चार दिवसीय छठ महाव्रत का शुभारंभ, खरना आज प्रतिनिधि, सीतामढ़ी. रविवार को नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय छठ महा व्रत का शुभारंभ हो गया. पहले दिन छठ व्रती महिलाओं ने मिट्टी का चूल्हा तैयार की. व्रतियों द्वारा विशेष स्थान के बाद पवित्र हो कर सूर्य देव व माता सविता (छठी माता) को आमंत्रित किया. इसके साथ ही लोक आस्था का महापर्व का शुभारंभ हो गया. प्रथम दिन व्रतियों ने अरवा-अरवाइन भोजन के बाद से निरजला व्रत रख कर सोमवार की संध्या को खरना करेगी. यानी पर्व के दूसरे दिन गम्हरी धान के चावल व गुड़ से बने खीर व पूरी (कचौरी) से बने प्रसाद का सूर्यदेव व माता सविता को भोग लगायेंगे. बाद में परिवार के सभी सदस्यों के अलावा सगे-संबंधियों के लिए आशीष मांग कर प्रसाद ग्रहण किया जायेगा. मान्यता है कि खरना के दिन परिवार के हर सदस्य की ओर से सूर्यदेव व छठी माता को भाग दिया जाता है ताकि परिवार के हर व्यक्ति का काया स्वस्थ रहे, धन-धान्य की कभी कमी न रहे व सुखमय जीवन बीत सके.गोधूली बेला में अर्घ का खास महत्व तीसरे दिन गोधूली बेला यानी दिन व रात के मिलन के संयोग के बेला में अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ दिया जायेगा. बताया जाता है कि गोधूली बेला यानी दिन व रात के मिलन के संयोग के बेला में सूर्य की उपासना करने से छठी माता व सूर्य देव प्रसन्न होते हैं और स्वस्थ काया व धन-धान्य से संपन्न रहने का आशीर्वाद देते हैं. गोधूली बेला में अर्घ देने की परंपरा है. बुधवार को व्रत के अंतिम दिन रात व दिन के मिलन के संयोग के बेला में भगवान भास्कर को यानी उगते सूर्य को अर्घ के साथ ही चार दिवसीय छठ महा व्रत का समापन होगा. छठ घाट पर ऊंच-नीच का भेद नहीं अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ के दिन संपूर्ण वातावरण आस्था की सागर में डूब जाता है. छोटे-बड़े, ऊंच-नीच व जाति-पाती का भेद मानो खत्म सा हो जाता है. हर कोई छठी माता की भक्ति में रम जाता है. छठ घाट पर आपसी सौहार्द का जो नजारा इस दिन नजर आता है, ऐसा नजारा शायद ही किसी और पर्व-त्योहारों में देखने को मिलता हो. शायद इसीलिए छठ पूजा का इतना महत्व है. हर कोई छठ पूजा के मौके पर अपने परिवार के साथ रहने की हर संभव कोशिश करता है. छठ पर्व का बिहार वासियों को इतना इंतजार रहता है कि देश व दुनिया में रहने वाला हर बिहारी इस मास के लिए पहले से टिकट की बुकिंग कराने में जुट जाता है. टिकट नहीं मिला, तो हर कीमत पर वह गांव आने की कोशिश से बाज नहीं आना चाहता है. सांस्कृतिक कार्यक्रम की परंपरा जारीबता दें कि छठ पूजा के मौके पर गांव-गांव में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन की परंपरा आज भी जारी है. हालांकि अब पहले की तरह उत्साह कम दिखता है, पर परंपरा आज भी जीवित है. खास कर छठ घाटों पर गांव के नौजवानों द्वारा नाटक का मंचन करने की परंपरा रही है. छठ आने के पूर्व से गांव के नवयुवक नाटक की तैयारी में जुट जाते हैं. यदि गांव में नाटक मंचन की सहमति नहीं बनी, तो किसी नामी-गिरामी कलाकारों द्वारा मनोरंजन की व्यवस्था छठ घाटों पर करने का प्रयास किया जाता है, ताकि व्रति व श्रद्धालु छठ घाट पर रात भर ठहर सके.
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चार दिवसीय छठ महाव्रत का शुभारंभ, खरना आज
चार दिवसीय छठ महाव्रत का शुभारंभ, खरना आज प्रतिनिधि, सीतामढ़ी. रविवार को नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय छठ महा व्रत का शुभारंभ हो गया. पहले दिन छठ व्रती महिलाओं ने मिट्टी का चूल्हा तैयार की. व्रतियों द्वारा विशेष स्थान के बाद पवित्र हो कर सूर्य देव व माता सविता (छठी माता) को आमंत्रित किया. इसके […]
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