सीतामढ़ी : मुख्यालय डुमरा स्थित गीता भवन में सोमवार को कवियों ने सुरों की ऐसी महफिल सजाई की महफिल जवां हो उठी. नज्म व बज्म का ऐसा शमां बांधा की देर तक गीता भवन का वाचनालय तालियों से गूंजता रहा. प्रसाद साहित्य परिषद के तत्वावधान में आयोजित मासिक कवि गोष्ठी की अध्यक्षमा ई सचींद्र कुमार हीरा ने की, जबकि मंच का संचालन गीतकार गीतेश ने किया. कवि गोष्ठी में दिल्ली से आए साहित्यकर्मी शशि भूषण प्रसाद सिन्हा ने हिंदी का अलख जगाने के लिए प्रसाद साहित्य परिषद के प्रयासों की सराहना की. साथ ही कवियों की निष्ठा को साधुवाद दिया. कार्यक्रम का आगाज उर्दू के नामचीन शायर शफी आजिज की गजल बदन गरीबों का खेतों में जब पिघलता है, हवेलियों का उसी से चिराग जलता है, से हुआ.
गीतकार गीतेश ने कुछ ऐसा हश्र कर दिया उसने मेरे प्यार का, जैसे ये नोट हो गया है पांच सौ, हजार का, मन मेरा काला धन सा रो रहा है, आज हो गया बेकार सा के माध्यम से लोगों को हंसाया. राम बाबू सिंह ने जिन्हे हाशिये से बाहर न आने की इजाजत है, पर उन्हीं के नाम पर देश में जारी सियासत है के माध्यम से राजनीति पर हमला किया. ई सचींद्र कुमार हीरा ने शराबबंदी व नोटबंदी पर चर्चा करते हुए अपनी पंक्तियों को इस कदर बंया किया – शराबबंदी और नोटबंदी ने बंदी बनाया बिहार को. कवि गोष्ठी में सुरेश लाल कर्ण, अशोक कुमार सिंह, प्रेमनाथ सिंह, सत्येंद्र मिश्र, राम कृष्ण सिंह वेदांती, शम्मी कुमारी, पृथ्वी राज राणा, जितेंद्र झा आजाद, आनंद प्रकाश वर्मा व बाल कवि सचिन ने अपनी एक से बढ़ कर एक रचनाओं के जरिए शमा बांध दिया.