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साहित्यकार माया नंद मिश्र नहीं रहे

सहरसा: साहित्य अकादमी से सम्मानित प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो मायानंद मिश्र का शनिवार सुबह पटना के आइजीएमएस अस्पताल में निधन हो गया. 83 वर्षीय साहित्यकार पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे. माया बाबू का जन्म 17 अगस्त 1930 में सुपौल जिले के बनैनिया गांव में हुआ था. दसवीं कक्षा से ही उन्होंने कविता लेखन […]

सहरसा: साहित्य अकादमी से सम्मानित प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो मायानंद मिश्र का शनिवार सुबह पटना के आइजीएमएस अस्पताल में निधन हो गया. 83 वर्षीय साहित्यकार पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे. माया बाबू का जन्म 17 अगस्त 1930 में सुपौल जिले के बनैनिया गांव में हुआ था. दसवीं कक्षा से ही उन्होंने कविता लेखन शुरू कर दिया था, जो मृत्यु से पहले तक जारी रहा. जिंदगी के आखिरी पड़ाव में हाथ थरथराने की वजह से उन्होंने लिखना कम कर दिया था, पर उनकी लेखनी की धार बरकरार थी.

उनकी प्रसिद्ध रचना माटी के लोग-सोने की नैया, दिशांतर, आवांतर (कविता संग्रह), आगि मोम पाथर, भांगक लोटा, चंद्र बिंदु, अभिनंदन (कहानी संग्रह), बिहाडि़ पात पाथर, खोता आ चिड़ै, मंत्रपुत्र, सूर्यास्त आदि रही. मैथिली उपन्यास मंत्रपुत्र के लिए 1988 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया. उनकी रचनात्मकता को बिहार सरकार ने भी 1989 में ग्रियर्सन पुरस्कार देकर सम्मानित किया. मैथिली के प्राध्यापक रह चुके माया बाबू को उनकी रचनाओं के लिए 1974 में सुबोध साहित्य सम्मान से भी नवाजा गया. अपनी रचनात्मक यात्रा का संस्मरण सुनाते माया बाबू कहते थे कि 1963 में पंडित नेहरू को विश्व शांति पर लिखी अपनी मैथिली कविता सुनाने का मौका मिला था. उन्होंने कहा था कि मैं समझता था कि दुनिया की सबसे मीठी भाषा फ्रेंच है, लेकिन मैथिली सुनने के बाद यह भ्रम दूर हो गया. 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कविता सुनाने के बाद भी कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया सुनने को मिली थी. बहरहाल, पिछले दस दिनों से पटना में इलाजरत माया बाबू के शनिवार सुबह अंतिम सांस लेते ही साहित्य जगत में मिथिलांचल को पहचान दिलाने वाले एक अध्याय का समापन हो गया.

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