कुव्यवस्था. जिले के अस्पतालों में जेनेरिक दवाओं के लिए नहीं खुला मेडिकल स्टोर
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अब भी सस्ती दवा का इंतजार
कुव्यवस्था. जिले के अस्पतालों में जेनेरिक दवाओं के लिए नहीं खुला मेडिकल स्टोर सीतामढ़ी : केंद्र व राज्य सरकार द्वारा भले ही सरकारी अस्पतालों में गरीबों को सस्ते दर पर दवा उपलब्ध कराने के लिये योजनाएं चलाई जा रहीं है, लेकिन सीतामढ़ी में वर्षों बाद भी केंद्र व राज्य सरकार की सस्ती दवा उपलब्ध कराने […]
सीतामढ़ी : केंद्र व राज्य सरकार द्वारा भले ही सरकारी अस्पतालों में गरीबों को सस्ते दर पर दवा उपलब्ध कराने के लिये योजनाएं चलाई जा रहीं है, लेकिन सीतामढ़ी में वर्षों बाद भी केंद्र व राज्य सरकार की सस्ती दवा उपलब्ध कराने वाली योजनायें लागू नहीं हो सकी है. सालों से जिले के अस्पतालों को सस्ती दवाओं का इंतजार है. जिले के अस्पतालों में न केंद्र सरकार की जन औषधि नामक व्यवस्था है और नहीं राज्य सरकार की जेनेरिक ड्रग स्टोर जैसी सुविधा. यहां तक की गंभीर रोगों के लिए अमृत फार्मेसी नामक मेडिकल स्टोर की भी व्यवस्था जिले के किसी अस्पताल में नहीं दिख रहीं है.
सूबे की सरकार ने सदर अस्पताल में सस्ते दर पर दवा उपलब्ध कराने के लिये जेनेरिक मेडिकल स्टोर जैसी व्यवस्था देने की पहल की. इसके तहत सदर अस्पताल में मेडिकल स्टोर के लिए भवन भी बना. लेकिन पिछले तीन साल से यह भवन दवाओं का इंतजार कर रहा है. सूत्र बताते है कि उक्त दुकानों के संचालन के प्रति कोई संवेदक रूचि नहीं दिखा रहा है. लिहजा सरकार की महत्वाकांक्षी योजना का लाभ गरीबों को नहीं मिल रहा है. वर्तमान में सदर अस्पताल, रेफरल अस्पताल व पीएचसी समेत अन्य अस्पतालों के लिए दवाओं की आपूर्ति टेंडर प्रक्रिया पर निर्भर है. संवेदक द्वारा जिला भंडार गृह को दवाओं की आपूर्ति की जाती है.
भंडार गृह से ही सदर अस्पताल व पीएचसी में दवायें मुहैया कराई जाती है. लेकिन दवाओं की आपूर्ति की व्यवस्था प्रबंधन के अभाव के चलते नकारा साबित हो रहीं है. हालत यह है कि एक बार आपूर्ति की गई दवायें समाप्त हो जाती है तो फिर उसकी आपूर्ति होने में महीनों बीत जाते है. दूसरी ओर दवाओं की आपूर्ति में मनमानी के चलते किसी खास बीमारी में दी जाने वाली दवाओं का अक्सर अभाव बना रहता है. इसके चलते चिकित्सकों को भी इलाज में परेशानी होती है. चिकित्सकों को अस्पताल में उपलब्ध दवाओं से ही इलाज की विवशता है.
कहते है चिकित्सक. सदर अस्पताल के चिकित्सक केके साहू बताते है कि अस्पताल में उपलब्ध दवाओं से ही मरीज का इलाज करने की बाध्यता चिकित्सकों की परेशानी का कारण है. बताते है कि इन दिनों मरीज टायफायड के आ रहे है और दवा उपलब्ध है एम्पीसिलीन. ऐसे में एम्पीसिलीन से टायफायड का इलाज चिकित्सक कैसे करे? यह एक बड़ा सवाल है. सस्ती दवा के लिए अस्पतालों में जेनेरिक मेडिकल स्टोर खोलने का प्रावधान है, लेकिन इस मेडिकल स्टोर में भी कम से कम 372 दवा उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
डा़ प्रदीप शरण बताते है कि जेनेरिक मेडिकल स्टोर की परिकल्पना गरीबों के लिए काफी लाभकारी है. जरूरत है इमनादारी से इस परिकल्पना को धरातल पर उतारने की.
जिले के किसी भी अस्पताल में नहीं खुल पाया जेनेरिक ड्रग स्टोर
जनऔषधि केंद्र व अमृत फार्मेसी की परिकल्पना तक से िवभाग है अनजान
टेंडर पर टिकी दवाओं की आपूर्ति की व्यवस्था
दवाओं की आपूर्ति की व्यवस्था का प्रबंधन नहीं
अस्पताल में उपलब्ध दवा से ही इलाज करने की विवशता बनी चिकित्सकों की परेशानी की वजह
अक्सर बंद रहता है जेनेरिक दवा के स्टोर के लिए बना भवन. फोटो । प्रभात खबर
सरकार द्वारा सदर अस्पताल में सस्ते दवा की दुकान खोले जाने का आदेश दिया गया है. सीतामढ़ी सदर अस्पताल में जेनेरिक मेडिकल स्टोर के लिए भवन भी बन कर तैयार है. लेकिन दवा दुकान खोले जाने को लेकर राज्य स्वास्थ्य समिति द्वारा किसी भी तरह का आदेश-निर्देश नहीं दिया गया है. बताते है कि इस संबंध में स्वास्थ्य विभाग व राज्य स्वास्थ्य समिति को पत्र भेजा जाएगा.
डा़ॅ िवंदेश्वर शर्मा, सीएम, सीतामढ़ी
सस्ते दर पर दवा उपलब्ध कराना था मकसद. सरकारी अस्पतालों में गरीब रोगियों को सस्ते दर पर दवा उपलब्ध कराने के लिये केंद्र व राज्य सरकार ने अलग-अलग व्यवस्था तय की थी. राज्य सरकार द्वारा सदर अस्पताल के अलावा कम्युनिटी हेल्थ सेंटर व रेफरल अस्पताल में एक-एक जेनेरिक मेडिकल स्टोर की स्थापना की जानी थी. जबकि केंद्र सरकार द्वारा इसी तरह एक-एक जन औषधि केंद्र की स्थापना होनी थी. साथ ही गंभीर रोगों के लिए अमृत फार्मेसी नामक स्टोर खोला जाना था. इसके तहत अस्पताल में इलाज को आये गरीब मरीजों को सस्ते दर पर दवा उपलब्ध कराना था. जन औषधि केंद्र व अमृत फार्मेसी के लिए यहां कभी भी कोई पहल नहीं हुई. सीएस कार्यालय के प्रधान लिपिक अरविंद कुमार के अनुसार भवन बनने के बाद से कई बार विभाग को सूचना भेज जेनेरिक मेडिकल स्टोर चालू कराने की बात कहीं गई. लेकिन पहल शुरू नहीं हो सकी है.
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