प्रतिनियोजन के खेल में बड़े-छोटे का है मेल पूर्णिया. ‘ किस्मत मेहरबान तो गधा पहलवान ‘ की कहावत सबने सुनी होगी. लेकिन जिला शिक्षा विभाग में किस्मत से अधिक अधिकारियों की मेहरबानी काम आती है. दरअसल जिले में शिक्षक प्रतिनियोजन के खेल निराले हैं. विभाग की ओर से भले ही शिक्षकों के प्रतिनियोजन पर रोक लगा दी गयी हो, लेकिन अधिकारियों के लिए नजराना बड़ा महत्व रखता है. नजराने के आगे नियम और कायदे क्या, सभी फीके पड़ जाते हैं. मनोकामना पूरी होते ही अधिकारी विभागीय आदेश की अवहेलना तक से गुरेज नहीं करते हैं. प्रतिनियोजन बना है चोखा धंधा शिक्षक प्रतिनियोजन पर रोक लगने के बाद जिले में जितनी निराशा शिक्षकों के हाथ लगी, उससे भी अधिक इसका मलाल अधिकारियों को हुआ. दरअसल अधिकारियों को यह चिंता सताने लगी कि प्रतिनियोजन के नाम पर होने वाली आमदनी पर विभागीय आदेश ग्रहण साबित होगा. लेकिन धीरे-धीरे यह डर अधिकारियों के जेहन से दूर होता चला गया और प्रतिनियोजन के इस धंधे ने नया रूप धारण कर लिया. जिसके बाद अधिकारियों की कमाई कई गुणा तक बढ़ गयी. प्रतिनियोजन की इच्छा रखने वाले शिक्षकों को विभागीय आदेश का हवाला देकर ही सुविधा शुल्क में इजाफा कर दिया गया. जाहिर है जिन शिक्षकों ने प्रतिनियोजन में अपनी बेहतरी देखी वे फीस की रकम पर गौर करने के बजाय काम होने पर अधिक गंभीर हुए. वही निर्धारित रकम नहीं चुकाने वालों का प्रतिनियोजन रद्द कर दिया गया. कार्यक्षेत्र से बाहर भी हो रहा प्रतिनियोजनजिले में शिक्षक प्रतिनियोजन में नियम और कानून तो दूर की बात अधिकारी अपने कार्यक्षेत्र से बाहर जा कर भी फैसले लेने से गुरेज नहीं कर रहे हैं. जानकारों की मानें तो विभागीय प्रतिबंध के पूर्व प्रतिनियोजन संबंधी निर्णय लेने का अधिकार जिला शिक्षा पदाधिकारी अथवा उनसे वरीय पदाधिकारी के पास निहित था. प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को इससे संबंधित आवेदनों को अग्रसारित करने का अधिकार नहीं दिया गया था. वही फिलहाल इस पर प्राथमिक शिक्षा निदेशक पटना की ओर से जारी आदेश के तहत प्रतिबंध है. लेकिन जिले के लगभग सभी प्रखंडों में शिक्षक प्रतिनियोजित हैं. वही प्रतिनियोजन के कई आदेश प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी स्तर से जारी किये जा रहे हैं. ये तो हद ही हो गयी. . . . . . . . शिक्षक प्रतिनियोजन को लेकर एक तरफ विभाग का सख्त आदेश है और दूसरी ओर विभागीय अधिकारी की अपनी मनमानी. जानकारों की मानें तो करीब एक सप्ताह पूर्व ही केनगर प्रखंड में 31 शिक्षकों का प्रतिनियोजन रद्द किया गया. साथ ही 40 नये शिक्षकों को प्रतिनियोजित कर दिया गया. शिक्षकों का प्रतिनियोजन रद्द होने की वजह चाहे जो भी रही हो, लेकिन इसके साथ ही 40 नये शिक्षकों का प्रतिनियोजन कई सवाल खड़े कर गया. दरअसल यह प्रतिनियोजन प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के आदेश से किया गया, जो प्रतिबंध के पूर्व भी उनके अधिकार क्षेत्र में शामिल नहीं था. इसके अलावा विधानसभा निर्वाचन के समय बीआरसी कार्यालय में बीआरपी पद पर प्रतिनियोजित शिक्षक अमोल मंडल व जयकिशोर ठाकुर को जिलाधिकारी के आदेश के अनुपालन में उनके मूल विद्यालय में वापस करना था. डीएम के आदेश के अनुसार शिक्षकों का भुगतान भी उनके मूल पदस्थापित विद्यालय में योगदान के उपरांत ही करना था. लेकिन अमोल फिलहाल प्रखंड कार्यालय में प्रतिनियोजित हैं और जयकिशोर ने किसी अन्य विद्यालय में प्रतिनियोजन करा लिया है. अर्थात यह कि जिलाधिकारी का आदेश भी बीइओ के लिए महत्व नहीं रखता है. टिप्पणी – 1शिक्षकों का प्रतिनियोजन नियमों के अनुकूल रद्द किया गया है. नये शिक्षकों के प्रतिनियोजन की जानकारी नहीं है. शंकर रजक, प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी, केनगरटिप्पणी – 2शिक्षक प्रतिनियोजन पर पूर्ण प्रतिबंध है. जिला शिक्षा पदाधिकारी से प्रतिनियोजित सभी शिक्षकों की सूची मांगी जा रही है. जांच कर अग्रेतर कार्रवाई की जायेगी. डा चंद्रप्रकाश झा, क्षेत्रीय शिक्षा उप निदेशक, पूर्णिया
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प्रतिनियोजन के खेल में बड़े-छोटे का है मेल
प्रतिनियोजन के खेल में बड़े-छोटे का है मेल पूर्णिया. ‘ किस्मत मेहरबान तो गधा पहलवान ‘ की कहावत सबने सुनी होगी. लेकिन जिला शिक्षा विभाग में किस्मत से अधिक अधिकारियों की मेहरबानी काम आती है. दरअसल जिले में शिक्षक प्रतिनियोजन के खेल निराले हैं. विभाग की ओर से भले ही शिक्षकों के प्रतिनियोजन पर रोक […]
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