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लक्ष्य को कदम बना दिव्यांगता को मात दे रहे सारण के अमित

छपरा(नगर) : ‘लक्ष्य को कदम बना दुनिया के साथ चल रहा हूं, खुद के हौसलों से अपनी पहचान बदल रहा हूं’. यह किसी कविता की चंद पंक्तियां नहीं, बल्कि सारण जिला के दिव्यांग एथलीट अमित कुमार सिंह के जीवन को यथार्थ करते शब्द हैं. सदर प्रखंड के मानपुर जहांगीर, डोरीगंज के रहने वाले 35 वर्षीय […]

छपरा(नगर) : ‘लक्ष्य को कदम बना दुनिया के साथ चल रहा हूं, खुद के हौसलों से अपनी पहचान बदल रहा हूं’. यह किसी कविता की चंद पंक्तियां नहीं, बल्कि सारण जिला के दिव्यांग एथलीट अमित कुमार सिंह के जीवन को यथार्थ करते शब्द हैं. सदर प्रखंड के मानपुर जहांगीर, डोरीगंज के रहने वाले 35 वर्षीय अमित कुमार दोनों पैर पूर्ण रूप से पोलियोग्रस्त हैं.
अपनी दिव्यांगता को कभी बोझ नही समझने वाले अमित का हौसला ही है कि उन्होंने 2016-17 में आयोजित पैराएथलेटिक्स खेलों की राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में डिस्कस थ्रो के इवेंट में 22.74 मीटर थ्रो के साथ दूसरा स्थान प्राप्त कर सारण समेत पूरे राज्य का नाम रौशन किया. अमित इस प्रतियोगिता में महज सात सेंटीमीटर से पहला स्थान लाने से भले ही चूक गए हों पर एथलेटिक्स के प्रति इनकी जीवटता और देश के लिए कुछ कर गुजरने की चाहत में कोई कमी नजर नही आती. अभी हाल ही में बिहार सरकार ने खेल में उनके योगदान को देखते हुए सम्मानित किया है.
कमजोर आर्थिक हालात दे रहे चुनौती : खेल से इनका लगाव बचपन से ही रहा है. जिले में आयोजित होने वाले दिव्यांग खेल प्रतियोगिताओं के शॉटपुट, डिस्कस थ्रो और जेवलिन थ्रो आदि इवेंट्स में इन्होंने कई पुरस्कार जीते हैं. हालांकि किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले अमित की आर्थिक स्थिति हमेशा ही इनके सामने चुनौती खड़ी करते रहा है. पिता अखिलेश्वर सिंह एक सामान्य किसान हैं.
खेती-बाड़ी ही जीविका चलाने का आधार है. अमित के छोटे भाई दिल्ली में पढ़ाई करते हैं. ऐसे में अमित को अपने प्रैक्टिस को जारी रखने और अपने इवेंट्स से जुड़े उपकरणों को खरीदने में काफी परेशानी उठानी पड़ती है. अपने खर्चे को मेंटेन करने के लिए अमित एक छोटा-मोटा किराना दुकान चलाते हैं जिससे होने वाली आमदनी को अपने प्रैक्टिस व शारीरिक मेंटेनेंस में लगाते हैं.
खेल के साथ पढ़ाई में भी अव्वल हैं : खेलों के साथ पढ़ाई में भी इन्होंने अपनी दिव्यांगता को मात दे दी है. अमित जिले के जयप्रकाश विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं. पिछले वर्ष अजमेर में आयोजित म्हास गेम में भी यह चैंपियन रह चुके हैं.
वहीं मुजफ्फरपुर में आयोजित स्टेट पैराएटलेटिक्स गेम की शॉटपुट, जेवलिन थ्रो और डिस्कस थ्रो इवेंट में चैंपियन बने थे. सबसे बड़ी बात है कि इन प्रतिस्पर्धाओं के लिए खुद को तैयार करने में अमित को आजतक किसी का सपोर्ट नहीं मिल सका. अपनी ट्रेनिंग से लेकर इवेंट्स से जुड़े साधनों को खरीदने के लिए खेल विभाग या किसी अन्य संस्था से मदद नहीं मिल सकी है. हां गांव के कुछ नवयुवक जरूर अमित के हौसले से प्रभावित होकर उनकी टीम में शामिल होकर उनके ट्रेंनिग में मदद कर रहे हैं.
देश के लिए गोल्ड जीतना है लक्ष्य : राह भले ही कठिन है पर अमित जीवन में कभीसंघर्ष से नहीं घबराते. राष्ट्रीय स्तर पर खुद को साबित कर चुके दिव्यांग अमित पैराओलंपिक खेलों में देश के लिए गोल्ड मेडल लाना चाहते हैं और यह इनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य भी है.
घर पर बने जीम और गांव के मैदान को ही यह अपना ट्रेंनिग सेंटर मान दिन रात प्रैक्टिस में जुटे रहते हैं. हालांकि पैराएथलिट संघ ने इनके हौसले से प्रभावित होकर हाल ही में अजातशत्रु अवार्ड से नवाजा है और बिहार सरकार ने भी खेल पुरस्कार देकर इनका सम्मान किया है, लेकिन अमित का कहना है कि यह तो अभी शुरुआत है. लक्ष्य तो भारत के लिए गोल्ड जीतना है.

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