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बगेबा में चले गये भगवान, दुख में छटपटा रहा इनसान

कोसी में विलीन हुआ बाबा धर्मराज गहबर व भगवती स्थान सलखुआ प्रखंड के इस गांव में कोसी मचा रही तांडव संकट में हैं गोरदह पंचायत स्थित बगेबा गांव के दो सौ परिवार सहरसा : कोसी नदी को इस इलाके में भगवान से बढ़कर लोग मां का दर्जा देकर पूजते है. शुभ कार्यों की शुरुआत हो […]

कोसी में विलीन हुआ बाबा धर्मराज गहबर व भगवती स्थान
सलखुआ प्रखंड के इस गांव में कोसी मचा रही तांडव
संकट में हैं गोरदह पंचायत स्थित बगेबा गांव के दो सौ परिवार
सहरसा : कोसी नदी को इस इलाके में भगवान से बढ़कर लोग मां का दर्जा देकर पूजते है. शुभ कार्यों की शुरुआत हो या परेशानी से उबरने के लिए मन्नत मांगने की बात हो, सभी कोसी मैया की शरण में पहुंच जाते है. ऐसी प्रगाढ़ आस्था रखने वाले हजारों की आबादी सलखुआ प्रखंड के बगेबा गांव में इन दिनों कोसी की इहलीला से परेशान है. पूर्वजों की जमीन नदी में विलीन हो गयी है, सभी परिजन बेघर होकर कोसी की धारा से वापस लौटने की गुहार लगा रहे हैं.
विकट परिस्थिति में आस्था के प्रतीक बनने वाले बाबा धर्मराज व माता भगवती भी कोसी के रास्ते भक्तों से विदा ले चुकी है. गांव में चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है. नदी के कटाव का भय इस कदर हावी हो चुका है कि मेहनत के धन से तैयार किये गये आशियाने को स्वयं तोड़ने में लगे हुए है. इसे प्रकृति की विडंबना ही कहिये कि कोसी के पानी व आसमान से बरस रहे बादल समय के साथ थम जायेंगे लेकिन पीड़ितों की आंखों से बह रहा सैलाब शायद ही कम हो सके. गांव के बुजुर्ग कमल यादव कहते हैं कि लगभग 40 वर्ष पूर्व कोसी नदी से मिले जख्म आज तक हरे हैं.
केकरा कहबै रखियो धर्मराज ख्याल हो…
गांव के सभी लोगों की आस्था लोक देवता बाबा धर्मराज से जुड़ी हुई है. सुख की बेला हो या दुखों का क्षण बाबा धर्मराज के गहबर में पहुंचने वाले व्यक्ति या उन्हें स्मरण मात्र से कल्याण होने की मान्यता दशकों से है. कोसी नदी के कटाव में पक्का मकान में बना बाबा का गहबर (मंदिर) ध्वस्त हो गया है.
मंदिर के कुछ अवशेषों को छोड़ सबकुछ नदी में समा गया है. गांव की रुकमी देवी कहती हैं कि भगैत गाकर हमेशा बाबा को खुश करते थे. बाबा गरीबों की आवाज से द्रवित हो जाते थे. कहीं भी जाना हो तो बाबा धर्मराज के भरोसे परिजनों को सौंप चले जाते थे. अब गहबर वाली जगह पर पानी हिलकोर कर रही है. गहबर के समीप भगवती स्थान को भी कोसी लील गयी है.
रूक नहीं रहे थे इस मीरा के आंसू
पांच वर्ष की मीरा गांव के ही श्याम सुंदर की बेटी है. आंगन में बैठे सबकुछ निहार रही है. पिता घर की दीवार को तोड़ने में लगे हुए है शायद इन ईंटों से कही अन्य जगह आशियाना बनाने में काम आयेगा. मीरा की आंखों से आंसू टपक रही है, छोटी सी बच्ची को मलबा बन चुके घर में न तो कोई सामान मिल रहा है और न ही अपनों का प्यार. घर के लोग मिट्टी के ढेर से जरूरत की चीजों को इकट्ठा करने में लगे हुए है. मीरा तो एक बानगी है बगेबा में ऐसे कई किस्से है जो मानवीय संवेदना को झंकृत कर सकती है.

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