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सत्संग से विवेक प्राप्त कर सदुपयोग करें : मोरारी बापू

सीतामढ़ी : सत्संग से विवेक प्राप्त कर उसका सदुपयोग करें, परिस्थिति को कभी भी बदला नहीं जा सकता है. जैसे रात को दिन में और दिन को रात में नहीं बदला जा सकता. इसलिए विवेक का सदुपयोग करना सीख लें. लेकिन, विवेक मिलेगा सत्संग से. सत्संग का मतलब कथा सुनने से ही नहीं है, बल्कि […]

सीतामढ़ी : सत्संग से विवेक प्राप्त कर उसका सदुपयोग करें, परिस्थिति को कभी भी बदला नहीं जा सकता है. जैसे रात को दिन में और दिन को रात में नहीं बदला जा सकता. इसलिए विवेक का सदुपयोग करना सीख लें. लेकिन, विवेक मिलेगा सत्संग से. सत्संग का मतलब कथा सुनने से ही नहीं है, बल्कि सत्य का संग करने से है. रामकथा परम सत्य है. आज कल के कुछ लेखकों ने हमारे शास्त्रों पर अभद्र टिप्पणियां की हैं. उपन्यास लिखना अच्छी बात है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि शास्त्रों पर टिप्पणियां की जाये. जिनके आदर्श पर हम जीना सीख रहे हैं, उसी पर कुठाराघात सिर्फ पैसे कमाने और अवार्ड पाने के लिये किया जाये. उक्त बातें स्थानीय मिथिला धाम में आयोजित रामकथा के पांचवें दिन विश्व प्रसिद्ध कथावाचक मोरारी बापू ने कही.

हर दिन की तरह हनुमान वंदना के साथ कथा की शुरुआत करते हुए बापू ने सबसे पहले समाज में भ्रम फैलाकर पैसा कमानेवाले लेखकों एवं उपन्यासकारों को आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि पत्थर फेंकने से पर्वत कभी गिरता नहीं. भारतीय परंपरा हिमालय है.
रामकथा का पांचवां दिन
शास्त्र पर टिप्पणी करना निंदनीय
रामचरित मानस अखंड सत्य
बापू ने कहा कि गांधी जी को गोली मार दी गयी. क्या सत्य मर गया? हरिश्चंद्र बिक गये. क्या सत्य खत्म हो गया? बापू ने कहा कि सत्य को हरा सके, ऐसी किसी की औकात नहीं. बापू ने सत्यमेव जयते का नारा लगवाते हुए कहा कि ये लोक समुदाय की मांग है. बापू ने कहा कि रामचरित मानस अखंड सत्य है. बापू ने राष्ट्रदेवों भव का नारा लगवाते हुए कहा कि भारतीय सभ्यता वसुधैव कुटुंबकम, विश्वदेवो भव, सत्यदेवो भव, प्रेमदेवो भव, करुणादेवो भव सीखाती है.
अयोध्या से अधिक प्रकाशित रहना चाहिए सीतामढ़ी को
मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू ने सीता की धरती की वास्तविक स्थिति पर चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि सीतामढ़ी इतना दबा हुआ क्यों है? इसे तो अयोध्या से अधिक प्रकाशित रहना चाहिए था. उन्होंने भरोसा जताते हुए कहा कि सीता की धरती भी प्रकाशित होगी. ऐसा मुझे भरोसा है. उन्होंने कहा कि तीर्थ के जागरूक होने की भी तिथियां होती हैं. बापू ने राजनेताओं, व्यापारियों व समाज के लोगों से अपील की कि उनका भी कर्त्तव्य बनता है कि इस पावन भूमि को प्रकाशित किया जाये. सीता की धरती से 170 देश के लोग कथा श्रवण कर रहे हैं. इतने दूर-दूर के लोग सीतामढ़ी को जान जाएंगे. वे यहां आएंगे, तो सीता की धरती को और प्रकाशित करेंगे.

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