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भाई-बहन को खोने के बाद स्वयं जूझ रही टीबी से
सीवान : जिले के जीरादेई प्रखंड की रहनेवाली 30 वर्षीया अविवाहिता सुमन कुमारी (काल्पनिक) अपने भाई-बहनों की टीबी से हुई मौत के बाद स्वयं टीबी की एक्सडीआर मरीज बन कर मौत का इंतजार कर रही है. टीबी लाइलाज वाली बीमारी नहीं है. इसका इलाज संभव है. सरकार ने इसके उन्मूलन के लिए आरएनटीसीपी जैसा महत्वाकांक्षी […]
सीवान : जिले के जीरादेई प्रखंड की रहनेवाली 30 वर्षीया अविवाहिता सुमन कुमारी (काल्पनिक) अपने भाई-बहनों की टीबी से हुई मौत के बाद स्वयं टीबी की एक्सडीआर मरीज बन कर मौत का इंतजार कर रही है.
टीबी लाइलाज वाली बीमारी नहीं है. इसका इलाज संभव है. सरकार ने इसके उन्मूलन के लिए आरएनटीसीपी जैसा महत्वाकांक्षी कार्यक्रम चलाया है, लेकिन सरकार के इन कार्यक्रमों का सुमन के परिवार पर कोई असर नहीं दिखा. टीबी ने सुमन के परिवार पर कहर बरपा कर उसके परिवार को उजाड़ने का काम किया है.
शुरू में पहले सुमन की बड़ी बहन को टीबी हुई. उसके बाद उसके भाई को. परिवार वालों ने उसका इलाज प्राइवेट डॉक्टर से कराया. उसके बाद बाहर दिखाया. लेकिन दोनों को बचाया नहीं जा सका. इस दौरान सुमन को भी टीबी की शिकायत हुई. परिवार के लोगों ने पहले तो उसे लोकल में दिखाया.
उसके बाद स्थिति गंभीर हाने पर बीएचयू में भरती कराया. डॉक्टरों ने जांच के बाद उसे टीबी का एमडीआर मरीज बताते हुए सीवान यक्ष्मा केंद्र रेफर कर दिया. सुमन ने 20 माह तक सदर अस्पताल से दवा लेकर खायी, लेकिन कोई असर नहीं हुआ. 20 माह बाद जब जांच हुई, तो पता चला कि वह एक्सडीआर टीबी की मरीज हो गयी है. बताया जाता है कि उसके एक अन्य भाई को भी कई दिनों से खांसी हो रही है.
इससे परिवार के लोग इस बात से चिंतित हैं कि कहीं उसे भी टीबी न हो जाये.आये दिन बढ़ रही है एमडीआर टीबी मरीजों की संख्या : जिले में पांच जनवारी, 2013 को एमडीआर की दवा लांच की गयी. 24 माह तक यह दवा मरीजों को दी जाती है. जिले में करीब एक हजार टीबी के मरीज है. इसमें 41 एमडीआर, दो एक्सडीआर तथा तीन मरीजों की मौत एमडीआर टीबी से हो गयी है. जिले में एमडीआर मरीजों की देखभाल सही ढंग से नहीं किये जाने से मरीज दवा खाने के बाद ठीक नहीं हो पा रहे हैं.
टीबी मरीजों के डॉट प्रोवाइडर हों या निगरानी करनेवाले एसटीएसएस सभी अपने कार्यो का निर्वहन जिम्मेवारी पूर्वक नहीं करते हैं. टीबी मरीजों की निगरानी के लिए सरकार ने सभी टीयू में एसटीएलएस को बाइक दी है.
लेकिन इस व्यवस्था के बावजूद मरीज दवा खाने में डिफाल्टर हो जाते हैं. जिले के 41 एमडीआर टीबी मरीजों में दवा खाने के बाद करीब आधा दर्जन मरीजों में भी सुधार नहीं दिख रहा है. विभाग के लोगों का कहना है कि ये सभी मरीज प्राइवेट में इलाज कराने के बाद एमडीआर मरीज बने हैं.
क्या कहते हैं पदाधिकारी
ये बात सही है कि सीवान में एक्सडीआर टीबी के दो मरीज हैं. जहां तक सुमन का सवाल है, तो उसके भाई ने पहले पंजाब में प्राइवेट में इलाज कराया. उसके बाद बीएचयू में जांच के बाद सीवान रेफर किया गया.
उसने 20 माह तक एमडीआर की दवा खायी है. उसके बाद एक्सडीआर हुई है. उसके परिवार के भाई-बहनों का टीबी का इलाज कहां हुआ था, इसकी जानकारी नहीं है. उसके एक भाई को खांसी की शिकायत होने पर जांच की गयी. रिपोर्ट निगेटिव आयी है.
डॉ. प्रमोद कुमार पांडेय
जिला यक्ष्मा पदाधिकारी
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