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कलश स्थापन के साथ चैती नवरात्र शुरू

कलश स्थापन के साथ चैती नवरात्र शुरूपूर्णिया. शुक्रवार को कलश स्थापन के साथ चैती नवरात्र का आगाज हुआ. पूजा के प्रथम दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की गयी. जबकि शनिवार को माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जायेगी. पूजा को लेकर श्रद्धालुओं में काफी उत्साह व्याप्त है. पूजा को […]

कलश स्थापन के साथ चैती नवरात्र शुरूपूर्णिया. शुक्रवार को कलश स्थापन के साथ चैती नवरात्र का आगाज हुआ. पूजा के प्रथम दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की गयी. जबकि शनिवार को माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जायेगी. पूजा को लेकर श्रद्धालुओं में काफी उत्साह व्याप्त है. पूजा को लेकर विभिन्न मंदिरों में पंडाल व मूर्ति का निर्माण कराया जा रहा है. वही घरों में भी लोग माता की आराधना में जुट गये हैं. गौरतलब है कि हिंदू मान्यताओं के अनुसार वर्ष में दो बार नवरात्र का पर्व मनाया जाता है. जिसमें शारदीय नवरात्र व चैती नवरात्र शामिल है. इस वर्ष चैती नवरारत्र 08 से 15 अप्रैल के बीच मनाया जा रहा है. पंचम तिथि का क्षय होने के कारण नवरात्र आठ दिनों का हुआ है. नवरात्र के दौरान माता के पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. शुभ है आठ दिनों का नवरात्रकसबा के पंडित पंकज झा बताते हैं कि इस वर्ष 08 दिनों का नवरात्र हुआ है, जो अति शुभप्रद है. उन्होंने बताया कि नवरात्र शुक्रवार से शुक्रवार तक चलना है. शुक्र इस नये वर्ष का स्वामी है, जो स्त्री ग्रह है और भगवती लक्ष्मी का स्वरूप है. श्री झा के अनुसार यह समस्त भौतिक संपदाएं प्रदान करने वाला है. पुरुषों के लिए मां भगवती की पूजा तो फलदायी होगी ही. साथ ही महिलाओं के लिए विशेष रूप से फलदायी साबित होगी. हर उम्र की महिलाएं नवरात्र के दौरान पूजा-आराधना कर आत्म विकास कर सकती है. विधानपूर्वक माता की पूजा से परिवार के कष्ट दूर होंगे और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी. बताया कि इस बार माता का पर्दापण डोली पर हुआ है और वह मुर्गे पर चढ कर विदा होंगी. 11 अप्रैल को पंचमी तिथि के क्षय के कारण नवरात्र 08 दिनों का हुआ है. अष्टमी की पूजा तक यह करें अर्पणमाता के नौ करोड़ रूप बताये गये हैं. इनमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धीदात्रि स्वरूप नवरात्र के नौ दिनों के प्रतिनिधि रूपों में सूचक हैं. पंडित श्री झा कहते हैं कि इसके तहत प्रदथ दिन केश संस्कार के लिए देवी को चंदन, त्रिफला चूर्ण व कंघी अर्पित करना शुभ बताया गया है. वहीं द्वितीया को चोटी या रीबन अर्पित कर सकते हैं. तृतीया को दर्पण (शीशा), आलता व सिंदूर, चतुर्थी को मधुपर्क (दही, शहद और घी का मिश्रण), बिंदी व काजल, पंचमी को इत्र, उबटन तथा यथाशक्ति अलंकार की चीजें अर्पित करना शुभ है. जबकि षष्ठी को बेल के वृक्ष के पास जा कर रोली, अक्षत, पुष्प, सुपारी तथा सिक्का नीचे रख कर माता को आमंत्रित करना चाहिए. सप्तमी की सुबह उंठल के साथ बेल ला कर भगवती के रूप में उसकी पूजा करें. अष्टमी को महागौरी की विशेष वस्त्र अलंकार, विविध पकवान व नारियल बलि के साथ पूजा-अर्चना करें. नवमी को अनुष्ठान की सिद्धि के लिए खीर आदि का हवन करना विशेष फलदायी होगा. मनोकामना पूरी करेगा दुर्गासप्तमी का पाठशास्त्रों में नवरात्र के दौरान दुर्गासप्तमी के पाठ को विशेष फलदायी बताया गया है. कहा गया है कि ‘नानेन सदृशं स्तोत्रं विद्यते भुवनत्रयम् ’. अर्थात तीनों लोक में इसके समान कोई स्त्रोत नहीं है. पाठ के पहले पुस्तक को किसी ऊंचे आसन पर रख कर पूजा करनी चाहिए. इसके बाद सप्तशती के 13 अध्यायों के पाठ के पूर्व कवच, अर्गला, कीलक का सस्वर उच्चारण कर एक माला नवार्ण मंत्र ( ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चै) का जाप करें. 01 से 13 अध्याय का पाठ कर पुन: नवार्ण का एक माला जप कर प्राधानिक, वैकृतिक एवं मूर्ति तीनों रहस्यों का पाठ करना चाहिए. समय के अभाव में पहले दिन आवश्यक विधान पूरा कर प्रथम अध्याय का पाठ कर लेना चाहिए. वहीं दूसरे दिन द्वितीय व तृतीय, तीसरे दिन चतुर्थ, चौथे दिन पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय का पाठ कर सकते हैं. पांचवें दिन नवम और दशम, छठे दिन एकादश तथा सातवें दिन द्वादश व त्रयोदश अध्याय का पाठ कर सकते हैं. अंतिम दिन नवार्ण का जाप तथा तीनों रहस्यों का पाठ कर अग्नि की स्थापना कर नवार्ण मंत्र से एक माला हवन कर गरी का सूखा गोला या सुपारी में मौली लपेट कर पान के पत्ते, पेड़ के साथ चम्मच घी में लेकर गरी-गोला या सुपारी की पूर्णाहुति दे कर पूजा संपन्न की जा सकती है. विधि पूर्वक ऐसा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. —————————यहां सौ साल से मनाया जाता है चैती नवरात्रशहर के भट्ठा कालीबाड़ी रोड स्थित रामकृष्ण आश्रम परिसर में चैती नवरात्र के मौके पर गत 100 वर्षों से भव्य पूजा उत्सव का आयोजन किया जाता है. इसमें बिहारी और बंगाली समुदाय के लोग साझा प्रयास से मेला का भी आयोजन करते हैं. दूर-दराज के क्षेत्रों से भी लोग नवरात्र के दौरान यहां मां दूर्गा की पूजा के लिए पहुंचते हैं. यहां 12 से 16 अप्रैल के बीच माता की विशेष पूजा का आयोजन किया जायेगा. आश्रम के सचिव स्वामी विजयानंद ने बताया कि मंदिर में षष्ठी पूजा के दिन 12 अप्रैल को कलश स्थापन किया जायेगा. 12 अप्रैल से मंदिर परिसर में भव्य मेला का भी आयोजन किया जायेगा. 13 अप्रैल को सप्तमी व 14 अप्रैल को अष्टमी पूजा होगी. अष्टमी के दिन कुमारी पूजा व रात्रि में संधी पूजा किया जायेगा. जबकि 15 अप्रैल को नवमी पूजा के मौके पर प्रभु रामचंद्र जी की भी विशेष पूजा की जायेगी. 16 अप्रैल को दशमी पूजा के साथ उत्सव का समापन होगा. उसी दिन प्रतिमा विसर्जन और प्रतिमा निरंजन किया जायेगा. फिलहाल आश्रम परिसर में पूजा पंडाल व प्रतिमा निर्माण का कार्य जारी है. फोटो – 8 पूर्णिया 3परिचय – मां दुर्गा की मंदिर

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