बोखड़ा/पुपरी . मिथिलांचल में माघ चतुर्दशी व्रत मनाने की परंपरा अब भी बरकरार है. कहा जाता है कि इस व्रत को करने से नरक में जाने से मुक्ति मिल जाती है. इसी कारण इस व्रत को नरक निवारण चतुर्दशी व्रत कहा जाता है. खड़का के पंडित कविंद्र ठाकुर व मुनिंद्र ठाकुर एवं पुपरी के पंडित शक्तिनाथ पाठक एक कथा के माध्यम से इस व्रत की विशेषता बताते हैं. कहा जाता है कि माघ चतुर्दशी के दिन ही एक ब्राह्मण परिवार में एक दंपति के बीच आर्थिक तंगी को लेकर विवाद हो गया.
ब्राह्मण गुस्सा में घर से निकल एक बागीचा में गया और एक बेल के पेड़ पर चढ़ गया. उस पेड़ के नीचे शिवलिंग था. भूखे-प्यासे दिन भर पेड़ पर रहने के बाद शाम में जब ब्राह्मण नीचे उतरने लगा तो उसके पैर से बेलपत्र टूट कर शिवलिंग पर गिर रहा था. काफी मात्रा में बेल पत्र शिवलिंग पर गिरने के बाद भगवान शिव ने उक्त पंडित को अपना दर्शन दिया.
शिव ने कहा कि माघ चतुर्दशी के दिन जो भी व्रत रखेगा, वह नरक में नहीं जायेगा. भगवान शिव का यह वचन सुन ब्राह्मण ने गांव-समाज के सभी लोगों को इसकी जानकारी दी. तब से ही उक्त व्रत करने की परंपरा चली आ रही है. दोनों पंडितों ने बताया कि इस व्रत में शाम में तारा को देखने के बाद बेर के फल से पारण कर भोजन किया जाता है. सोमवार को बड़ी संख्या में महिला व पुरुषों ने नागेश्वर नाथ महादेव मंदिर, पंचेश्वर नाथ महादेव मंदिर, झझिहट के रामेश्वर नाथ महादेव मंदिर समेत अन्य शिव मंदिरों में जलाभिषेक व पूजा किया. व्रत के दौरान मूल रूप से भगवान शिव की पूजा की जाती है.