रून्नीसैदपुर : संसाधनों व स्वास्थ्यकर्मियों की कमी के कारण सदर अस्पताल के अलावा जिले के अमूमन सभी पीएचसी में मरीजों का समुचित इलाज नहीं हो पा रहा है. यही कारण है कि गंभीर बीमारी की चपेट में आने के बाद गरीब तबके के लोग खेत व आभूषण बेच कर या गिरवी रख अपना इलाज कराने के लिए निजी चिकित्सालय का रुख कर रहे हैं. प्रभात खबर टीम ने 33 पंचायत वाले जिले के सबसे बड़े रून्नीसैदपुर प्रखंड मुख्यालय स्थित पीएचसी की पड़ताल की.
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रून्नीसैदपुर पीएचसी के डॉक्टर चार मिनट में देख रहे 30 मरीज
रून्नीसैदपुर : संसाधनों व स्वास्थ्यकर्मियों की कमी के कारण सदर अस्पताल के अलावा जिले के अमूमन सभी पीएचसी में मरीजों का समुचित इलाज नहीं हो पा रहा है. यही कारण है कि गंभीर बीमारी की चपेट में आने के बाद गरीब तबके के लोग खेत व आभूषण बेच कर या गिरवी रख अपना इलाज कराने […]
540 घंटे में 26622 मरीजों का हुआ इलाज
अजब पर सच है कि पीएचसी में 135 दिनों में 541 घंटे के अंदर 26622 मरीजों का इलाज किया गया. चाहे बीमारी मामूली रही हो या गंभीर. यानी चार मिनट में तीन मरीज की बीमारी पकड़ कर पर्ची लिख दी गयी. यह कड़वा सच पीएचसी के आंकड़े बता रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि चालू वर्ष के जुलाई माह में पीएचसी में 5062, अगस्त में 6016, सितंबर में 6492, अक्तूबर में 5470 मरीज व नवंबर 15 तारीख तक 3642 मरीजों को आउटडोर में देखा गया.
ड्रेसर व लैब टेक्नीशियन समेत कई पद पूरी तरह रिक्त
नवंबर 2015 में स्थानीय पीएचसी को सीएचसी (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) का दर्जा मिला. भवन बन कर तैयार हो गया. पीएचसी को सीएचसी में स्थानांतरित कर स्वास्थ्य सेवा भी बहाल कर दी गयी. अक्तूबर 2017 में उद्घाटन के बाद छह बेड को बढ़ा कर 16 बेड किया गया. अस्थायी चिकित्सक के कुल 15 पद सृजित हैं, जिसमें 11 पद रिक्त हैं. अनुबंध पर तेरह में मात्र आठ कार्यरत हैं. फार्मासिस्ट के स्थायी सात मे छह पद रिक्त है. जबकि अनुबंध पर दो में एक पद रिक्त हैं.
प्रखंड प्रसार प्रशिक्षक के एक पद है, जो रिक्त है. एएनएम के स्थायी 37 में 16 पद रिक्त है. जबकि अनुबंध के 39 में 23 पद रिक्त व महिला कक्ष सेविका के तीन में दो पद रिक्त हैं. जबकि एलएचवी, ड्रेसर, स्वच्छता निरीक्षक, लैब टेक्नीशियन, हेल्थ वर्कर व संगनक के सभी पद रिक्त हैं. इसी प्रकार कई और भी पद रिक्त हैं. पीएचसी में मात्र एक एंबुलेंस उपलब्ध है. महिला चिकित्सक पदस्थापित तो है, लेकिन पदस्थापना काल से हीं उनके प्रतिनियोजन पर रहने से महिलाओं को असुविधा होती है. पड़ताल के दौरान कई महिलाओं ने बताया कि पुरुष चिकित्सक को बीमारी को पूरी तरह खुल कर कहने में काफी संकोच होती है.
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