सीवान : जिले के पचरुखी प्रखंड के ईटवा गांव की आशा अमना खातून को फर्जी कागजात पर पारिश्रमिक लेने के मामले में मंगलवार को नगर थाने की पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. फर्जी कागज पेश कर भुगतान लेने का प्रयास करने वाली अमना अकेली आशा नहीं है. इस प्रकार के करीब सौ मामले विभाग के वरीय अधिकारियों के संज्ञान में हैं.
जिले में करीब 28 सौ आशा हैं. लेकिन आशा अमना खातून द्वारा गर्भवती महिलाओं के पंजीकरण, टीकाकरण, प्रसव एवं बीसीजी के टीके लगवाने के बाद मिलने वाले पारिश्रमिक का भुगतान जांच करने के बाद क्यों हुआ? इस सवाल का जवाब विभाग के पदाधिकारियों को देना होगा. मरीजों की सेवा में तत्पर आशा अमना की गलती बस यह है कि उसने लेखापाल की मर्जी के खिलाफ काम किया.
उठे सवाल, 28 सौ आशा में सिर्फ अमना का ही जांच के बाद भुगतान क्यों?
अमना की जांच ने जेबीएसवाई में आशा केगलत भुगतान की खोली पोल
अमना की जांच के बाद करीब सौ से अधिक आशा के दावे निकले फर्जी
लेखापाल की मनमानी का विरोध करना महंगा पड़ा आशा अमना को
क्या है लेखापाल एवं आशा अमना के बीच का विवाद
कई बार नोक-झोंक और मुकदमों के बाद जब अमना को अपना पारिश्रमिक नहीं मिला, तो लोक शिकायत निवारण केंद्र में फरियाद लगायी. जिला लोक शिकायत निवारण केंद्र से अमना खातून के पक्ष में ही आदेश हुआ. उसने 57 प्रसूताओं को एएनसी और बीसीजी का टीका लगवाने का दावा किया. लेकिन काफी जद्दोजहद के बाद विभाग ने पहले अमना के दावों की संबंधित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से जांच कराकर मात्र सात केसों के ही विभाग द्वारा 42 सौ रुपये भुगतान किये गये. विभाग ने शेष दावों को फर्जी करार दिया. जेबीएसवाई योजना के तहत फर्जी कागजात पेश कर दावा करने वाली अमना पहली आशा नहीं थी. सैकड़ों आशा ने फर्जी कागजात पेश कर भुगतान प्राप्त कर लिया. उनको पैसे इसलिए मिले की उन्होंने लेखापाल के मन मुताबिक काम किया.
प्रथम अपीलीय में आयुक्त ने अमना के पक्ष में दिया आदेश
अमना हारी नहीं. अपने शेष पारिश्रमिक के भुगतान के लिए लोक शिकायत केंद्र के प्रथम अपीलीय आयुक्त महोदय के यहां न्याय की गुहार लगायी. दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद आयुक्त ने अमना का शेष परिश्रमिक पर सहानुभूतिपूर्वक विचार कर भुगतान करने का आदेश दिया. करीब दो माह तक आयुक्त के आदेश को विभाग के कर्मचारी ने दबाये रखा. वहीं, जब आयुक्त के कार्यालय से इस संबंध में पूछताछ शुरू हुई, तो छह केसों के 36 सौ रुपये का भुगतान विभाग द्वारा किया गया. सवाल यह है कि प्राथमिक चिकित्सा पदाधिकारी द्वारा की गयी जांच में जब सात केस ही सही मिले, तो बाद के मामले कैसे सही हो गये. दूसरा सवाल यह है कि लोक शिकायत निवारण केंद्र का दरवाजा खटखटाने के बाद ही अमना को सात केसों का भुगतान क्यों दिया गया.
क्या कहते हैं जिम्मेदार
आशा अमना खातून पर सदर अस्पताल द्वारा मुकदमा नहीं किया गया है. जब फर्जी कागजात पर भुगतान करने के लिए तरह-तरह से आशा ने दबाव बनाकर लेखापाल को परेशान करने का प्रयास किया, तो लेखापाल ने नगर थाने में एफआईआर दर्ज करायी. एफआईआर करने की बात मेरे संज्ञान में है. यह बात सही है कि करीब सौ आशा ने फर्जी कागजात देकर परिश्रमिक लेने का प्रयास किया था. उन लोगों ने फर्जी साबित होने के बाद भुगतान करने का दबाव नहीं बनाया. इसलिए उन पर एफआईआर नहीं की गयी. जहां तक अमना से कारणपृच्छा करने की बात है, तो यह सिविल सर्जन का काम है .
डॉ एमके आलम, उपाधीक्षक, सदर अस्पताल.