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अब तक बने महज 14,617 शौचालय

नहीं हो रहा कार्यान्वयन. पूिर्णया िजले में निर्मल गांव बनाने की राह नहीं है आसान खुले में शौच से मुक्ति की चाहे जितने भी कवायद कर ली जाये,लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि पूर्णिया को निर्मल बनाने की राह इतना आसान नहीं है. इसके कारण कई कारण भी हैं. जागरूकता का अभाव, शौचालय निर्माण को […]

नहीं हो रहा कार्यान्वयन. पूिर्णया िजले में निर्मल गांव बनाने की राह नहीं है आसान
खुले में शौच से मुक्ति की चाहे जितने भी कवायद कर ली जाये,लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि पूर्णिया को निर्मल बनाने की राह इतना आसान नहीं है. इसके कारण कई कारण भी हैं.
जागरूकता का अभाव, शौचालय निर्माण को ले कर उदासीनता, लकीर के फकीर बनने की परंपरा आदि स्वच्छता अभियान के मार्ग का सबसे बड़ा बाधक साबित हो रहा है. ऐसा माना जा रहा है कि जब तक इन मिथकों को तोड़ा नहीं जाता, तब तक खुले में शौचमुक्त गांव का निर्माण होना संभव नहीं है.
पूर्णिया : विभागीय रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2015-16 में 4 लाख 63 हजार 211 लोग शौचालयविहीन हैं, जिसमें मात्र 14 हजार,617 शौचालय का निर्माण अनुदान की राशि से संभव हो पाया है. चालू वर्ष में सात गांवों को खुले में शौच मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित था.
लक्ष्य के विपरीत महज तीन गांव ही खुले में शौच मुक्त हो सका. जिस मंथर गति से शौचालय निर्माण का कार्य हो रहा है. उससे यही प्रतीत होता है कि पूर्णिया को ओडीएफ बनाने में 32 वर्ष से अधिक समय लग जायेंगे. इसलिए यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पूर्णिया को ओडीएफ बनाने की राह अत्यंत कठिन है.
गोआसी की हकीकत : 14 फरवरी को गोवासी गांव को खुले मेें शौच मुक्त गांव घोषित किया गया.खुले मे शौच मुक्त होने के बावजूद भी लोग खुले में शौच जा रहे हैं. गोआसी गांव के बहियार, खेत आदि शौच से पटे पड़े हैं. लोगों की मानसिकता अब भी पुरानी है. ग्रामीण शौचालय होते हुए भी खुले में शौच जाते हैं. एक ग्रामीण ने बताया कि शौचालय से उठ रही बदबू से मन भन्ना जाता है. इसलिए बाहर शौच को जाते हैंं.
प्रदूषित होता है वातावरण : मल से वातावरण तो प्रदूषित होता ही है, साथ ही लोग संक्रामक रोग के भी शिकार जाने-अनजाने में हो जाते हैं. जिले में डायरिया, उल्टी, दस्त आदि की बीमारी इन्हीं मल प्रदूषण की वजह से होती है. खुले में शौच के कारण शौच विहीन लोग तो रोगों के शिकार तो होते ही हैं,साथ ही वैसे लोग भी इस मल के कारण रोग ग्रस्त होते हैं, जिनके पास शौचालय होते हैं. इन्हीं सब बातों को केंद्रित कर जागरूकता अभियान चलाना होगा, तब जाकर ओडीएफ की मुहिम सफल हो सकेगी.
पुरानी सोच भी बाधक
शौचालय निर्माण के राह में मुख्य बाधक पुरानी सोच को माना जाता है. ग्रामीण इलाकों के लोगों की सोच है कि रहने का ढंग का घर नहीं है. शौचालय निर्माण में अपना समय व श्रम क्यों लगायें. यही सोच जिले को ओडीएफ बनाने से रोकती है. जानकारों के अनुसार लोगों की इस सोच में तेजी से बदलाव लाने के लिए युद्धस्तर पर जागरूकता अभियान चला कर लोगों को शौचालय का प्रयोग एवं उसके निर्माण की महत्ता को समझाये, तब जाकर कहीं ओडीएफ बनाने की राह आसान हो सकेगी.
एक लाख से अधिक बनाने होंगे शौचालय
जानकारों के अनुसार निर्धारित समय समय सीमा में पूर्णिया को स्वच्छ बनाना है तो प्रति वर्ष औसतन 1 लाख 15 हजार से अधिक शौचालय निर्माण कराना होगा और शौचालय के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करना होगा. विभाग ऐसा करने में कहां तक सफल होती है,यह उसके काम की प्रस्तुति ही तय करेगी.
अनुदान पर शौचालय निर्माण का कार्य जारी है. लेकिन जागरूकता के अभाव के कारण निर्माण की रफ्तार मध्यम है. राज्य को निर्मल बनाने की दिशा में लोगों को आगे बढ़ कर शौचालय निर्माण में दिलचस्पी लेनी होगी.
ई. परमानंद प्रसाद, कार्यपालक अभियंता, पीएचइडी, पूर्णिया

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