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सदर अस्पताल में शुरू हुई थी योजना

सहरसा : सरकार के निर्देश पर सदर अस्पताल व पीएचसी में युवा व नि:शक्त क्लिनिक आनन-फानन में शुरू तो कर दी गयी. लेकिन उसे देखने वाला कोई नहीं है. हालात यह है कि दोनों क्लिनिक कागज पर ही युवा व नि:शक्तों का इलाज कर रहे हैं. इसे देखने की फुर्सत ना ही जिला प्रशासन को […]

सहरसा : सरकार के निर्देश पर सदर अस्पताल व पीएचसी में युवा व नि:शक्त क्लिनिक आनन-फानन में शुरू तो कर दी गयी. लेकिन उसे देखने वाला कोई नहीं है. हालात यह है कि दोनों क्लिनिक कागज पर ही युवा व नि:शक्तों का इलाज कर रहे हैं. इसे देखने की फुर्सत ना ही जिला प्रशासन को है और ना ही स्वास्थ विभाग को. इस स्थिति में स्वास्थ को बेहतर बनाने का दावा कहां तक उचित है, कहना बेईमानी होगी. प्रमंडलीय अस्पताल होने के बावजूद इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है.

स्थिति इतनी खराब है कि डॉक्टर के बैठने की जगह पर कंप्यूटर ऑपरेटर बैठते हैं और मरीजों की जांच के लिए लगाये गये बेड पर कागज व खाली कार्टून रखा गया है. वहीं मरीजों के बैठने के लिए लगायी गयी कुर्सी क्लिनिक का हाल बता रही है. परदे पर धूल जमी है. उद्घाटन के कुछ दिन बाद ही क्लिनिक के लिए उपलब्ध कमरा, कंप्यूटर ऑपरेटर व अन्य के लिए नाश्ता करने व बैग रखने की जगह बन गया.

आनन-फानन में हुआ था उद्घाटन
सरकार व विभागीय आदेश के बाद कुछ माह पहले सदर अस्पताल परिसर स्थित ओपीडी के एक कमरे में युवा क्लिनिक का उद्घाटन किया गया था. इसका नोडल पदाधिकारी डीआईओ डॉ संजय कुमार सिंह को बनाया गया था. वहीं नि:शक्त क्लिनिक का ओपीडी से इतर समय रखा गया था. जिसमें बुजुर्ग व नि:शक्तों को देखने के लिए अलग से व्यवस्था की गयी थी. लेकिन वह भी हवा-हवाई साबित हुई. जानकारी के अनुसार, क्लिनिक को चलाने के लिए सदर अस्पताल व पीएचसी को 25 हजार की कुर्सी, टेबल व अन्य सामान दिया गया था. इसके बाद प्रति वर्ष दस हजार रुपये रखरखाव के लिए दिये जाने हैं. लेकिन दुर्भाग्यवश क्लिनिक युवाओं व नि:शक्त को लाभ देने से पहले ही खुद कोमा में चला गया है.

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