रेल परिचालन. उम्मीदें रह गयीं अधूरी, महज तीन जोड़ी पैसेंजर ट्रेनें ही िमलीं
Advertisement
दो बजे के बाद पूिर्णया आना मुिश्कल
रेल परिचालन. उम्मीदें रह गयीं अधूरी, महज तीन जोड़ी पैसेंजर ट्रेनें ही िमलीं कुसहा त्रासदी के बाद सहरसा पूिर्णया रेलमार्ग पर अमान परिवर्तन के बाद लोगों को काफी उम्मीदें थीं. रेल िवभाग की ओर से इस मार्ग पर महज तीन जोड़ी पैसेंजर ट्रेनें ही चल रही हैं. दिन के दो बजे के बाद पूिर्णया आने […]
कुसहा त्रासदी के बाद सहरसा पूिर्णया रेलमार्ग पर अमान परिवर्तन के बाद लोगों को काफी उम्मीदें थीं. रेल िवभाग की ओर से इस मार्ग पर महज तीन जोड़ी पैसेंजर ट्रेनें ही चल रही हैं. दिन के दो बजे के बाद पूिर्णया आने के लिए एक भी ट्रेन नहीं है.
पूर्णिया : 18 अगस्त 2008, एक काली तारीख के रूप में इतिहास के पन्नों में दर्ज है. इसी दिन कोसी अपने तटबंध को तोड़ कर बेलगाम हुई थी और त्रासदी की जो इबारत लिखी, वह आज भी लोगों के जेहन में मौजूद है. सैकड़ों लोग काल-कलवित हुए, हजारों मकानें ध्वस्त हुई और आवागमन के साधन रेल और सड़क पूरी तरह ध्वस्त हो गयी.
सच तो यह है कि त्रासदी के आठ वर्ष बाद भी कोसी की काली छाया से रेल और सड़क उबर नहीं पाया है. कोसी और सीमांचल को जोड़ने वाली रेल मार्ग आज भी अच्छे दिनों का इंतजार कर रही है. वर्षों इंतजार के बाद रेल परिचालन आरंभ भी हुआ तो वह छलावा ही साबित हो रहा है. स्थानीय लोग खुद को ठगी का शिकार मानते हैं. लिहाजा अब अपने हक के लिए गोलबंदी शुरू हो गयी है और आंदोलन का शंखनाद भी हो चुका है.
बढ़ने की बजाय घट गयी ट्रेनों की सुविधा
स्थानीय लोग कोसी नदी के साथ-साथ रेल मंत्रालय को भी कोसने से नहीं चूकते हैं. दरअसल अमान परिवर्तन से लोगों को उम्मीद बंधी थी कि बड़ी लाइन होने के बाद छोटी लाइन के दिनों की समस्याएं कम हो जायेगी. लेकिन सब कुछ ठीक विपरित हुआ. बहरहाल तीन जोड़ी पैसेंजर ट्रेन ही पूर्णिया और सहरसा के बीच परिचालित हो रही है.
खास यह है कि सहरसा से दिन के 02 बजे के बाद एक भी ट्रेन पूर्णिया के लिए नहीं जाती है. कुसहा त्रासदी से पूर्व सहरसा-कटिहार के बीच पांच जोड़ी पैसेंजर ट्रेन और चार जोड़ी एक्सप्रेस ट्रेन का परिचालन होता था. हैरानी की बात यह है कि सहरसा-कटिहार के बीच एक भी पैसेंजर ट्रेन का परिचालन नहीं होता है. इस वजह से लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है.
राज्यरानी व जनसेवा से भी हुए वंचित
अमान परिवर्तन के बाद रेल परिचालन आरंभ होने से फायदे की जगह नुकसान ही अधिक हुए हैं. यह सर्वविदित है कि कोसी और सीमांचल के हजारों लोग रोजी-रोटी के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं. खासकर बनमनखी से लेकर मधेपुरा तक के लोग पंजाब और दिल्ली जाने के लिए सहरसा से जनसेवा एक्सप्रेस की सवारी किया करते थे.
लेकिन ट्रेनों की नयी समय सारिणी के बाद अब बनमनखी से लेकर मधेपुरा तक के लोगों का लिंक ट्रेन के द्वारा सहरसा पहुंचने की संभावना पूरी तरह समाप्त हो गयी है. इसी प्रकार बनमनखी से लेकर मधेपुरा तक के लोगों के लिए राज्यरानी एक्सप्रेस पकड़ने के लिए लिंक ट्रेन उपलब्ध थी, जो अब समाप्त हो चुकी है. जाहिर है लोगों की मुश्किलें बढ़ी है और रेलवे को प्रतिदिन मिलने वाला लाखों का राजस्व भी समाप्त हो चुका है.
कहते हैं लोग, यह है धोखाधड़ी
भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राज्य कार्यकारिणी के सदस्य विनोद कुमार बाफना एक शेर के जरिये लोगों के दर्द को बयां करते हुए कहते हैं कि ‘ माना कि तगाफुल न करोगे, लेकिन खाक हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक ‘ . श्री बाफना ने कहा कि लंबी दूरी की ट्रेनों का परिचालन नहीं आरंभ होना भी आश्चर्यजनक है. तत्काल ही हाटे बाजारे एक्सप्रेस को पूर्णिया-सहरसा के रास्ते चलाया जाना चाहिए और गरीबरथ तथा पुरविया एक्सप्रेस का विस्तार पूर्णिया कोर्ट तक होना चाहिए. वहीं छात्र नेता राजेश यादव ने कहा कि यह ट्रेन परिचालन नहीं, कोसी और सीमांचल की जनता के साथ धोखाधड़ी है.
ट्रेनों के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है और जानकी एक्सप्रेस जैसे महत्वपूर्ण ट्रेन का ठहराव पूर्णिया कोर्ट स्टेशन में नहीं हो रहा है. रेल मंत्रालय की मनमानी के खिलाफ अब आंदोलन की शुरूआत हो चुकी है. वहीं सामाजिक कार्यकर्ता आमोद मंडल ने कहा कि सोची-समझी साजिश के तहत सीमांचल के लोगों को रेल सुविधा से वंचित रखा जा रहा है. ट्रेन की जो टाइम टेबुल है, वह आम लोगों के किसी काम का नहीं है. ऐसा लगता है कि केवल औपचारिकता पूरी की जा रही है.
आठ वर्ष बाद हुआ कोसी-सीमांचल का एकीकरण
सहरसा और पूर्णिया के बीच वर्ष 2008 से ही रेल परिचालन ठप पड़ा हुआ है. 2008 के बाद 2011 तक आंशिक रूप से इस मार्ग पर परिचालन तो हुआ, लेकिन उसी वर्ष रेल परिचालन पूरी तरह बंद कर दिया गया और 2012 में बड़ी रेल लाइन निर्माण का कार्य आरंभ हुआ. बाढ़ के दिनों में सहरसा-बनमनखी के बीच रेल परिचालन आरंभ हुआ, लेकिन पूर्णिया तक परिचालन बंद ही रहा. अंतत: 10 जून 2016 को सारी औपचारिकता पूरी होने के बाद सहरसा और पूर्णिया के बीच रेल परिचालन आरंभ हुआ और इस प्रकार आठ वर्ष के बाद कोसी और सीमांचल का एकीकरण हुआ.
छलावा साबित हो रहा है रेल परिचालन
रेल परिचालन आरंभ हुए तीन माह बीत चुके हैं, लेकिन आम लोग मानते हैं कि यह परिचालन छलावा है. दरअसल कहने के लिए रेल परिचालन हो रहा है, लेकिन आम लोग ट्रेनों की कमी के कारण और बेतुके समय सारिणी की वजह से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि जानकी एक्सप्रेस का ठहराव पूर्णिया कोर्ट, जानकीनगर और मुरलीगंज जैसे महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन पर नहीं हो रहा है, जिसका कोई औचित्य नहीं है. हर कोई जानता है कि कोसी, सीमांचल और मिथिलांचल का सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध रहा है. बावजूद ट्रेनों का ठहराव नहीं होना किसी आश्चर्य से कम नहीं है.
ट्रेनों की जो समय सारिणी है, वह आम यात्रियों के समझ से परे है. जानकी एक्सप्रेस कटिहार से रात के 11:45 बजे खुलती है और आधी रात के बाद ही सीमांचल और कोसी के इलाके से गुजरती है. वहीं कोसी एक्सप्रेस रात को पूर्णिया कोर्ट स्टेशन से 02 बजे खुलती है. जाहिर है कि पटना जाने वालों के लिए पूरी रात जग कर दूसरे दिन दोपहर तक पटना पहुंचना कोई मायने नहीं रखता है. पूर्णिया से पटना जाने के लिए बेहतरीन विकल्प मौजूद हैं. इस प्रकार कोसी एक्सप्रेस हो या जानकी एक्सप्रेस, इसका परिचालन कहीं से भी जनहित से जुड़ा हुआ नहीं है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement