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सात साल से प्रशासनिक पेच में फंसा पत्थर खनन का धंधा, करोड़ों की क्षति

मंतोष कुमार पटेल, सासाराम सदर : विगत सात साल से जिले में पत्थर खनन का धंधा प्रशासनिक पेच में फंसा है. जिससे जिले के सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गये, तो कई लोग जिले से पलायन भी कर चुके हैं. इतना ही नहीं, जिले में पत्थर खनन बंद होने जिले के लोगों पर बुरा प्रभाव पड़ने […]

मंतोष कुमार पटेल, सासाराम सदर : विगत सात साल से जिले में पत्थर खनन का धंधा प्रशासनिक पेच में फंसा है. जिससे जिले के सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गये, तो कई लोग जिले से पलायन भी कर चुके हैं. इतना ही नहीं, जिले में पत्थर खनन बंद होने जिले के लोगों पर बुरा प्रभाव पड़ने के साथ साथ सरकार का भी सालाना करोड़ों रुपये की राजस्व की क्षति भी हो रही है. इसके बावजूद खान एवं भूतत्व विभाग अब तक जिले में पत्थर खनन के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं ले रहा है. अब तक जिले के पत्थर खनन का धंधा प्रशासनिक पेच में ही फंस हुआ है.
गौरतलब है कि जिले में पत्थर खनन पर वर्ष 2012 से ही प्रतिबंध लगा हुआ है. केंद्रीय टीम के रिपोर्ट के आधार पर खान एवं भूतत्व विभाग ने विगत 30 अप्रैल, 2012 को जिले में खनन कार्य पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद संबंधित विभाग ने पून: जिले में पत्थर खनन शुरू करने का विचार किया.
इसके बाद संबंधित विभाग विगत जून 2016 में खनन पट्टों की बंदोबस्ती की प्रक्रिया शुरू करने की हरी झंडी दिखा दी. जिससे पत्थर व्यवसायी व पत्थर कारोबार से जुड़े लोगों में खुशी की लहर दौड़ गयी. कई आवेदकों ने खनन पट्टों की नीलामी के लिए निविदा भी डाली. लेकिन, लोगों के खुशी पर एक बार फिर पानी फिर गया.
संबंधित विभाग ने उस समय बंदोवस्ती की अंतिम तिथि के समय में अपरिहार्य कारणों से पत्थर खनन क्षेत्रों की बदोवस्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी. इसके बाद खान एवं भूतत्व विभाग ने सोच-समझकर एक बार फिर करीब ढाई साल बाद पत्थर खनन क्षेत्र की बंदोबस्ती की प्रक्रिया शुरू कर निर्देश जारी कर दिया. लेकिन, फिर लोगों को मायूसी हाथ लगी. उस समय भी बंदोबस्ती होने ही तिथि के अंतिम समय में निविदा की प्रक्रिया पर रोक लगा दी गयी.
गायब हो गयीं सारी खुशियां
विगत 17 जनवरी 2019 को जिले के लोगों में सात साल के बाद खुशी लौटी थी. लोगों में एक रोजगार की उम्मीद जगी थी. कारण था कि खान एवं भूतत्व विभाग पटना ने 17 जनवरी 2019 को बीएमएमसी रूल्स 1972 यथा संशोधित 2014 के नियम-52 के तहत जिले में तीन पत्थर खदानों की बंदोबस्ती की प्रक्रिया शुरू करने की हरी झंडी दिखा दी. जिले के गायघाट व गिंजवाहीं मौजा के तीन पत्थर खनन खदानों की नीलामी की प्रक्रिया सात फरवरी से शुरू करने की बात कही थी.
संबंधित खनन पट्टों की कीमत करीब 196 करोड़ रुपये भी तय कर दी गयी थी. जिससे पत्थर उद्योग से जुड़े लोगों में खुशी व्याप्त हुई थी. सात साल बाद लोगों में एक उम्मीद जग गयी थी कि एक बार फिर से जिले में पत्थर उद्योग शुरू होगा. लेकिन न जाने किसकी नजर लगी कि एक दिन पहले टेंडर की प्रक्रिया को स्थगित कर दिया गया और जिले के लोग सकते में आ गये.
सात फरवरी को ई-टेंडर होने वाला था. लेकिन, छह फरवरी के देर रात ही खान एवं भूतत्व विभाग के अवर सचिव सुशील कुमार के ने पत्र जारी कर पत्थर खदानों के बंदोबस्ती की प्रक्रिया को अगले आदेश तक स्थगित करने की पत्र जारी कर दिया. जिससे निविदा प्रक्रिया पर एक बार फिर रोक लग गयी. जिससे पत्थर उद्योग से जुड़े लोगों में एक बार फिर से मायूसी छा गयी.
कई कंपनियों के अरबों रुपये फंसने की आशंका
खान एवं भूतत्व विभाग ने 17 जनवरी 2019 को बीएमएमसी रूल्स 1972 यथा संशोधित 2014 के नियम-52 के तहत जिले में तीन पत्थर खदानों की बंदोबस्ती की प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिया था. सात फरवरी को जिले के गायघाट व गिंजवाहीं मौजा के तीन पत्थर खनन खदानों की नीलामी की प्रक्रिया शुरू होने वाली थी. जिले के तीन पत्थन खनन पट्टों की बंदोबस्ती के लिए कई कंपनियां ने निविदा पत्र जमा कर चुकी थीं.
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, खनन पट्टों के टेंडर के लिए एसपीएनएल, बंशीधर, एसएस कंपनी, ऑकटेल, निलांबर, उपेंद्र कंस्ट्रक्शन, ब्रांडसन, बालाजी, श्रीराम पावर, चैंपियन ग्रुप, सैनिक फूड आदि कंपनियों ने आवेदन पत्र जमा किये थे. इन कंपनियों ने टेंडर के लिए प्रतिभूति के रूप में शायद करीब 1.95 अरब रुपये का ड्राफ्ट भी जमा किया है. लेकिन, बंदोबस्ती की प्रक्रिया पर रोक बाद कंपनियों के अरबों रुपये फंसने के आसार बढ़ गये है.
सरकार को मिलता 1200 करोड़ रुपये राजस्व
जिले के गायघाट व गिजवाही के तीन खनन पट्टों की बंदोबस्ती करने की कीमत खान एवं भूतत्व विभाग ने करीब 196 करोड़ रखी थी. यदि जिले के इन तीन पट्टों को ही बंदोबस्ती होता, तो इससे सरकार को बड़े पैमाने पर राजस्व प्राप्ति होती. विभागीय सूत्रों व जानकारों के अनुसार इस तीन खनन पट्टों की नीलामी की प्रक्रिया पूरी होती, तो सरकार को करीब 1200 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता.
सात वर्षों में तीन सौ करोड़ रुपये राजस्व की हो चुकी है क्षति
जिले में करीब सात वर्ष से पत्थर खनन का कार्य बंद है. विभागीय जानकार इन सात सालों में खनन विभाग को करीब 300 करोड़ रुपये राजस्व की क्षति होने का अनुमान लगाते हैं. यदि सात साल पहले खनन पट्टों की बंदोबस्ती हुई होती, तो विभाग को इतना बड़ा नुकसान नहीं होता. साथ ही जिले के लोगों को आसानी से कम कीमत पर पत्थर भी मिलते और सबसे बड़ी बात है कि पत्थर उद्योग से जुड़े कारोबारियों व मजदूरों को पलायन नहीं करना पड़ता.
विभाग से निर्देश मिलने पर उठाया जायेगा कदम
सरकार जिले में लगभग सात साल से पत्थर खनन पर रोक लगा रखी है. कई बार विभाग से पत्थर खनन शुरू करने के लिए पट्टों की बंदोबस्ती के लिए पत्र जारी किया. पर अपरिहार्य कारणों से पत्थर खनन क्षेत्रों की बंदोबस्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी गयी. जिले में अब तक पत्थर खनन पर पूरी तरह रोक है. भविष्य में विभाग से कोई निर्देश या पत्र जारी होता है, तो पत्थर खनन के बारे में सोचा जा सकता है.
मनोज अंबष्ट, जिला सहायक खनन पदाधिकारी

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