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सफेदपोशों का असली चेहरा दिखा गया ईंटउघनी

सहरसा : संस्कृति मंत्रालय के पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, कोलकाता द्वारा शहर के सुपर बाजार स्थित कला भवन में चल रहे पांच दिवसीय नवोदित नाट्य महोत्सव के पांचवें और अंतिम दिन ‘ईंटउघनी’ की प्रस्तुति हुई. एकांकी नाटक ईंटउघनी मैथिली के स्थानीय साहित्याकार स्व मनोरंजन झा के मूल काव्य से ली गयी है. जिसका रूपांतरण विकास […]

सहरसा : संस्कृति मंत्रालय के पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, कोलकाता द्वारा शहर के सुपर बाजार स्थित कला भवन में चल रहे पांच दिवसीय नवोदित नाट्य महोत्सव के पांचवें और अंतिम दिन ‘ईंटउघनी’ की प्रस्तुति हुई. एकांकी नाटक ईंटउघनी मैथिली के स्थानीय साहित्याकार स्व मनोरंजन झा के मूल काव्य से ली गयी है.

जिसका रूपांतरण विकास भारती व श्वेता कुमारी ने किया है. पंचकोसी, सहरसा के द्वारा प्रस्तुत एकांकी नाटक ईंटउघनी ने दर्शकों की खूब वाहवाही लूटी. नारी शोषण पर केंद्रित इस नाटक में ईंट भट्ठे पर जिंदगी बिताते मजदूर व उनके परिवार के शोषण की कहानी है. नाटक की परिकल्पना व निर्देशन का भार उठाने वाले अमित जयजय कहते हैं कि आज की तथाकथित सामाजिक व्यवस्था में स्त्रियां शोषण व उपभोग की वस्तु बन कर रह गयी है.

तथाकथित लोगों की घूरती आंखें, लपलपाती जिह्वा से लार टपकाते सभ्य लोग आज के इस आधुनिक युग में भी प्रतिष्ठा का चोला पहनकर हर जगह मौजूद है. जहां पर स्त्रियां विज्ञापन के लिए नंगी खड़ी मिल जायेगी. किसी के साथ अपना सर्वस्व दांव पर लगाकर तो कहीं अपने जीवन के लिए, वजह सिर्फ पापी पेट. इस नाटक में इसी को दिखाया गया है.

रंगकर्मी विकास भारती, श्वेता कुमारी, नंदिनी कुमारी, राजनंदिनी कुमारी, निधि कुमारी, मिथुन कुमार गुप्ता, संतोष कुमार मिश्र, अमित कुमार अंशु, चंदन कुमार, मिभुन राम, सुमित कुमार, उमेश राम ने जीवंत प्रदर्शन कर नाटक को यादगार बनाने में सफलता पायी. नारी की त्रासदी का किया चित्रणमैथिली भाषा के साहित्यकार स्व मनोरंजन झा साहित्य क्षेत्र का जाना माना नाम है. नारी शोषण पर उन्होंने मैथिली में एक काव्य की रचना की थी. जिसे रूपांतरण कर नाटक का रूप दिया गया.

ईंटउघनी नाटक के माध्यम से उन तमाम महिलाओं की प्रतीकात्मक प्रस्तुति दी गयी है, जो घर से काम करने के लिए बाहर निकलती है. आधुनिक युग में जब हम आप एसी व पंखा में आराम फरमाते हैं तो दूसरी ओर स्त्रियां पापी पेट के लिए चिलचिलाती धूप में, ठिठुरती ठंड में, भारी बरसात में हर जगह भागती, अपनी इज्जत बचाती, कहीं बलात्कार तो कहीं शोषण तो कहीं मौत के घाट उतार दी जाती है. फिर भी स्त्रियां मौन है.अपने श्रम पथ पर समय की प्रतीक्षा में लाज बचाने की इच्छा में,

अपना भाग्य गढ़ रही है. नाटक को अपने हाव भाव से जीवंत प्रस्तुति देने पर देर तक कला भवन के सभागार में तालियां बजती रही. नाटक देख रहे लोगों के सामने कलाकारों ने समाज की इस सच्चाई को बखूबी परोसा.

मालिक के रूप में संतोष कुतमार मिश्रा तो मजदूर की भूमिका में नंदिनी कुमारी, श्वेता कुमारी व निधि ने कमाल का अभिनय किया. संस्था के सचिव व टीम लीडर अभय कुमार के नेतृत्व में नाटक को सुल् बनाने में परिधान को खुश्बु कुमारी, मेकअप श्वेता व निधि, लाइट अमित कुमार जयजय, सेट निर्माण विकास भारती, मंच सज्जा अमित कुमार अंशु,मिथुन कुमार गुप्ता सहित सुधांशु शेखर, धीरज कुमार व अन्य ने अपनी भूमिका निभाई.युवा व गंभीर निर्देशक हैं

अमितसंगीत नाटक एकेडमी, नयी दिल्ली द्वारा युवा रंगकर्मी सघन कार्यशाला बिहार 2004-05 में चयनित व प्रशिक्षण प्राप्त अमित कुमार जयजय कोसी क्षेत्र का तेजी से उभरता युवा नाट्य निर्देशक है. बतौर लेखक व निर्देशक नाटक चकई-क-चकधूम ने बिहार में प्रथम स्थान प्राप्त कर 14वें रष्ट्रीय युवा उत्सव अमृतसर में भागीदारी की.

इसके अलावा अमित ने तोता-मैंना, कथा कोना, नया भजनिया, धूमधाम, रावण, अपनी कथा कहो बिहार सहित अन्य नाटकों का सफल लेखन व निर्देशन किया है. 21 पूर्णकालिक व एकांकी में अभिनय करने वाले अमित 2009 में 24वें पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव में परमानंद पांडेय अखिल भारतीय नाट्य शिल्प सम्मान व 2010 में डॉ चतुर्भुज नाटककार एवं रंग निर्देशक सम्मान से सम्मानित किये जा चुके हैं. कोसी को इस युवा नाट्य निर्देशक से काफी उम्मीदें हैं.

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