमी के कारण सब कुछ बरबाद हो रहा है. करीब दो माह पहले विभाग ने एसएनसीयू चलाने के लिए चार डॉक्टरों व दस ए ग्रेड नर्स के पद सृजित किये. सभी पद भरे गये, लेकिन सदर अस्पताल में डॉक्टरों व कर्मचारियों की कमी के कारण सबसे सदर अस्पताल में सेवा ली जा रही है. करीब तीन साल पहले सदर अस्पताल में आइसीयू को चालू किया गया. लेकिन डॉक्टरों व कर्मचारियों के पद सृजित नहीं होने से सब कुछ बरबाद हो रहा है. लोगों को करोडों रुपये खर्च होने के बाद आइसीयू की सुविधा नहीं मिल पाती है.डॉक्टरों व कर्मचारियों की कमी के कारण राष्ट्रीय कार्यक्रम परिवार नियोजन, कुष्ठ उन्मूलन, आरएनटीसीपी, अंधापन निवारण कार्यक्रम सहित कई कार्यक्रमों का लोग फायदा नहीं उठा पाते हैं. महिला डॉक्टरों की कमी के कारण सदर अस्पताल में महिलाओं का सिजेरियन नहीं हो पा रहा है.अनुमंडल स्तर का आवंटन मिलने के कारण अस्पताल प्रशासन मरीजों की सुविधा ठीक से नहीं दे पाता है.

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