बाल्मीकि मणि तिवारी
सीवान : कौमी एकता का प्रतीक सीवान मौलाना मजहरुलहक की कर्मभूमि रही है. यह क्षेत्र बाहुबली सांसद शहाबुद्दीन व जदयू नेता अजय सिंह के कारण भी चर्चित रहा है. इस बार के चुनाव में दोनों बाहुबलियों की पत्नियां अपना भाग्य आजमा रही हैं.
यहां से राजद ने पूर्व सांसद मो शहाबुद्दीन की पत्नी हिना सहाब को चुनाव मैदान में उतारा है. वहीं एनडीए ने कविता सिंह पर भरोसा जताया है. भाकपा-माले से पूर्व विधायक अमरनाथ यादव ताल ठोंक रहे हैं. वह लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने के लिए प्रयासरत हैं. वहीं सांसद ओमप्रकाश यादव का टिकट कट जाने से वे और उनके समर्थक निराश हैं. सीवान से 19 प्रत्याशी मैदान में है.
महागठबंधन प्रत्याशी हिना सहाब व भाकपा माले प्रत्याशी अमरनाथ यादव जहां तीसरी बार चुनावी समर में उतरे हैं, वहीं एनडीए प्रत्याशी कविता सिंह पहली बार. राजद प्रत्याशी को जहां एमवाइ समीकरण के साथ ही पार्टी के आधार वोट का भरोसा है तो एनडीए प्रत्याशी को नमो लहर व नीतीश कुमार के विकास का सहारा है. इन सबके बीच भाकपा माले प्रत्याशी अमरनाथ यादव को पार्टी के परंपरागत वोट के साथ-साथ समाज के हर वर्ग के लोगों के समर्थन की आशा है.
मो युसूफ साहब पांच बार बने सांसद
भारतीय लोकदल से एक बार 1977 की लहर में देशरत्न डॉ राजेंद्र बाबू के बेटे मृत्युजंय प्रसाद शॉर्ट टर्म के लिए सांसद बने. एक बार यहां का एक सांसद मंत्री भी बना है.
1984 में पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर कांग्रेस से जीतकर केंद्र में शहरी विकास मंत्री बने. हालांकि तब सीवान का विकास नहीं हुआ तो दूसरी बार सीवान के वोटरों ने उन्हें हरा दिया. अब तक अब्दुल गफूर व वृषिण पटेल ही ऐसे दो लोग हैं, जो बाहरी होकर भी यहां से जीते हैं. सीवान संसदीय क्षेत्र में अब तक हुए 16 बार लोकसभा चुनाव में 10 बार मुस्लिम वर्ग को प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है. इस क्षेत्र से दरबार फैमिली के मो युसूफ साहब पांच बार सांसद रह चुके हैं. उनका आज तक किसी ने रिकॉर्ड नहीं तोड़ा है.
शहाबुद्दीन चार बार बने सांसद
1990 में पहली बार जीरादेई विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक बने मो शहाबुद्दीन 1996 से लगातार चार बार 2009 तक सांसद रहे. 2009 के चुनाव में कोर्ट ने उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी, तब राजद ने उनकी पत्नी हिना शहाब को टिकट दिया. लेकिन, निर्दलीय प्रत्याशी ओमप्रकाश यादव ने उन्हें हरा दिया था. 2004 के चुनाव में जेडीयू ने ओमप्रकाश यादव को अपना प्रत्याशी बनाया, लेकिन शहाबुद्दीन के हाथों उन्हें पराजित होना पड़ा. 2009 में जेडीयू ने वृषिण पटेल को मैदान में उतारा. नतीजतन पब्लिक रिएक्शन में आ गयी और एंटी शहाबुद्दीन के वोट का लाभ उन्हें मिल गया. 2014 में ओमप्रकाश यादव को बीजेपी ने अपने दल में शामिल कर टिकट दिया और वे विजयी भी हुए.