नोटबंदी का असर. एक माह बाद भी मंदी की स्थिति से नहीं उबर सका स्थानीय बाजार
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मजदूर हैं मजबूर, बाजार पड़ा वीरान
नोटबंदी का असर. एक माह बाद भी मंदी की स्थिति से नहीं उबर सका स्थानीय बाजार शहर के बाजारों में हल्की रौनक, ग्रामीण इलाकों के बाजार अब भी वीरान व्यवसाय हुए चौपट सीतामढ़ी : अच्छे दिन आने की उम्मीदों के साथ नोटबंदी के इस दौर में देश-प्रदेश की तरह सीतामढ़ी के लोग भी पैसों के […]
शहर के बाजारों में हल्की रौनक, ग्रामीण इलाकों के बाजार अब भी वीरान
व्यवसाय हुए चौपट
सीतामढ़ी : अच्छे दिन आने की उम्मीदों के साथ नोटबंदी के इस दौर में देश-प्रदेश की तरह सीतामढ़ी के लोग भी पैसों के लिए रोजाना बैंक व एटीएम में कतार में लग रहे है. इस दौरान होने वाली परेशानी को झेलने के बावजूद, लोग इसका इजहार नहीं कर रहे है.
आनेवाले समय में नोटबंदी का क्या फायदा आम जनता को मिलता है यह तो आनेवाले समय में पता चलेगा, लेकिन नोटबंदी के एक माह बाद भी इलाके की तस्वीर नहीं बदल सकी है. शहरी इलाके में धीरे-धीरे जिंदगी पटरी पर लौटने लगी है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में अब भी कैश के लिए हाहाकार की स्थिति है.
नोटबंदी के चलते किसानों को भारी परेशानी उठानी पड़ रहीं है तो नोटबंदी ने मजदूरों को मजबूर कर दिया है. वहीं बाजारों का बुरा हाल है. शहर से लेकर गांव तक के बाजार मंदी के दौर में है और व्यवसाय पूरी तरह चौपट हो गया है.
नोटबंदी की मार से मजदूर परेशान : नोटबंदी की मार से पूरे जिले के लोग बेजान है, लेकिन इसका सर्वाधिक असर किसान व मजदूरों पर पड़ रहा है. नोटबंदी के कारण समाज के हर तबके के लोगों ने अपनी आवश्यकताओं के साथ समझौता कर लिया है. लिहाजा खेती से लेकर निर्माण कार्य तक पर ब्रेक लग गया है.
शहरी क्षेत्र के बैंकों में रुपये निकालने की सीमा तय है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में कैश के लिए हाहाकार है. ऐसे में किसानों के लिए खेती की राह मुश्किल में पड़ गयी है. किसानों के पास खाद-बीज खरीदने, सिंचाई करने व मजदूरों को देने के लिए पैसे तक नहीं है. किसानों के पास पैसे के अभाव का सीधा असर मजदूरों पर पड़ रहा है. मजदूर रोजाना काम की तलाश में शहर से लेकर गांव तक प्रमुख चौक-चौराहों पर खड़े रह जा रहे है. सुबह से शाम हो जा रहीं है, लेकिन मजदूरों के काम की तलाश पूरी नहीं हो पा रहीं है.
काम नहीं मिलने के चलते मजदूरों के घर चूल्हों की लौ मद्धिम होने लगी है, जबकि मजदूरों के सामने दो जून की रोटी का जुगाड़ कर पाना संभव नहीं हो पा रहा है. यहां तक की नोटबंदी के दौरान मनरेगा के तहत भी मजदूरों को काम नहीं मिला है. कुछ मजदूरों को काम भी मिला है तो भुगतान नहीं हो पाया है.
कहते हैं मजदूर : ठेला चलाकर जीविकोपार्जन करने वाले डुमरा निवासी राधे मंडल बताते है कि नोटबंदी के बाद केवल सात दिन ही उन्हें काम मिल पाया है. बताते है कि पहले रोजाना चार-पांच काम मिल जाता था, लेकिन अब पूरे दिन इंतजार करते रहना पड़ रहा है. इसके चलते घोर आर्थिक किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. सीतामढ़ी शहर से सटे राजोपट्टी निवासी दैनिक मजदूर राम सकल सहनी बताते है कि एक महीने से काम पर आफत पड़ गया है. इस दौरान सात-आठ दिन ही मजदूरी मिली है. बताते है कि वह तो सरकार से चावल-गेहूं मिल जाता है, जिससे भुखमरी की स्थिति नहीं है.
मंदी के दौर में बाजार : नोटबंदी के एक माह बाद भी बाजार मंदी के दौर से नहीं उबरा है. गांव से लेकर शहर तक व्यवसाय चौपट है और बाजार वीरान पड़े है. चाय-पान की दुकान से लेकर माल तक पर नोटबंदी से उत्पन्न मंदी का जबरदस्त प्रभाव है. आठ नवंबर की रात हजार-पांच सौ के पुराने करेंसी पर रोक व एटीएम तथा बैंकों से तय राशि की ही निकासी के प्रावधान के बाद बाजारों की रौनक गायब है.
एक माह के भीतर एकाध दिन ही ऐसे दिखे है जब बाजारों में हल्की रौनकता दिखी हो, वह भी शहर के बाजारों में. गांव के बाजार तो नौ नवंबर से ही वीरान पड़े है. पैसे के अभाव में सब्जी उत्पादक किसान औने- पौने के दाम में अपनी सब्जियां बेच रहे है. शहर के गुदरी बाजार, बड़ी बाजार, सोनापट्टी, लोहापट्टी, मिरचाईपट्टी व गोशाला समेत तमाम व्यापारिक इलाकों में व्यवसाय ठप है. कपड़ा मंडी, सर्राफा बाजार, फर्नीचर, इलेक्ट्राॅनिक्स व इलेक्ट्रिक मार्केट का बुरा हाल है. कुछ हद तक किराना मंडी में ही ग्राहक दिख रहे है, वह भी सीमित संख्या में.
कहते है व्यवसायी : सर्राफा व्यवसायी राकेश कुमार बताते है कि नोटबंदी के चलते लगन के मौसम में भी मंदी का सामना करना पड़ रहा है. लोगों के पास कैश की किल्लत है, लिहाजा लोग खरीदारी नहीं कर रहे है. होजियरी व्यवसायी बंटी कुमार बताते है कि व्यवसाय पर नोटबंदी का जबरदस्त प्रभाव है, बाजार में पैसों का अभाव है. लगन का मौसम बीतने को है, लेकिन एक दिन भी सामान्य दिनों की तरह बिक्री नहीं हुई है. अनमोल रेस्टोरेंट के संचालक उमेश झा बताते है कि नोटबंदी का व्यवसाय पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा है. समाज का हर तबका नोटबंदी से प्रभावित हुआ है.
काम की तलाश में सुबह से हो रही शाम
काम की तलाश में बैठे मजदूर.
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