सहरसा: जिले की जनसंख्या तकरीबन 11 लाख 33 हजार है. इनमें से शहरी क्षेत्र के 40 वार्डो की आबादी लगभग एक लाख के आसपास है. जिले का औसत जन्म दर पांच सौ प्रतिदिन है तो मृत्यु दर भी सौ के करीब है. जलाशय बनने से पूर्व 1996 तक मत्स्यगंधा शहर का एकमात्र शवदाह स्थल हुआ करता था.
उसके बाद हिंदुओं में मृत्यु के बाद शव का अंतिम संस्कार बड़ी परेशानी का सबब हो जाता है. सक्षम व समर्थ परिवार शव के दाह संस्कार के लिए भागलपुर जिले के बरारी घाट, कटिहार के मनिहारी घाट या फिर मधेपुरा धार के निकट स्थित घाट जाते हैं. मध्यम व सामान्य परिवार रिफ्यूजी कॉलोनी या वार्ड नंबर 39 स्थित श्मशान घाट जाते हैं. वार्ड नंबर 39 के सूबेदारी टोले में बना मुक्तिधाम सात वर्षो बाद भी चालू नहीं हो पाया है. लिहाजा शवदाह के लिए यह भी स्थायी ठिकाना नहीं बन पाया है. यहां शव मुक्तिधाम के द्वार पर ही जलाये जाते हैं. जीने भर की चिंता तो सभी करते हैं. लेकिन उसके बाद की व्यवस्था के लिए कोई आवाज नहीं उठाता है.
नप की लापरवाही
साल 2006 में तत्कालीन विधायक संजीव कुमार झा के प्रयास से सूबेदारी टोले में दस कट्ठे के सरकारी भूखंड पर मुक्तिधाम बनवा 2007 में इसे नगर परिषद को हस्तांतरित कर दिया गया था. उस समय इसके निर्माण में 50 लाख रुपये के करीब लागत आयी थी. मुक्तिधाम के करीब एक तालाब भी है. नगर परिषद में हर साल इस मुक्तिधाम का टेंडर भी होता रहा है. लेकिन वहां आज तक न तो गार्ड, राजा (मेहतर) की नियुक्ति की गयी है और न ही दाह संस्कार के लिए कोई अन्य सुविधा ही उपलब्ध करायी जा सकी है. लिहाजा यहां आस पड़ोस के लोगों का ही शव पहुंचता है, जो मुक्तिधाम के द्वार पर गड्ढा कर शव का अंतिम संस्कार करते हैं. रिफ्यूजी कॉलोनी स्थित श्मशान घाट लगभग दान की चार कट्ठे की जमीन में है.
अपनी जमीन पर श्मशान
जिले के दस प्रखंड व 153 पंचायतों के ग्रामीण इलाके में दाह संस्कार के लिए कहीं कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है. कहीं श्मशान स्थल नहीं है. गांवों में लोगों की मृत्यु होने पर परिजन या तो बस्ती से दूर किसी सरकारी भूखंड की तलाश करते हैं, अन्यथा अपनी खाली जमीन या खेतों को ही श्मशान घाट बना देते हैं. सिमरी बख्तियारपुर व सत्तरकटैया में रेल ट्रैक से नजदीक बसे लोग पटरी के किनारे की जमीन दाह संस्कार के लिए खूब उपयोग करते हैं.
पंचायत स्तर पर हो श्मशान घाट
श्मशान की समस्या को जानने वाले लोग कहते हैं जीवन के साथ मरण भी तय होता है. वे कहते हैं कि जैसे जीने के लिए पानी, भोजन और हवा अनिवार्य है. जीवन मिलने के बाद स्वस्थ रहने के लिए अस्पताल व इनसान बनने के लिए स्कूल की आवश्यकता होती है. उसी तरह मृत्यु के बाद इस मर्त्यलोक से मुक्ति व दाह संस्कार के लिए श्मशान घाट की भी जरूरत होती है. सरकार व प्रशासन को इस दिशा में भी पंचायत स्तर पर मुक्तिधाम की योजना बनानी चाहिए.