सहरसा : जिले ही नहीं प्रमंडल की बड़ी समस्या की फेहरिस्त में बंगाली बाजार ओवरब्रिज का मुद्दा हमेशा पहले नंबर पर आयेगा. प्रमंडलीय मुख्यालय में सड़क जाम से निजात मिलने की छटपटाहट स्थानीय लोगों में बीते दो दशक से देखी जा रही है. वर्तमान में प्रभात खबर की लगातार दो वर्षों तक चलायी गयी मुहिम व प्रशासनिक सजगता के अलावे स्थानीय जनमानस द्वारा किये गये आंदोलन की वजह से बंगाली बाजार में ओवरब्रिज निर्माण की उम्मीद जग गयी है.
कोई आने वाले समय में शहर की बदलने वाली सूरत तो कोई सड़क जाम से जुड़ी अविस्मरणीय वाकये को जाहिर कर जिले के पहले बनने वाले ओवरब्रिज से जुड़ी भावनाओं को साझा कर रहे हैं. ज्ञात हो कि गंगजला निवासी व जिले के चर्चित खेल प्रशिक्षक रौशन सिंह धोनी के पिताजी को सड़क जाम की वजह से ससमय अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका था. इस वजह से 19 नवंबर 2014 को उनकी जान चली गयी थी. प्रभात खबर में उस समय घटित वाकये को प्रभात अभियान में प्रकाशित किया गया था.
बंगाली बाजार में बनेगा अोवरब्रिज, लोगों की जुड़ी हैं खट्टी, मीठी व कड़वी यादें
देखेंगे ब्रिज, तो बिटिया की आयेगी याद
जिले के सौरबाजार निवासी सुरेश साव ने बताया कि ओवरब्रिज बनने की खबर से ही चार साल पहले की घटना याद आने लगी. उन्होंने भावुकता भरे संदेश में कहा कि गांव में बेटी की तबीयत अचानक खराब हो जाने की वजह से ऑटो पर लेकर सहरसा आया था. लेकिन प्रकृति को यह मंजूर नहीं था. लगभग एक घंटे तक ढ़ाला पर लगी सड़क जाम में फंसा रहा. इस बीच पता ही नहीं चला कि बेटी कब हमलोगों से विदा हो गयी. डॉक्टरों ने बताया कि आधा घंटा पहले भी आते तो गुंजाइश बची हुई थी. ऑक्सीजन की कमी मौत की वजह बन गयी. पिता सुरेश बताते हैं कि दिन-ब-दिन सड़क जाम की समस्या बढ़ती गयी है.
लेकिन ओवरब्रिज बनने की सूचना से आस जगी है. उन्होंने कहा कि पुल बनने के बाद इतनी तो उम्मीद कर ही सकते हैं कि कोई पिता ससमय बीमार बच्चों को अस्पताल तक पहुंचाने में कामयाब होगा. वह कहते हैं कि पुल हमेशा छोटी सी गुड़िया की याद दिलाती रहेगी.
…अौर सड़क जाम ने बदल दी जिंदगी
महिषी प्रखंड के पस्तवार पंचायत निवासी पंकज बताते हैं कि बंगाली बाजार के सड़क जाम को ताउम्र नहीं भूला सकता हूं. उन्होंने कहा कि गांव से पूरब बाजार स्थित बाइक शो रूम में सर्विसिंग के लिए जा रहा था. शंकर चौक पर लंबा जाम लगा हुआ था. उन्होंने बताया कि 14 मार्च 2015 की बात है. किसी प्रकार बाइक को वापस डीबी रोड की तरफ मोड़ने में कामयाब हो पाया था. इसी बीच ऑटो में बैठी कहरा प्रखंड की रहने वाली चांदनी (बदला हुआ नाम) ने रिक्वेस्ट करते कहा कि मुझे मधेपुरा जाना है. लेकिन जाम की वजह से शायद नहीं पहुंच पाउंगी. उस लड़की ने बस स्टैंड तक पहुंचाने का आग्रह किया. पहले तो अटपटा लगा लेकिन उसकी मजबूरी देख लिफ्ट दे दी. बस स्टैंड पहुंचते ही निराशा हाथ लगी. सभी गाड़ियां पटना में होने वाली किसी राजनीतिक दल की रैली में गयी हुई थी. इसके बाद उसकी परेशानी देख मैंने ही मधेपुरा स्थित पीएस कॉलेज पहुंचाने की बात कही. जिसे उसने भी मान लिया. पंकज कहते हैं कि पहुंचाने के बाद उस लड़की ने धन्यवाद जताते विदा ले ली थी. लेकिन स्वयं अकेली लड़की को छोड़ नहीं आ सका. लगभग तीन घंटे के बाद जब चांदनी परीक्षा केंद्र से बाहर निकली व मुझे खड़ा देख आश्चर्यचकित हो गयी. शायद वहीं दोस्ती आठ महीने में इतनी प्रगाढ़ हो गयी कि वह आज जीवनसंगिनी के रूप में रह रही है.