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पशु मेले की कम होने लगी रौनक

सीतामढ़ीः रामनवमी व विवाह पंचमी के दौरान शहर से सटे बांध के किनारे पशु मेला लगता हुआ है. कहा जाता है कि सीतामढ़ी में लगने वाला यह पशु मेला कभी एशिया महादेश में दूसरा स्थान रखता था. इसकी गरिमा पूर्व वाली नहीं रही. कभी मेला में बड़ी संख्या में हाथी व घोड़े की भी खरीद-बिक्री […]

सीतामढ़ीः रामनवमी व विवाह पंचमी के दौरान शहर से सटे बांध के किनारे पशु मेला लगता हुआ है. कहा जाता है कि सीतामढ़ी में लगने वाला यह पशु मेला कभी एशिया महादेश में दूसरा स्थान रखता था. इसकी गरिमा पूर्व वाली नहीं रही. कभी मेला में बड़ी संख्या में हाथी व घोड़े की भी खरीद-बिक्री होती थी. अब उक्त दोनों पशुओं का दर्शन भी दुर्लभ है. करीब एक दशक पूर्व तक पशु मेला को एक छोर से दूसरे छोर तक नहीं देखा जा सकता था. यानी कोई भी व्यक्ति दो-चार दिन में भी पूरे पशु मेला का भ्रमण नहीं कर सकता था. अब जो पशु मेला लगा है उसे घंटा भर में घुमा जा सकता है. प्रभात खबर की टीम मेला के वजूद पर उत्पन्न खतरे की पड़ताल करने बुधवार को मेला में पहुंची थी.

जमीन की हो रही बिक्री

जिला प्रशासन की ओर से पशु मेला वाले जमीन की बिक्री पर रोक लगा दी गयी थी. यह रोक अब भी बरकरार है. यानी प्रशासन का कहना था कि भले हीं जमीन बेची जाये, पर उस पर निर्माण का काम नहीं होगा. सिर्फ खेती किया जा सकता है. परंतु यह जान कर ताज्जुब होगा कि पशु मेला वाले जमीन की बिक्री की जा रही है और उस पर मकान बन रहे हैं. मेला का एरिया धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. जो मेला के वजूद पर खतरा का पहला कारण है.

लोगों का मनाना है कि मेला का वजूद बचाये रखने के लिए प्रशासन की ओर से व्यवस्था के नाम पर खानापूर्ति कर ली जाती है. पशु के क्रेता व विक्रेता के लिए सिर्फ पानी की व्यवस्था भर हीं प्रशासन अपनी जिम्मेवारी समझती है. ऐसी कोई ठोस पहल नहीं की जाती है कि मेला का विकास हो और उसकी खोती जा रही पुरानी गरिमा लौट सके. मेला में आये शिवहर जिले के पिपराही गांव के करीब 60 वर्षीय हरि नारायण सिंह कहते हैं कि महंगाई के चलते भी मेला की रौनक कम होती जा रही है. बताया कि पहले मेला में रौशनी की पर्याप्त व्यवस्था रहती थी. इस बार व्यवस्था नहीं है.अब एक जोड़ी बैल की बिक्री होने पर 500 रुपये संवेदक को देना पड़ता है. एक जोड़ी बैल को खिलाने में एक दिन में 300 से 400 रुपये खर्च होते हैं. इस कारण से भी किसान मेला में नहीं आते हैं.

प्रशासन गंभीर नहीं

सामाजिक सरोकार से जुड़े रहने वाले जदयू के प्रदेश उपाध्यक्ष नागेंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि मेला को लेकर जिला प्रशासन को जितना गंभीर होना चाहिए, नहीं है. मेला विकसित हो, इसके लिए कृषि विभाग की ओर से मेला में कृषि यंत्रों का स्टॉल लगना चाहिए. कृषि वैज्ञानिक किसानों को खेती की नयी तकनीक की जानकारी देते. वहीं पशु पालन विभाग की ओर से पशुओं की देख-भाल व चिकित्सीय सलाह देने की व्यवस्था की जाती. कहते हैं कि मेला वाले एरिया में भवन निर्माण पर रोक लगायी जानी चाहिए.

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