सहरसा नगर: सहरसा व खगड़िया जिले की सीमा पर स्थित डुमरी पुल कोसी क्षेत्र के इलाके की लाइफ लाइन मानी जाती रही है. चार वर्षो की लंबी अवधि बीत जाने के बाद पुनर्निर्माण का काम शुरू भी हुआ, लेकिन इसकी गति काफी धीमी है. इधर स्टील पाइल ब्रिज के रूप में वैकल्पिक व्यवस्था के भी बह जाने से लोगों की परेशानी काफी बढ़ गयी है.
लंबे समय तक दोनों जिलों का सड़क संपर्क भंग रहा. अब स्टील पाइल ब्रिज के मरम्मत की स्वीकृति तो मांगी जा रही है. पर लोग कई नावों को जोड़ कर बनाये गये पुल के सहारे जान हथेली पर लेकर नदी पार हो रहे हैं. इस दौरान वाहनों को अत्यधिक व अवैध राशि चुकानी पड़ रही है. स्थायी समाधान की दिशा में सरकार का कोई ध्यान जाता नहीं दिख रहा है.
बढ़ गयी निर्माण सामग्री की कीमत. कोसी एवं बागमती नदी के संगम पर इस पुल के बन जाने से कई शहरों की दूरी कम हो गयी थी तो बाहर से आने वाले कई महत्वपूर्ण सामानों की कीमत सामान्य लोगों की पहुंच तक आ गयी थी. इधर पुल पर लगातार आवागमन होने से इलाके के दर्जनों गांव के लोगों को रोजगार का मौका भी मिल गया था. लेकिन 29 अगस्त 2010 को पुल के छठे पाये के धंस जाने के कारण एहतिहातन इस पर परिचालन बंद कर दिया गया. खगड़िया व सहरसा का सीधा सड़क संपर्क टूट गया. यात्री सहित व्यावसायिक वाहन पूर्णिया होकर आने लगे. दूरी बढ़ी तो किराया भी बढ़ा. बालू, चिप्स, छड़ सहित अन्य सामानों की कीमतों में भी उछाल आ गया.
नाव पर चलती है गाड़ियां. लगभग दो साल बाद नदी पार करने के लिए अस्थायी स्टील पाइल ब्रिज का निर्माण कराया गया. स्टील ब्रिज की शर्त यह थी कि बरसात में पानी बढ़ते ही इस पर परिचालन छह माह के लिए ठप कर दिया जाएगा. इसके बन जाने से लोग डुमरी एक बार फिर पार होने लगे. बाहर से आने वाले सामानों के मूल्य पर कुछ हद तक नियंत्रण हुआ, तो इस मार्ग के बंद हो चुके रोजगार भी फिर से पटरी पर आने लगे. लेकिन लगभग दो वर्षो के भीतर ही 19 अगस्त 2014 को कोशी के प्रवाह में यह स्टील पाइल ब्रिज भी बह गया. कोसी व बागमती की धारा ने एक बार फिर सहरसा व खगड़िया की दूरी बढ़ा दी. लोग एक बार फिर पूर्णिया, बिहारीगंज के वैकल्पिक मार्ग का उपयोग करने लगे. परेशानी, किराया सहित सामानों की अधिक कीमत एक बार फिर चुकानी पड़ी. इधर पिछले करीब दो महीने से ग्रामीणों ने 27 बड़ी नाव को जोड़ कर पुल का रूप दिया है, जिस पर वाहनों को राशि वसूल कर पार कराया जा रहा है. इस पुल के जरिये दूरी तो कम हुई, लेकिन यात्र काफी महंगी हो गयी, क्योंकि एक बार पार होने के लिए छोटी गाड़ी से चार सौ व बड़ी गाड़ी से छह सौ रुपये तक लिए जा रहे हैं. इस व्यवस्था में प्रशासन का योगदान नहीं है. लिहाजा उस पर किसी तरह का नियंत्रण भी नहीं है.
बाल-बाल बचे लोग. नाव पर नदी पार करने की मजबूरी लोगों को इस चचरी पुल तक ले आती है. ज्ञात हो कि रविवार देर रात हुई बरसात में चचरी पुल का एप्रोच कट गया था. इसके बाद सोमवार सुबह सात बजे तक चचरी किनारे वाहनों की लंबी कतार लगी रही. स्थानीय नाविकों के प्रयास से घंटे की मशक्कत के बाद आवागमन बहाल किया गया. स्थानीय लोग बताते है कि नदी का कटाव ज्यादा होने की वजह से कभी भी चचरी का मध्य भाग कोसी की चपेट में आ सकता है. इससे जान माल की बड़ी क्षति होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है.