28 दिन चलनेवाला मेला आठ दिन में सिमटा
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रामनवमी पशु मेला का आगाज
28 दिन चलनेवाला मेला आठ दिन में सिमटा 75 फीसदी परिक्षेत्र रहने लगे हैं खाली मेले के अस्तित्व पर आने लगा संकट अब तो सर्कस आना भी हुआ बंद सीतामढ़ी : रामनवमी के अवसर पर सदियों से शहर में लगने वाले देश विख्यात पशु मेले का बुधवार को आगाज हो गया. हालांकि, मेला परिक्षेत्र में […]
75 फीसदी परिक्षेत्र रहने लगे हैं खाली
मेले के अस्तित्व पर आने लगा संकट
अब तो सर्कस आना भी हुआ बंद
सीतामढ़ी : रामनवमी के अवसर पर सदियों से शहर में लगने वाले देश विख्यात पशु मेले का बुधवार को आगाज हो गया. हालांकि, मेला परिक्षेत्र में पिछले दो दिनों से बैलों, किसानों व व्यापारियों का आने का सिलसिला शुरू हो गया था.
मेला परिक्षेत्र से सटे रेड लाइट एरिया होने के कारण संवेदनशीलता को देखते हुए जिला प्रशासन की ओर से पुलिस पदाधिकारियों व जवानों की तैनाती करने के अलावा एंबुलेंस की व्यवस्था भी की गयी है. स्थानीय लोगों ने बताया कि पूर्व में 25 से 28 दिनों तक चलने वाला मेला अब महज सात से आठ दिनों में ही समाप्त हो जाता है.
यदि बारिश या आंधी आ गयी तो दो-तीन दिनों में ही मेला का समापन हो जाता है. बताया कि दो दशक पूर्व जितने बड़े परिक्षेत्र में मेला सजता था, अब उसका 75 फीसदी हिस्सा खाली ही रहता है. इसका कारण ट्रैक्टर समेत अन्य कृषि यंत्रों का किसानों तक पहुंचना है. अब किसी भी गांव में इक्के-दुक्के छोटे किसानों के पास ही बैल रह गये है. बड़े व मझोले किसानों के दरवाजे से बैल गायब हो चुका है.
पूर्व में पूरा मेला परिक्षेत्र बैलों के गले में लटके घंटियों की आवाज से गुंजायमान रहता था, लेकिन अब वह बात इतिहास की बात रह गयी है. स्थानीय लोगों ने बताया कि एक दशक पूर्व तक मेले में प्रदेश के विभिन्न जिलों के अलावा, यूपी, एमपी, झारखंड समेत विभिन्न प्रांतों के अलावा पड़ोसी देश नेपाल के हजारों किसान व व्यापारी बैलों की खरीद-बिक्री करने आते थे. अब वह बात नहीं रही. अब तो अधिक से अधिक सीतामढ़ी-शिवहर जिले के अलावा पड़ोसी जिला मधुबनी, दरभंगा, मोतिहारी, बेतिया व नेपाल तक के लोग ही आते हैं. उनकी संख्या भी काफी कम हो गयी है. लोगों का कहना था कि बैलों की घटती संख्या ने मेले के स्तित्व पर संकट पैदा कर दिया है. बैलों की संख्या भले ही कम हो जाए, लेकिन पूर्वजों से विरासत में मिली इस मिले को सहेज कर रखने के लिए सरकार को विशेष ध्यान देने की जरूरत है. मेला शुरू होने के पूर्व ही शहर का बाजार सज जाता था. मेला व मेले के अवसर पर आने वाले सर्कस को देखने के बसों व ट्रेनों में भीड़ बढ़ जाती थी. शहर खचाखच भरा रहता था, लेकिन अब सभी बातें बीते दिनों की बात रह गयी है. अब कई सालों से सर्कस का आना भी बंद हो गया है.
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