गांव के ग्राउंड में सिमट कर रह गयी है फुटबॉलरों की प्रतिभा फुटबॉल को बचाने में आगे रहता है अनुसूचित जनजाति समाजफुटबॉल के प्रति समर्पित है यह समाजचिरंजीव सिंह, सोनवर्षाराजजिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर सुदूर पूर्व देहात में कई खिलाड़ी भविष्य के वाइचुंग भूटिया बनने को बेताब हैं. प्रतीक्षा है कि कोई उनकी प्रतिभा पहचाने, उन्हें मैदान उपलब्ध कराये. सोनवर्षा की धरती से लिए गौरव की बात है कि जिला मुख्यालय सहित आसपास फुटबॉल खेलने के लिए मैदान नहीं है. लेकिन इस देहात में बना मैदान देखने लायक है. फुटबॉल के प्रति असाधरण प्रेम व समर्पण की वजह से संसाधनों के अभाव के बावजूद यहां की प्रतिभा घिस रही है, तप रही है. हां, अपने लिए किसी मसीहे का इंतजार भी कर रही है. प्रखंड क्षेत्र स्थित रघुनाथपुर पंचायत के अनुसूचित जनजाति में शुमार एवं विकास से काफी दूर संथाल जाति द्वारा विगत 68 वर्षों से फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन किया जाता रहा है. वर्ष 1945 में शुरू हुआ टूर्नामेंटवर्ष 1980 से लगभग 20 वर्षों तक अपने गांव के खिलाड़ियों के कोच रहने वाले वृद्ध नंदलाल हेंब्रम बताते हैं कि उनके गांव में फुटबॉल का ग्राउंड 170 मीटर लंबा एवं सौ मीटर चौड़ा है, जो ब्रह्म बाबा के नाम से रजिस्टर है. उनके अनुसार, 1945 से ही ग्रामीणों के द्वारा फुटबॉल टूर्नामेंट का आायोजन किया जा रहा है. आपसी चंदा से स्पोर्टिंग क्लब के कोच की जिम्मेवारी संभाल रहे विनोद मुर्मू बताते है कि उनके गांव में यदि कोई सरकारी नौकरी करता है तो कोई पूरे टीम के लिए जरसी तो कोई बूट खरीद कर दे देता है. आज तक उसकी टीम को किसी जनप्रतिनिधि या पंचायत प्रतिनिधि या फिर प्रशासनिक स्तर पर किसी तरह की वित्तीय सहायता नहीं मिली है.फुटबॉल में स्टेट चैंपियन दे चुका है गांव जबकि इस गांव के टीम का एक खिलाड़ी अरबिंद हेंब्रम स्टेट चैम्पियन टीम में रह चुके हैं. कई अंतर जिला फुटबॉल टूर्नांमेंट खेल चुके हैं. अपने प्रमाण पत्रों को दिखाते हुए पूर्व के दिनों की याद करते हेंब्रम हर्षित हो जाते हैं. लेकिन सरकार व उनके प्रतिनिधि की उपेक्षा का दर्द भी उनके चेहरे पर नजर आता है. वर्तमान कोच विनोद मूर्म अपनी टीम के सबसे छोटी उम्र के खिलाड़ी विनोद सोरेन सहित निर्मल किस्कू, लक्ष्मण हेम्ब्रम, प्रवण कुमार टुडू को दिखाते हुए कहते हैं कि इनके आधुनिक प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे में प्रतिभा असमय दम तोड़ देती है. अपनी ट्रॉफी दूसरे को देते हैंगांव में गरीबी व खेल का जुनून एक साथ देखने को मिलता है. गांव में प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाले टूर्नामेंट में विजेता टीम को दिये जाने वाले ट्रॉफी की व्यवस्था भी नहीं हो पाती है. विभिन्न जिले के टूर्नामेंट में जीती गयी ट्राफी को दिखाते हुए कोच मूर्म कहते हैं कि ऐसे दर्जनों जीत कर लायी गयी ट्रॉफी उनके यहां आयोजित टूर्नामेंट में विजेता टीम को देकर अभाव की पूर्ति की जाती है. मालूम हो कि रघुनाथपुर संथाली गांव की आबादी लगभग दो हजार के करीब है. जिनमें ज्यादातर छोटे-छोटे किसान था फिर मजदूर आदिवासी. इनमें से जो एक-दो सिपाही, सेना या शिक्षक की सरकारी नौकरी में हैं. इन्ही लोगों के सहारे स्पोर्टिंग टीम के लिए फुटबॉल किट समेत हर वर्ष टूर्नामेंट का आयोजन कर फुटबॉल खेल को जीवित रखने का प्रयास किया जा रहा है. इन लोगों को सरकारी व सामाजिक स्तर पर मदद की दरकार है. मिलने के बाद संथाल टोला के फुटबॉल खिलाड़ी अपनी किक से राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय ग्राउंड पर प्रतिभा को साबित कर सकते हैं. फोटो- खेल 3- गांव के मैदान पर फुटबॉल खेलते संथाल टोला के खिलाड़ी
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गांव के ग्राउंड में सिमट कर रह गयी है फुटबॉलरों की प्रतिभा
गांव के ग्राउंड में सिमट कर रह गयी है फुटबॉलरों की प्रतिभा फुटबॉल को बचाने में आगे रहता है अनुसूचित जनजाति समाजफुटबॉल के प्रति समर्पित है यह समाजचिरंजीव सिंह, सोनवर्षाराजजिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर सुदूर पूर्व देहात में कई खिलाड़ी भविष्य के वाइचुंग भूटिया बनने को बेताब हैं. प्रतीक्षा है कि कोई उनकी […]
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