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रिपोर्ट मानी, तो जान का खतरा

जांच घर की जांच करो सरकार. बगैर चिकित्सक चल रहे हैं पैथोलैब सहरसा : यदि आप जिले की पैथोलॉजी में टायफाइड, मलेरिया या अन्य किसी बीमारी की जांच कराने जा रहे हैं तो जरा सावधान हो जाइए. क्योंकि यहां जांच कराने के बाद रिपोर्ट सही ही आयेगी, इस पर संदेह है. जी हां, यह हम […]

जांच घर की जांच करो सरकार. बगैर चिकित्सक चल रहे हैं पैथोलैब

सहरसा : यदि आप जिले की पैथोलॉजी में टायफाइड, मलेरिया या अन्य किसी बीमारी की जांच कराने जा रहे हैं तो जरा सावधान हो जाइए. क्योंकि यहां जांच कराने के बाद रिपोर्ट सही ही आयेगी, इस पर संदेह है. जी हां, यह हम नहीं बल्कि हाल ही में जांच कराने वाले लोगों की रिपोर्ट में अंतर आने से यह मामला सामने आया है. पैथोलॉजी की रिपोर्ट में अंतर आने का प्रमुख कारण लैब में डॉक्टर और पैथोलॉजिस्ट की कमी होना बताया जा रहा है. जिले में ज्यादातर पैथोलॉजी अवैध रूप से संचालित हो रही है.
आती है अलग-अलग रिपोर्ट : जिले में संचालित पैथोलॉजी की रिपोर्ट पर भरोसा करना आसान नहीं है. कारण कई बार एक ही बीमारी की जांच अलग-अलग पैथोलॉजी पर कराने पर रिपोर्ट भी अलग-अलग प्राप्त होती है. स्थिति यह है कि लैब पर मरीज पहले जांच कराता है तो उसे टायफाइड निकलता है, लेकिन जब वह दूसरी लैब पर जांच कराता है तो टायफाइड की रिपोर्ट निगेटिव आती है. ऐसे में मरीज के साथ ही डॉक्टर भी नहीं समझ पाते हैं कि आखिर वे कौन सी जांच रिपोर्ट पर भरोसा करें. ऐसे में मरीजों का सही और समय पर इलाज नहीं हो पा रहा है. जिससे अनावश्यक परेशानी का सामना करना पड़ता है.
बाहर रहते हैं पैथोलॉजिस्ट : जिले में दो-तीन जगहों के अलावा जो पैथोलॉजी लैब संचालित हो रहे हैं उनमें न तो प्रशिक्षित टेक्नीशियन हैं और न ही पैथोलॉजिस्ट ही रहते हैं. सिर्फ अप्रशिक्षित कर्मचारियों के भरोसे यह लैब संचालित की जा रही हैं. बताया गया है कि जिन पैथोलॉजिस्ट के नाम पर पैथोलॉजी का रजिस्ट्रेशन हैं वे बाहर के हैं. कभी कभार ही वे लैब पर आते हैं. सारा काम अनफिट कर्मचारियों द्वारा किया जा रहा है. यही वजह है कि जांच रिपोर्ट में अक्सर अंतर देखने को मिलता है.
पैथोलॉजिस्ट के नाम व हस्ताक्षर का अवैध रूप से उपयोग किया जाता है.
चार दर्जन से अधिक हैं लैब : जिले में करीब एक दर्जन के करीब पैथोलॉजी लैब संचालित हो रही हैं. जिनका रजिस्ट्रेशन है. इसके अलावा अन्य जो भी लैब संचालित हो रही हैं वह अवैध हैं. जिसकी संख्या चार दर्जन के करीब है. सबसे बड़ी बात यह है कि पैथोलॉजी लैब का रजिस्ट्रेशन है या नहीं और यह नियमानुसार संचालित हो रही हैं या नहीं इसकी जांच विभाग द्वारा समय-समय पर नहीं की जाती है. जिसकी वजह से खुलेआम अवैध लैब संचालित हो रही हैं.
पहले टायफाइड पॉजिटिव, दूसरे दिन निगेटिव
शहर के बटराहा निवासी व दिल्ली में रहने वाले इंजीनियर राजीव रंजन ने नया बाजार स्थित आरपी यादव चौक के समीप क्लिनिक चला रहे एक डॉक्टर की सलाह से उसी जगह की एक पैथोलॉजी पर टायफाइड की जांच करायी थी. रिपोर्ट पॉजिटिव आयी, लेकिन बुखार के कोई लक्षण नजर नहीं आने पर दूसरे दिन नगरपालिका चौक के समीप एक प्रतिष्ठित लैब पर जांच करायी, तो रिपोर्ट में टायफाइड नहीं निकला. ऐसे ही कई और उदाहरण हैं, जिनमें पैथोलॉजी लैब की रिपोर्ट गलत आने से मरीजों को परेशानियों से गुजरना पड़ा है.
गलत रिपोर्ट से परेशानी
जांच रिपोर्ट गलत होने से मरीज का सही उपचार नहीं हो पाता.
डॉक्टर मरीज को वे दवाएं देते हैं जो उसके इलाज के लिए अनफिट होती है.
बीमारी के मुताबिक दवा नहीं होने से मरीज की हालत सुधरने की जगह बिगड़ जाती है.
धन और शरीर दोनों का नुकसान होता है.
ऐसा हो लैब
लैब पर एमडी डॉक्टर के अलावा प्रशिक्षित लैब टैक्नीशियन होने चाहिए.
जिस जगह जांच होती हो वह कमरा वातानुकूलित होना चाहिए.
जांच के लिए आधुनिक मशीनों को इस्तेमाल होना चाहिए.
स्वास्थ्य विभाग में लैब का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए.

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