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कालापानी के प्रदेश में अब अलविदा हो रहा है कालाजार

पूर्णिया : जहर खाउ नय माहुर खाउ, मरबाक होये त पूर्णिया आउ’ कालाजार के संदर्भ में यह उक्त कहावत पूर्णिया के लिए पूरे देश में मशहूर था. अब भी बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि ब्रिटीश शासन काल के पूर्व से ही जिला कालाजार के प्रकोप के कारण ही कालापानी के नाम से विख्यात था. किसी […]

पूर्णिया : जहर खाउ नय माहुर खाउ, मरबाक होये त पूर्णिया आउ’ कालाजार के संदर्भ में यह उक्त कहावत पूर्णिया के लिए पूरे देश में मशहूर था. अब भी बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि ब्रिटीश शासन काल के पूर्व से ही जिला कालाजार के प्रकोप के कारण ही कालापानी के नाम से विख्यात था. किसी को मौत की सजा देनी होती थी तो पूर्णिया भेज दिया जाता था.

लेकिन पिछले कुछ वर्षों में अब यह धारणा काफी हद तक बदल चुकी है. दरअसल कालाजार के विरुद्ध दशकों से चली लंबी लड़ाई के बाद अब कालापानी के इस प्रदेश से कालाजार का नामोनिशान मिटने की स्थिति में है. जिले के 14 प्रखंडों में से 12 प्रखंड कालाजार मुक्त हो चुका है. जिले के दो प्रखंड बनमनखी व धमदाहा में विभाग कालाजार के विरुद्ध अंतिम लड़ाई लड़ रही है. ऐसे में उम्मीद यही जतायी जा रही है कि शीघ्र ही पूरा जिला कालाजार मुक्त हो जायेगा.

पिछले वर्ष मिले थे 26 मरीज
पिछले वर्ष कालाजार खोज अभियान में मात्र 26 कालाजार मरीज पाये गये. यह बात भी सत्य है कि पिछले आठ वर्षों में कालाजार से मात्र 12 लोगों की ही मौत हुई है. विभाग इस बात से भी खुश है कि वर्ष 2016 में कालाजार से एक भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है. विभागीय आंकड़ो पर गौर करें तो यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पूर्णिया कालाजार के खिलाफ अंतिम लड़ाई लड़ रहा है. शीघ्र ही कालाजार के कारण कालापानी के कलंक से मुक्त भी हो जायेगा.
क्या है कालाजार
इसके नाम से ही प्रतीत हो जाता है कि यह रोग काल का ज्वर है.यह बालूमक्खी के काटने से होता है.बालूमक्खी अंधेरे और नमीयुक्त स्थानों तथा दीवारों की दरार, छेद व गोबर के ढेर पर पाया जाता है.यह मच्छर गोबर के ढेर पर ही अंडे देती है और बड़ा होकर बालूमक्खी बन जाता है.यह मच्छर जानवरों तथा मनुष्यों को काटने के क्रम में कालाजार के रोगाणु मनुष्य के शरीर में छोड़ देता है.
कालाजार की पहचान: बालू मक्खी के काटने के दस दिन से लेकर एक वर्ष के बाद भी कालाजार होता है.औसतन एक माह के अंतराल में कालाजार के लक्षण दिखने लगते है.इसके रोगीको तेज व रुक रुक कर बुखार होना ,रोगी का कमजोर एवं वजन कम होना,खून में कमी होना,लीवर का बड़ा हो जाना आदि प्रमुख लक्षण है.लक्षण के दिखते ही नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में जा कर जांच कराना चाहिए. इसके बाद डॉक्टर की सलाह पर दवा लेना चाहिए.इसका इलाज 28 से 30दिन तक चलता है.जब तक डॉक्टर स्वस्थ होने का संकेत नहीं दे,तब तक दवा जारी रखना चाहिए.
यहां होगी पैनी निगाह
जिले के कुल 14 प्रखंडों में से 12प्रखंड में विभागीय मानकों के अनुरुप कालाजार का सफाया हो चुका है.सिर्फ बनमनखी व धमदाहा प्रखंड को कालाजार मुक्त होना बाकी है.विभाग इन दोनों प्रखंडों में पैनी नजर रख रही है और कालाजार को समूल मुक्त करने की दिशा में काम कर रही है.यहां उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने दिसंबर 2015 में ही कालाजार मुक्त करने का लक्ष्य रखा था.यहां विभाग लक्ष्य के बिलकुल करीब पहुंच चुकी है.
ऐसे हो बचाव
बालूमक्खी पनपने के संभावित ठिकानों यथा नमीयुक्त स्थानों से नमी दूर करने की व्यवस्था की जानी चाहिए. गोशाला और घर के आसपास को साफ रखना चाहिए. बालू मक्खी के ठिकानों, दीवारों के दरार एवं छिद्र को भर लेना चाहिए. लोगों को नंगे बदन नहीं सोना चाहिए. साथ ही सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए. डीडीटी का छिड़काव साल में दो बार अवश्य करा लेना चाहिए. ऐसा करने से कालाजार के खतरों से बचा जा सकता है.
पूर्णिया से कालाजार का सफाया होता जा रहा है. विभाग इस दिशा में निरंतर सकारात्मक सोच के साथ काम कर रहा है. जिले के दो प्रखंड अब भी कालाजार के जद में है. शीघ्र ही पूर्णिया कालाजार से मुक्त होने की संभावना है.
डाॅ सीएम सिंह, जिला मलेरिया पदाधिकारी, पूर्णिया

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