छपरा (सदर) : पूर्व में भी मंडल कारा छपरा में बंद दबंग अपराधियों की गतिविधियों व कारा प्रशासन की व्यवस्था को चुस्त करने में सरकारी उदासीनता सुर्खियों में रही है. 15 वर्ष पूर्व 30 मार्च 2002 को दबंग बंदियों व जिला पुलिस के बीच हुई फायरिंग में आधा दर्जन अपराधी मारे गये थे. उसके पूर्व में छपरा जेल में कुख्यात लुल्हा तथा अन्य साथियों ने दिन दहाड़े फरार होने के दौरान उच्च कक्षपाल को जहां मौत के घाट उतार दिया था तथा भागने में सफल रहे थे. जिससे मंडल कारा हमेशा सुर्खियों में रहा है. जेल में दर्जनों दबंग, नक्सली आदि बंदी भी रहते है. परंतु, एक बार फिर मंडल कारा में बंद कुछ दबंग बंदियों की कारगुजारियों पर लगाम लगाने के लिए स्थानीय प्रशासन प्रयासरत है. इस संबंध में कारा प्रशासन ने विभाग व जिला प्रशासन को भी पत्राचार किया है.
बावजूद पदाधिकारियों व कर्मियों की 80 फीसदी रिक्त पदों को भरने, जेल के सभी सेलों को उपयोगी बनाने तथा प्रशासनिक तालमेल बैठाने में कोताही सरकार के लिए सिरदर्द साबित हो सकती है. परंतु, इस पूरे मामले में न तो सरकारी स्तर से और न प्रशासनिक स्तर से बेहतर पहल की जा रही है. कारा में बंद दबंग बंदियों की कारगुजारियों पर लगाम लगाने की जिला प्रशासन व पुलिस की सारी कारगुजारियों के बाद 30 मार्च 2002 को अपनी कब्जे में 48 घंटे तक रखने वाले बंदियों से कारा को मुक्त कराने के दौरान प्रशासन व बंदियों के बीच घंटो फायरिंग की घटनाएं हुई थी. जिसमें छ:ह बंदी मारे गये थे. वहीं मंडल कारा के तात्कालिन काराधीक्षक ने उस समय भगवान बाजार थाने में एक ही दिन चार प्राथमिकियां दर्ज करायी थी. जिसमें मारे गये बंदियों पर मनमाने ढ़ंग से जेल को अपने कब्जे में लेने, प्रशासनिक व पुलिस पदाधिकारियों पर फायरिंग, बम विस्फोट आदि की घटनाओं को अंजाम देने का आरोप लगाया था. मारे गये तत्कालिन बंदियों में से कोपा थाना क्षेत्र के मजलिशपुर के सत्यनारयाण सिंह के पुत्र शशिभूषण सिंह, अमनौर थाने के ढोरलाही के रामजन्म राय के पुत्र व तत्कालिन जिला पार्षद संजय राय, छपरा नगर थाना क्षेत्र के रूप गंज मुहल्ले के उमा राय के पुत्र वकिल राय, भगवान बाजार, थाना क्षेत्र के गोपेश्वर नगर निवासी पुत्र अशोक उपाध्याय, मांझी थाने के नचाप निवासी रामनारायण सिंह के पुत्र अक्षयवट सिंह तथा छपरा मुफस्सिल के शेरपुर निवासी राजदेव सिंह के पुत्र रंजित सिंह नामक बंदी की मौत हो गयी थी.