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इंसीलेटर है नहीं, संक्रमित हो रहा शहर

पूर्णिया : स्वास्थ्य नगरी लाइन बाजार मेडिकल कचरों और बायो मेडिकल कचरों से पटा हुआ है. इससे पूरे शहर का वातावरण प्रदूषित तो हो ही रहा है,साथ ही कई प्रकार के संक्रमण का भी खतरा उत्पन्न हो रहा है. इन मेडिकल कचरों के निस्तारण में लगे एनजीओ भी कचरे को भागलपुर स्थित इंसीलेटर में नहीं […]

पूर्णिया : स्वास्थ्य नगरी लाइन बाजार मेडिकल कचरों और बायो मेडिकल कचरों से पटा हुआ है. इससे पूरे शहर का वातावरण प्रदूषित तो हो ही रहा है,साथ ही कई प्रकार के संक्रमण का भी खतरा उत्पन्न हो रहा है. इन मेडिकल कचरों के निस्तारण में लगे एनजीओ भी कचरे को भागलपुर स्थित इंसीलेटर में नहीं ले जाकर शहर में ही फेंक देते हैं,जो शहर की आवो हवा को प्रदूषित एवं संक्रमित कर रहा है. इस खतरे के मद्देनजर पूर्णिया में इंसीलेटर स्थापित करने की मांग जोर पकड़ रही है.

हानिकारक तत्वों से वातावरण हो रहा है विषक्त : लाइन बाजार के लगभग एक सौ से अधिक नर्सिंग होम व क्लिनीक, डेढ सौ से अधिक पैथोलॉजी आदि से लगभग 75 टन से अधिक कचरा प्रतिदिन बाहर निकलता है. लापरवाही के कारण इस संक्रमित मेडिकल कचरे को यत्र-तत्र फेंक दिया जाता है. जिससे शहर में कई स्थानों पर सीरिंज और प्लास्टिक कचरों का जहां-तहां टीला बन गया है.
कचरों में बेकार दवाएं, सीरिंज, उतारे गये बैंडेज, पट्टी व प्लास्टर आदि से निकलने वाले जहरीले गैस से वातावरण बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. इससे मनुष्य भी प्रभावित हो रहे हैं. जानकारों के अनुसार ऐसे कचरे में लगभग तीन प्रतिशत केमिकल होते हैं. जानकारों का मानना है कि प्लास्टिक जैसे कचरों से जहरीली गैस यथा सल्फर पार्टिकल्स व मरकरी जैसे हानिकारक तत्व फिजां में फैल रहे हैं. इतना ही नहीं इसमें रेडियो एक्टिव तत्व भी होता है. विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे कचरों से साइटोट्राइस्टिक नामक रसायन निकलता है जिसके संपर्क में आने से मनुष्य संक्रमण से प्रभावित हो सकता है.
लोग हो रहे हैं संक्रमित : इन संक्रमित मेडिकल कचरा के साथ सामान्य कचरा भी फेंका जाता है. इन कचरों से फैलने वाले संक्रमण के शिकार सबसे ज्यादा कचरा चुनने वाले और आवारा पशु होते हैं.
कचरा चुनने वाले इन कचरों से सीरिंज, शीशी, रेपर सहित अपनी जरूरत के हिसाब से सामग्री चुन लेते हैं. जानकारों के अनुसार ये सभी सामान 12-15 रुपये प्रति किलो की दर से कबाड़ी में बिक जाता है. जागरूकता के अभाव में कचरा चुनने वाले यदि संक्रमण के शिकार होते हैं तो उनके संपर्क में आने वाले लोगों में भी संक्रमण का खतरा बना रहता है.
नहीं होता नियमों का पालन : विभाग की ओर से मेडिकल कचरे के निस्तारण का बड़ा ही कड़ा प्रावधान है. प्रावधानों के मुताबिक कचरों की क्वालिटी के हिसाब से इसे लाल, पीले, काले एवं नीले रंग के कंटेनर में रखा जाना है. लेकिन निजी नर्सिंग होम,क्लिनीक,पैथोलॉजी और डिस्पेंसरी में भी इन नियमों का पालन नहीं होता है. वहीं इन मेडिकल कचरों का निस्तारण कहीं भी कर दिया जाता है. फलत:जाने अनजाने में लोग यहां संक्रमित हो रहे हैं. इन मेडिकल कचरों की वजह से सेप्टीसिमिया नामक बैक्टीरिया अब यहां के नर्सिंग होम के ऑपरेशन थियेटर को भी निशाना बनाने लगा है.
सड़क किनारे ही फेंक दिया जाता है कचरा
शहर के मेडिकल कचरों के निस्तारण के लिए एक एनजीओ की सेवा ली जा रही है. नियमत: संक्रमित मेडिकल कचरों को उठा कर भागल पुर मेडिकल कॉलेज स्थित इंसीलेटर में नष्ट करने का प्रावधान है. किंतु एनजीओ वाले कुछ जमीन के मालिक से सांठ गांठ कर उस जमीन को भरने हेतु इस संक्रमित मेडिकल कचरे को शहर के कुंडीपुल के आस पास तथा कसबा रोड आदि स्थानों में सड़क के किनारे फेंक देते हैं.
यदि समय रहते शहर की इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले समय में महामारी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. मेडिकल कचरों को फेंकने के लिए कोई खास जगह चिह्नित नहीं किया गया है.

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