33 लाख की आबादी वाले िजले के सदर अस्पताल में एक ही िचकित्सक की है िनयुिक्त
Advertisement
यहां शिशु रोिगयों का है हाल-बेहाल खास बातें
33 लाख की आबादी वाले िजले के सदर अस्पताल में एक ही िचकित्सक की है िनयुिक्त लगभग चरमरा सी गयी है डॉक्टर के अभाव में बाल रोगी व बच्चा वार्ड की व्यवस्था पदस्थापित एक ही िचकित्सक को सातों दिन करनी पड़ती है ड्यूटी छुट्टी पर गये डॉक्टर तो, बाल रोग विशेषज्ञ की जगह किसी फिजिशियन […]
लगभग चरमरा सी गयी है डॉक्टर के अभाव में बाल रोगी व बच्चा वार्ड की व्यवस्था
पदस्थापित एक ही िचकित्सक को सातों दिन करनी पड़ती है ड्यूटी
छुट्टी पर गये डॉक्टर तो, बाल रोग विशेषज्ञ की जगह किसी फिजिशियन की सहायता लेनी पड़ती है अस्पताल प्रशासन को
एक चिकित्सक और सैकड़ों रोगी
पिछले वर्ष तक सदर अस्पताल में शिशु रोग विभाग में तीन-तीन डॉक्टर पदस्थापित थे. उस समय सदर अस्पताल का बच्चा वार्ड सबसे मजबूत माना जाता था.
किंतु अचानक राज्य स्वास्थ्य समिति ने बाल रोग विशेषज्ञ डॉ दीपक कुमार को सहरसा एवं डॉ सुभाष कुमार सिंह का स्थानांतरण जिले के ही बनमनखी अनुमंडलीय अस्पताल कर दिया.सदर अस्पताल में मात्र एक डॉ वीर कुंवर सिंह बच गये.पूर्वोत्तर बिहार के सबसे बड़े अस्पताल होने के नाते औसतन तीन सौ के आस-पास बाल रोगी सदर अस्पताल प्रतिदिन पहुंचते है. ऐसे में बेचारे डॉक्टर को ओपीडी से लेकर आइपीडी तक के बाल रोगी को देखने की बाध्यता रहती है. जाहिर है इस वजह से कभी-कभी उन्हें असंतोष का भी सामना करना पड़ता है.
पूर्णिया : नाम बड़े और दर्शन छोटे जैसी स्थिति उत्तर बिहार के पीएमसीएच कहे जाने वाले सदर अस्पताल की है. राज्य और देश के स्तर पर बाल मृत्यु दर रोकने के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं चलायी जा रही हैं और सेमिनार और कार्यक्रम में बड़ी-बड़ी बातें भी की जाती है.
लेकिन सदर अस्पताल का हाल यह है कि यहां शिशु रोगियों के इलाज के लिए केवल एक ही डॉक्टर पदस्थापित हैं. स्पष्ट है कि लगभग 33 लाख की आबादी वाले जिले में जहां हर मिनट बच्चा पैदा हो रहा हो, केवल एक डॉक्टर का होना पूरी व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल है. इस एक डॉक्टर पर ओपीडी एवं आइपीडी दोनों की बागडोर है. ऐसे में जब किसी कारणवश एक मात्र चिकित्सक अनुपस्थित रहते हैं तो बाल रोग विभाग मंे अघोषित रूप से ताला जड़ जाता है.
बाल रोग विशेषज्ञ को लाने की उठने लगी मांग
डॉक्टर के अभाव में बाल रोगी एवं बच्चा वार्ड की व्यवस्था लगभग चरमरा सी गयी है. कोसी, सीमांचल, प बंगाल व नेपाल से इलाज की आस में आने वाले बाल रोगियों के परिजनों को डॉक्टरों की कमी का खामियाजा भुगतना पड़ता है. यहां आकर उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है. पिछले दिनों कसबा से अपने बच्चे का इलाज कराने आये गणपति साह ने सदर अस्पताल का जो अनुभव बयां किया,वह व्यवस्था को सवालों के घेरे में लाता है. श्री साह के बच्चे को छाती में दर्द की शिकायत थी. उसे डॉक्टर से दिखाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी. श्री साह ने बताया कि भगवान भरोसे ही वे अपने बच्चे का इलाज करा पाये.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement